संघ चाहता है कि शिक्षा नीति के तहत गुजरात के स्कूलों में संस्कृत अनिवार्य हो: रिपोर्ट

एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अप्रैल माह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी, शिक्षा अधिकारियों और भाजपा पदाधिकारियों के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागू करने के संबंध में एक बैठक हुई थी. बैठक में मौजूद संघ के सहयोगी संगठनों ने कथित तौर पर यह भी मांग रखी कि रामायण, महाभारत और भगवद् गीता भी स्कूलों में पढ़ाए जाएं.

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Gujarat education minister Jitu Vaghani reportedly met with the Sangh and affiliate organisations in April this year to discuss the implementation of the National Education Policy, 2020. Photo: Twitter/jitu_vaghani

एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल अप्रैल माह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी, शिक्षा अधिकारियों और भाजपा पदाधिकारियों के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 को लागू करने के संबंध में एक बैठक हुई थी. बैठक में मौजूद संघ के सहयोगी संगठनों ने कथित तौर पर यह भी मांग रखी कि रामायण, महाभारत और भगवद् गीता भी स्कूलों में पढ़ाए जाएं.

गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: गुजरात के शिक्षा मंत्री और विभाग के अन्य अधिकारियों के साथ एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने कथित तौर पर राज्य के स्कूलों में कक्षा 1 से संस्कृत को अनिवार्य विषय बनाने पर जोर दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, संघ और राज्य के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी, शिक्षा विभाग के अधिकारियों व गुजरात में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संगठनात्मक सचिव रत्नाकर के बीच बैठक इस साल अप्रैल में हुई थी, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लागू करने के विषय से संबंधित थी.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति भारत में तीसरी ऐसी शिक्षा नीति है. इसे 2020 में पास किया गया था. इसमें देश के शैक्षणिक ढांचे में कई व्यापक बदलावों का प्रस्ताव रखा गया था.

खासकर, राष्ट्रीय शिक्षा नीति में एक छात्र की मातृभाषा/स्थानीय भाषा को कक्षा 5 तक शिक्षा का प्राथमिक माध्यम बनाने की सिफारिश की गई है और जहां भी संभव है, वहां इसे कक्षा 8 तक आगे बढ़ाया जाए.

नीति के ‘तीन भाषा सूत्र’ के भाग में एक छात्र द्वारा स्कूल में सीखी जाने वाली तीन भाषाओं में से दो भाषाएं मूल भारतीय भाषाएं होना चाहिए, जबकि मसौदा नीति में कहा गया है कि विकल्प स्कूल और छात्र दोनों के पास होगा, लेकिन छात्र किस हद तक निर्णय लेने में सक्षम होगा, यह स्पष्ट नहीं है.

इसके अलावा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के पहले के एक मसौदे में उन राज्यों में कक्षा 8 तक हिंदी को अनिवार्य करने की बात कही गई थी, जहां यह नहीं बोली जाती है, लेकिन दक्षिणी राज्यों के तीव्र विरोध के बाद प्रावधान को हटा दिया गया था.

बहरहाल, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में बताया गया है कि बैठक में आरएसएस और इसके सहयोगी संगठनों ने राज्य सरकार से कहा कि वह हफ्ते में कम से कम छह पीरियड संस्कृत पढ़ाने के लिए रखे.

बैठक में मौजूद आरएसएस के सहयोगी संगठन जैसे विद्या भारती, शैक्षिक महासंघ, संस्कृत भारती, भारतीय शिक्षण मंडल का बैठक के दौरान संस्कृत शिक्षण पर जोर रहा.

हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा दिए गए अन्य सुझाव कथित तौर पर यह थे कि रामायण, महाभारत और भगवद् गीता को स्कूलों में पढ़ाया जाए, ‘वैदिक गणित’ को अनिवार्य किया जाए, उपनिषद और वेदों से मूल्य आधारित शिक्षा शुरू की जाए और निजी विश्वविद्यालयों को विनियमित किया जाए.

प्राथमिक स्कूली शिक्षा के अलावा संघ ने कथित तौर पर माध्यमिक और उच्च माध्यमिक शिक्षा में गुजराती को प्राथमिक भाषा के रूप में और संस्कृत को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाने की मांग की है, जबकि तीसरी भाषा राज्य सरकार के द्वारा चुनी जाएगी.

इसके अलावा जो छात्र बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी (बीएएमएस) पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के इच्छुक हैं, उनके लिए कक्षा 11 और 12 में संस्कृत को अनिवार्य बनाने की मांग की गई है.

संघ से संबद्ध संस्कृत भारती के एक सदस्य ने बताया कि शिक्षा में संस्कृत की भूमिका पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति स्पष्ट नहीं है और इसलिए इस मुद्दे पर परामर्श की जरूरत है.

आगे सदस्य ने कहा कि सभी छात्रों को अंग्रेजी पढ़ाई जाएगी, जबकि राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहती है कि कोई भी भाषा अनिवार्य नहीं की जाएगी.

रिपोर्ट में उल्लेखित सूत्रों का दावा है कि राज्य सरकार और आरएसएस के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर अगली बैठक इस साल जुलाई में होगी.

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