अस्पतालों को जारी सरकार के आदेश के ख़िलाफ़ 30,000 डॉक्टरों ने हड़ताल की: गुजरात आईएमए

गुजरात हाईकोर्ट ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा और अन्य पहलुओं को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाल में राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि निजी अस्पतालों में आईसीयू भूतल पर स्थित होने चाहिए और अस्पतालों के आगे के हिस्सों में लगे कांच को हटाया जाना चाहिए.

FILE PHOTO: A Junior Doctor holds his stethoscope during a patient visit on Ward C22 at The Royal Blackburn Teaching Hospital in East Lancashire, following the outbreak of the coronavirus disease (COVID-19), in Blackburn, Britain, May 14, 2020. REUTERS/Hannah McKay/Pool/File Photo

गुजरात हाईकोर्ट ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा और अन्य पहलुओं को लेकर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाल में राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि निजी अस्पतालों में आईसीयू भूतल पर स्थित होने चाहिए और अस्पतालों के आगे के हिस्सों में लगे कांच को हटाया जाना चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

अहमदाबाद: अस्पतालों की इमारतों में लगाए गए शीशे को हटाने और गहन चिकित्सा इकाइयों (आईसीयू) को भूतल पर स्थानांतरित करने के गुजरात सरकार के हालिया आदेश के खिलाफ राज्य में 30,000 से अधिक निजी डॉक्टरों ने शुक्रवार को एक दिवसीय हड़ताल की.

विरोध का आह्वान करने वाली इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की गुजरात राज्य शाखा (जीएसबी) के सचिव डॉ. मेहुल शाह ने कहा कि ये नियम हाईकोर्ट के निर्देश के बाद बनाए गए और सात दिनों के भीतर इसे लागू करने की मांग ‘अतार्किक’ होने के कारण हड़ताल की गई.

शाह ने कहा, ‘हमारी हड़ताल सफल रही, क्योंकि निजी प्रैक्टिस करने वाले आईएमए के सदस्य 30,000 से अधिक डॉक्टर आज (शुक्रवार) कामकाज से दूर रहे. राज्य के अस्पतालों को अधिकारियों से सात दिनों के भीतर नए नियमों को लागू करने के लिए नोटिस दिए जा रहे हैं, जो पूरी तरह से अतार्किक है और यह लोगों को प्रभावित करेगा.’

गुजरात हाईकोर्ट ने अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा और अन्य पहलुओं पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाल में राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि निजी अस्पतालों में आईसीयू भूतल पर स्थित होने चाहिए.

आईएमए की गुजरात इकाई के पूर्व अध्यक्ष डॉ. देवेंद्र पटेल ने कहा, ‘अदालत यह भी चाहती है कि अस्पताल अपनी इमारतों के शीशे को हटा दें. बिना बीयू (भवन उपयोग) मंजूरी वाली इमारतों में संचालित अस्पतालों के लिए भी निर्देश जारी किए गए हैं. सरकार हमें नोटिस जारी कर रही है और हमें सात दिनों के भीतर अनुपालन के लिए कह रही है, यह बिल्कुल अव्यवहारिक है.’

पटेल ने कहा, ‘अगर हम आईसीयू को भूतल पर स्थानांतरित करते हैं, तो अधिक रोगी संक्रमित होंगे. इससे आईसीयू बेड की संख्या में भी भारी कमी आएगी. सरकार को संदेश देने के लिए हमने हड़ताल का आह्वान किया, जिससे 30,000 से अधिक डॉक्टर जुड़े.’

आपात स्थिति वाले मरीजों को सरकारी अस्पतालों में भेजा गया जबकि जिन अस्पतालों में मरीज थे, वहां उपचार जारी रहा.

मालूम हो कि अहमदाबाद नगर निगम की अग्निशमन और आपातकालीन सेवाओं के साथ-साथ संपदा विभागों द्वारा अस्पतालों और नर्सिंग होम को गुजरात हाईकोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुपालन के संबंध में जारी किए गए नोटिस का कड़ा विरोध हो रहा है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आईसीयू और अस्पताल के अग्रभागों में कांच के शीशों को लेकर गुजरात हाईकोर्ट के निर्देशों को लेकर अहमदाबाद अस्पताल और नर्सिंग होम (एएचएनए) ने बीते मंगलवार (19 जुलाई) ने कहा कि अगर इन ‘अवैज्ञानिक’ निर्देशों को वापस नहीं लिया गया तो वे अपने आईसीयू को बंद करने के लिए मजबूर होंगे.

बीते 30 जून को अग्नि सुरक्षा पर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य को तत्काल कदम उठाने का निर्देश दिया था, ताकि दिसंबर 2020 के अदालत के एक आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके, जिसमें अस्पतालों, विशेष रूप से आईसीयू के लिए अग्नि सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश जारी किए गए थे.

उसी जनहित याचिका में 15 दिसंबर 2020 के आदेश में गुजरात हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने महीने में एक बार वेंटिलेटर, एयर कंडीशनर जैसे भारी भार वाले उपकरणों की सर्विसिंग जैसे निर्देश जारी किए थे.

मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार और जस्टिस एजे शास्त्री की पीठ ने निर्देश दिया था कि आईसीयू को केवल भूतल पर स्थित होना चाहिए और आवश्यकता पड़ने पर बिस्तरों को बाहर निकालने के लिए वैकल्पिक निकास की व्यवस्था होनी चाहिए. सीढ़ियां हवादार होनी चाहिए और अस्पताल भवनों के शीशे के आगे के हिस्से की किसी भी स्थिति में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

रिपोर्ट के अनुसार, एएचएनए ने वैज्ञानिक कारणों का हवाला देते हुए इस कदम का विरोध किया और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा नीतियां बनाने की भी मांग की है.

बीते 19 जुलाई को मीडिया को संबोधित करते हुए संगठन के अध्यक्ष डॉ. भरत गढ़वी ने कहा था, इस निर्णय में साक्ष्य आधारित चिकित्सा भाग को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है. भूतल पर आईसीयू बनाना वैज्ञानिक कारणों के खिलाफ है, क्योंकि इससे रोगियों में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है. आप रोगियों को आग से बचा सकते हैं, लेकिन संक्रमण से नहीं.

नगर निगम ने अहमदाबाद के सभी निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम से अनुपालन रिपोर्ट मांगी है-

आईसीयू प्लानिंग एंड डिजाइनिंग 2020 पर इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रिटिकल केयर मेडिकल एक्सपर्ट्स कमेटी कंसेंट स्टेटमेंट का हवाला देते हुए एएचएनए ने कहा था, ‘बयान स्पष्ट रूप से कहता है कि ग्राउंड फ्लोर से बचा जाना चाहिए और आईसीयू के पास लिफ्ट उपलब्ध होने पर ऊंची मंजिलें उपयुक्त हैं- आईसीयू अस्पतालों के पृथक क्षेत्रों में होना चाहिए- इस समिति के सदस्य प्रतिष्ठित सरकारी और निजी अस्पतालों से हैं.’

एएचएनए के सदस्यों ने यह भी कहा कि आईसीयू को ऑपरेशन थियेटर के साथ साथ कैथलैब के करीब होना चाहिए. डॉ. गढ़वी ने कहा कि इसलिए देश और विदेश के लगभग सभी अस्पतालों में भूतल पर आईसीयू नहीं हैं.

एएचएनए सचिव डॉ. वीरेन शाह के अनुसार, मानसून के मौसम के दौरान आईसीयू में भीड़ रहने की संभावना बढ़ जाती है.

रिपोर्ट के अनुसार, एसोसिएशन ने अध्ययनों का हवाला देते हुए दावा किया है कि कोविड के दौरान अस्पतालों में आग की बड़ी घटनाएं उनके 100 प्रतिशत भरे रहने, एसी, वेंटिलेटर और अन्य उपकरणों के संचालन के साथ-साथ पीपीई किट ऑक्सीजन और सैनिटाइजर जैसे अधिक ज्वलनशील सामग्री की उपस्थिति के कारण हुई थीं.

अस्पताल के आगे के हिस्से में कांच लगाए जाने को लेकर संगठन ने कहा, ‘अगर कांच के अग्रभाग केवल एक तरफ हैं, तो दूसरी तरफ से धुआं निकल सकता है. इसके अलावा अगर वे खुले हैं, तो उन्हें हटाने का कोई कारण नहीं है.’

संगठन ने गुजरात हाईकोर्ट से इस संबंध में उनका पक्ष भी सुनने का अनुरोध किया है.

डॉ. गढ़वी ने कहा था, ‘एक सक्रिय चालू अस्पताल की संरचना में कोई भी बदलाव करना बहुत मुश्किल है. एएचएनए ने जुलाई 2021 में हमें अपना विचार रखने के लिए चल रहे मामले में एक पक्ष बनाने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उन्होंने हमें अनुमति नहीं दी. यह अन्याय है. हम उम्मीद करते हैं कि हाईकोर्ट कम से कम हमारे दृष्टिकोण को सुनेगा.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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