अब और आंदोलन नहीं, हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने की ज़रूरत नहीं: मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि रोज़ाना एक नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए. हमको झगड़ा क्यों बढ़ाना? ज्ञानवापी के बारे में हमारी श्रद्धा परंपरा से चलती आई है, पर हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? वो भी एक पूजा है. ठीक है बाहर से आई है, लेकिन जिन्होंने अपनाया है वो मुसलमान बाहर से संबंध नहीं रखते. यद्यपि पूजा उनकी उधर की है, उसमें वो रहना चाहते हैं तो अच्छी बात है. हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है.

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New Delhi: RSS chief Mohan Bhagwat speaks on the last day at the event titled 'Future of Bharat: An RSS perspective', in New Delhi, Wednesday, Sept 19, 2018. (PTI Photo) (PTI9_19_2018_000185B)
मोहन भागवत. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत का फैसला सर्वमान्य होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हर मस्जिद में शिवलिंग तलाशने और रोजाना एक नया विवाद खड़ा करने की जरूरत नहीं है.

नागपुर में संगठन के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि आरएसएस पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि अयोध्या आंदोलन में संगठन की भागीदारी एक अपवाद थी और संघ भविष्य में ऐसे आंदोलन में शामिल नहीं होगा.

भागवत ने कहा कि ज्ञानवापी विवाद में आस्था के कुछ मुद्दे शामिल हैं और इस पर अदालत के फैसले को सभी को स्वीकार करना चाहिए.

संघ प्रमुख ने कहा, ‘अब ज्ञानवापी मस्जिद (वाराणसी) का मामला चल रहा है. इतिहास को हम बदल नहीं सकते. वो इतिहास हमारे द्वारा नहीं बनाया गया और न ही आज के हिंदुओं और मुसलमानों द्वारा बनाया गया. यह उस समय हुआ, जब इस्लाम आक्रांताओं के साथ भारत आया. आक्रमण के दौरान स्वतंत्रता चाहने वाले लोगों के धैर्य को कमजोर करने के लिए मंदिरों को नष्ट कर दिया गया. इस तरह के हजारों मंदिर हैं.’

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, भागवत ने कहा, ‘हिंदू मुसलमानों के विरोधी नहीं हैं. मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे. कई लोगों को लगता है कि कभी ऐसा किया गया (मंदिरों को तोड़ा गया) वह हिंदुओं का मनोबल तोड़ने के लिए किया गया. हिंदुओं के एक वर्ग को अब लगता है कि इन मंदिरों के पुनर्निर्माण की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘रोजाना एक नया मुद्दा नहीं उठाना चाहिए. हमको झगड़ा क्यों बढ़ाना? ज्ञानवापी के बारे में हमारी श्रद्धा परंपरा से चलती आई है. हम करते आ रहे वो ठीक है. पर हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों देखना? वो भी एक पूजा है. ठीक है बाहर से आई है, लेकिन जिन्होंने अपनाया है वो मुसलमान बाहर से संबंध नहीं रखते, ये उनको भी समझना चाहिए. यद्यपि पूजा उनकी उधर की है, उसमें वो रहना चाहते हैं तो अच्छी बात है. हमारे यहां किसी पूजा का विरोध नहीं है.’

उन्होंने कहा कि आरएसएस ज्ञानवापी मुद्दे पर कोई आंदोलन शुरू करने के पक्ष में नहीं था – अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर, 2019 के फैसले के बाद भागवत ने सुझाव दिया कि संघ मथुरा और काशी से दूर रहेगा और ‘चरित्र निर्माण’ पर ध्यान केंद्रित करेगा.

उन्होंने कहा, ‘हमको जो कुछ कहना था 9 नवंबर को कह दिया. एक राम जन्मभूमि आंदोलन था, जिसमें हम अपनी प्रकृति के विरुद्ध कुछ ऐतिहासिक कारणों से उस समय की परिस्थिति में शामिल हुए. हमने काम को पूरा किया. अब हमें कोई आंदोलन नहीं करना है.’

उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी मुद्दे को दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने की जरूरत है और अगर दोनों पक्ष अदालत जाने का फैसला करते हैं, तो उन्हें अदालत के फैसले का सम्मान करने की जरूरत है.

उन्होंने कहा, ‘लोगों को एक साथ बैठने और एक रास्ते पर आम सहमति तक पहुंचने की जरूरत है, लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता. अगर वे कोर्ट जाते हैं तो कोर्ट जो भी फैसला दे उसे सभी को मानना चाहिए. संविधान और न्यायिक प्रणाली पवित्र, सर्वोच्च हैं और निर्णय को सभी को स्वीकार करना चाहिए. किसी को भी फैसले पर सवाल नहीं उठाना चाहिए.’

गौरतलब है कि विश्व वैदिक सनातन संघ के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह विसेन के नेतृत्व में राखी सिंह समेत पांच हिंदू महिलाओं ने अगस्त 2021 में अदालत में एक वाद दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद की पश्चिमी दीवार के पास स्थित शृंगार गौरी के नियमित दर्शन-पूजन और अन्य देवी-देवताओं की सुरक्षा की मांग की थी.

इसके साथ ही ज्ञानवापी मस्जिद परिसर स्थित सभी मंदिरों और देवी-देवताओं के विग्रहों की वास्तविक स्थिति जानने के लिए अदालत से सर्वे कराने का अनुरोध किया था.

शीर्ष अदालत ने बीते 17 मई को वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को ज्ञानवापी मस्जिद में शृंगार गौरी परिसर के भीतर उस इलाके को सुरक्षित रखने का निर्देश दिया था, जहां एक सर्वेक्षण के दौरान एक ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया गया है. साथ ही मुसलमानों को ‘नमाज’ पढ़ने की अनुमति देने का भी निर्देश दिया था.

बीते अप्रैल मा​ह में वाराणसी की एक अदालत ने इस स्थान का सर्वेक्षण और वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए एक कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था. इस पर मस्जिद की देखरेख करने वाली कमेटी ने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी थी, लेकिन उसी महीने इसे खारिज कर दिया गया था.

इसके बाद वाराणसी की अदालत ने 12 मई को ज्ञानवापी मस्जिद में स्थित शृंगार गौरी परिसर का वीडियोग्राफी सर्वेक्षण कर 17 मई को इससे संबंधित रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था.

बीते 13 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वेक्षण के लिए वाराणसी की अदालत के हालिया आदेश पर रोक लगाने की मांग वाली एक अपील पर कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था.

मस्जिद की प्रबंधन समिति अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने मामले को लेकर शीर्ष अदालत पहुंचे थे. अहमदी ने तर्क दिया था कि वाराणसी की अदालत का फैसला उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के विपरीत है.

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 कहता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप जारी रहेगा, जैसा कि 15 अगस्त, 1947 को अस्तित्व में था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)