एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में 16 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है. मामले के एक आरोपी फादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हिरासत के दौरान पिछले साल मुंबई के एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी, जबकि तेलुगू कवि वरवरा राव चिकित्सकीय ज़मानत पर जेल से बाहर हैं. सुधा भारद्वाज को भी नियमित ज़मानत पर रिहा किया गया है. 13 अन्य आरोपी विभिन्न जेलों में बंद हैं.
मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में अगले तीन महीने में आरोप तय करने संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब इस बात पर ध्यान केंद्रित हो गया है कि मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों से जुड़ी स्थिति क्या है.
राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) मामले की जांच कर रहा है. इस मामले में 16 आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से फादर स्टेन स्वामी की न्यायिक हिरासत के दौरान पिछले साल मुंबई के एक निजी अस्पताल में मौत हो गई थी, जबकि तेलुगू कवि वरवरा राव चिकित्सकीय जमानत पर जेल से बाहर हैं.
केवल एक आरोपी सुधा भारद्वाज को नियमित जमानत पर रिहा किया गया है. सुधा को पिछले साल दिसंबर में बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत दी थी. इसके अलावा 13 अन्य आरोपी विभिन्न जेलों में बंद हैं.
एनआईए ने अपने मसौदा आरोपों में आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप लगाए जाने का अनुरोध किया है. अदालत ने अभी इस मामले में आरोप तय नहीं किए हैं. आरोप तय होने के बाद ही सुनवाई शुरू होगी.
आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 120बी (साजिश), 115 (अपराध के लिए उकसाना), 121, 121ए (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ना), 124ए (राजद्रोह), 153ए (जुलूस में हथियार), 505 (1) (बी) (अपराध को बढ़ावा देने वाले बयान) और 34 (साझा इरादे) के तहत आरोप लगाए गए हैं.
उन पर यूएपीए की धाराओं 13, 16, 17, 18, 18ए, 18बी, 20 (आतंकवादी गतिविधियों के लिए सजा), 38, 39 और 40 (आतंकवादी संगठन का हिस्सा होने की सजा) के तहत भी आरोप लगाए गए हैं.
यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित भड़काऊ भाषण देने से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया है कि इसके कारण अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई.
पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन था. बाद में एनआईए ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली.
एनआईए ने आरोप लगाया है कि 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में एल्गार परिषद का आयोजन राज्य भर में दलित और अन्य वर्गों की सांप्रदायिक भावना का भड़काने और उन्हें जाति के नाम पर उकसा कर भीमा-कोरेगांव सहित पुणे जिले के विभिन्न स्थानों और महाराष्ट्र राज्य में हिंसा, अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए आयोजित किया गया था.
इस मामले में गिरफ्तार आरोपियों की स्थिति इस प्रकार है:
कार्यकर्ता सुधीर धावले मामले में सबसे पहले गिरफ्तार किए गए लोगों में शामिल हैं. उन्हें जून 2018 में गिरफ्तार किया गया. वह वर्तमान में तलोजा जेल में बंद हैं और उन पर उग्रवादी संगठन के सक्रिय सदस्य होने का आरोप लगाया गया है. एनआईए की एक विशेष अदालत ने इस साल जुलाई में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
कार्यकर्ता रोना विल्सन को जून 2018 में दिल्ली स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था और वह तब से जेल में हैं. उन्हें कथित तौर पर शहरी माओवादियों के प्रमुख सदस्यों में शामिल बताया गया है. विशेष अदालत ने जुलाई 2022 में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
विल्सन को सितंबर 2021 में अपने पिता के निधन के बाद 30वें दिन के अनुष्ठान में शामिल होने के लिए विशेष एनआईए अदालत ने 14 दिन की अस्थायी जमानत दी थी. उन्होंने 14 दिन की अवधि समाप्त होने पर आत्मसमर्पण कर दिया था.
वकील सुरेंद्र गाडलिंग को 2018 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह जेल में हैं. एनआईए के अनुसार, गाडलिंग पर आरोप है कि वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) (माओवादी) के एक सक्रिय सदस्य हैं और वह धन उगाहने की गतिविधियों और उसके वितरण में शामिल थे. विशेष अदालत ने गाडलिंग को भी जुलाई 2022 में जमानत देने से इनकार कर दिया था.
अगस्त महीने में ही मुंबई की एक विशेष अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गाडलिंग का बयान दर्ज करने की अनुमति दे दी. ईडी ने एल्गार परिषद मामले में एनआईए द्वारा दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट के आधार पर पिछले साल मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम पीएमएलए के तहत मामला दर्ज किया था.
अगस्त महीने में ही मुंबई की एक विशेष अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) गाडलिंग का कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में बयान दर्ज करने की अनुमति दे दी. ईडी ने एल्गार परिषद मामले में एनआईए द्वारा दर्ज की गई पहली सूचना रिपोर्ट के आधार पर 2021 में मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत मामला दर्ज किया था.
प्रोफेसर शोमा सेन को जून 2018 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह भायखला महिला जेल में बंद हैं. उन्होंने 2021 में चिकित्सकीय आधार पर और कोविड-19 के बढ़ते मामलों के मद्देनजर जमानत याचिका दायर की थी, लेकिन विशेष एनआईए अदालत ने याचिका खारिज कर दी थी. अदालत ने जुलाई 2022 में उनकी ‘डिफॉल्ट’ जमानत याचिका भी खारिज कर दी थी.
कार्यकर्ता महेश राउत पर माओवादी विचारधारा का प्रचार करने और छात्रों को नक्सली आंदोलन में शामिल करने के प्रयास का आरोप है. एनआईए का आरोप है कि राउत ने मामले के सह-आरोपियों को एल्गार परिषद कार्यक्रम के लिए पांच लाख रुपये दिये थे. उन्हें 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह अब भी जेल में हैं. विशेष अदालत ने उनकी ‘डिफॉल्ट’ जमानत याचिका इस साल खारिज कर दी थी.
तेलुगू कवि वरवरा राव को सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त, 2022 को चिकित्सकीय आधार पर जमानत दी थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें पिछले साल चिकित्सकीय आधार पर अस्थायी जमानत दी थी. 82 वर्षीय राव को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह हाईकोर्ट द्वारा पिछले वर्ष फरवरी में जमानत मंजूर किए जाने तक जेल में थे. उन पर प्रतिबंधित समूह का वरिष्ठ और सक्रिय सदस्य होने का आरोप है.
सामाजिक कार्यकर्ता एवं वकील अरुण फरेरा को अगस्त 2018 में इस मामले में गिरफ्तार किया गया था और वह वर्तमान में तलोजा जेल में हैं. उन्होंने मामले में डिफॉल्ट जमानत का अनुरोध किया था, लेकिन विशेष अदालत एवं बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे इस साल फरवरी में खारिज कर दिया था. फरेरा पर माओवादी मुहिम में सक्रिय रूप से भाग लेने का आरोप है.
कार्यकर्ता वर्नोन गोंजाल्विस को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह भी तलोजा जेल में बंद हैं. विशेष अदालत और हाईकोर्ट दोनों ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज इस मामले में एकमात्र ऐसी आरोपी हैं, जिन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिसंबर 2021 में डिफॉल्ट जमानत दी. उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह दिसंबर 2021 (करीब तीन साल) तक जेल में थीं. एनआईए के आरोप के अनुसार, भारद्वाज भाकपा (माओवादी) की सक्रिय सदस्य हैं.
कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े को एनआईए ने अप्रैल 2020 में गिरफ्तार किया था. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अग्रिम जमानत याचिका मंजूर नहीं की थी, जिसके बाद उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया था. वह इस समय तलोजा जेल में हैं और विशेष अदालत ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है.
गौतम नवलखा को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था और वह तब से तलोजा जेल में हैं. 70 वर्षीय नवलखा की साथी सहबा हुसैन ने दावा किया है कि नवलखा को अक्टूबर 2021 में अंडा सेल (उच्च सुरक्षा वाले बैरक) में स्थानांतरित कर दिया गया था और तब से उन्हें अकेले कारावास में रखा गया है.
दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू को इस मामले में जुलाई 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वह इस समय तलोजा जेल में हैं. उन्होंने हाल में जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था, जिस पर अभी सुनवाई होनी है. एनआईए ने बाबू पर भाकपा (माओवादी) नेताओं के निर्देश पर माओवादी गतिविधियों और विचारधारा के प्रचार में शामिल होने का आरोप लगाया है.
स्टेन स्वामी (83 वर्ष) की न्यायिक हिरासत में मौत हो गई. उन्होंने हाईकोर्ट से चिकित्सकीय आधार पर जमानत का अनुरोध किया था. उस पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान उन्हें एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित किया गया था, जहां पांच जुलाई, 2021 को उनकी मौत हो गई. उन्हें अक्टूबर 2020 में एनआईए ने गिरफ्तार किया था और वह मई 2021 में एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित किये जाने तक तलोजा जेल में रहे.
गायक और जाति-विरोधी कार्यकर्ता सागर गोरखे को एनआईए ने सितंबर 2020 में गिरफ्तार किया था. वह वर्तमान में तलोजा जेल में बंद हैं.
रमेश गायचोर को एनआईए ने गोरखे के साथ गिरफ्तार किया था और वह भी तलोजा जेल में बंद हैं. दोनों पर एल्गार परिषद कार्यक्रम का आयोजन करने वाले समूह में शामिल होने का आरोप है.
कबीर कला मंच की सदस्य ज्योति जगताप को सितंबर 2020 में नक्सली गतिविधियों और माओवादी विचारधारा के प्रचार के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वह फिलहाल मुंबई की भायखला महिला जेल में बंद हैं.
मालूम हो कि 2018 में शुरू हुए एल्गार परिषद मामले की जांच में कई मोड़ आ चुके हैं, जहां हर चार्जशीट में नए-नए दावे किए गए. मामले की शुरुआत हुई इस दावे से कि ‘अर्बन नक्सल’ का समूह ‘राजीव गांधी की हत्या’ की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बना रहा है.
यह विस्फोटक दावा पुणे पुलिस ने किया था, जिसके फौरन बाद 6 जून 2018 को पांच लोगों- रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, कार्यकर्ता सुधीर धावले, महेश राउत और शिक्षाविद शोमा सेन को गिरफ्तार किया गया था.
इसके बाद अगस्त 2018 को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंजाल्विस को गिरफ्तार किया था.
बता दें कि इस साल की शुरुआत में जनवरी में फरेरा, विल्सन और मामले के अन्य आरोपियों ने पेगासस स्पायवेयर के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी समिति के सामने अपना पक्ष रखा था और आरोप लगाया था कि उनके फोन पर पेगासस से हमला हुआ था.
इससे पहले, द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया था कि एल्गार परिषद मामले में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किए गए कम से कम आठ एक्टिविस्ट, वकील और शिक्षाविद् के नाम पेगासस के संभावित निशाने पर रहे लोगों के लीक डेटा में थे. आरोपियों के अलावा, उनके परिवार के सदस्यों, वकीलों, सहयोगी कार्यकर्ताओं और कुछ मामलों में नाबालिग बच्चों के भी नाम उस सूची में थे.
दिसंबर 2021 में, मैसाचुसेट्स स्थित एक डिजिटल फोरेंसिक फर्म, आर्सेनल कंसल्टिंग ने निष्कर्ष निकाला कि विल्सन का फोन न केवल इज़रायल के एनएसओ समूह के एक ग्राहक द्वारा निगरानी के लिए चुना गया था, बल्कि कई मौकों पर सफलतापूर्वक स्पायवेयर के जरिये उसमें सेंध भी लगाई गई थी.
इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद फरवरी 2022 में माकपा नेता एलामारम करीम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भेजकर एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार किए गए इन कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों की तत्काल रिहाई की मांग की थी.
इस पत्र पर माकपा, डीएमके, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, लोक जनता दल, केरल कांग्रेस (एम) और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के 19 अन्य सांसदों ने मीडिया और साइबर फॉरेंसिक विशेषज्ञ की रिपोर्टों पर चिंता जताते हुए हस्ताक्षर किए थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)