सरगुजा ज़िले के जैव विविधता संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों की मंज़ूरी के विरोध के बीच वन विभाग ने 27 सितंबर से परसा पूर्व कांते बासन कोयला खदान परियोजना के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई शुरू की है. क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की तैनाती के साथ कई लोगों को हिरासत में लिया गया है.
अंबिकापुर: छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में स्थित जैव विविधता संपन्न हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदानों की मंजूरी के विरोध के बीच वन विभाग ने 27 सितंबर से परसा पूर्व कांते बासन (पीईकेबी) कोयला खदान परियोजना के दूसरे चरण के लिए पेड़ों की कटाई शुरू कर दी.
उदयपुर विकासखंड के पेंड्रामार-घाटबर्रा गांव के करीब पेड़ों की कटाई शुरू की गई है. इसके लिए क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.
स्थनीय खबरों के मुताबिक, कड़ी सुरक्षा के बीच 27 सितंबर रात तक प्रशासन और वन विभाग ने 45 हेक्टेयर क्षेत्र में 8 हजार पेड़ों की कटाई पूरी कर ली थी. पेड़ों की कटाई का जिम्मा निजी कंपनी को दिया गया जिसने 600 लोगों की 20 टीम और 150 आरा मशीनों से पूरे दिन पेड़ों की कटाई की और 43 हेक्टेयर में लगे 8 हजार पेड़ यहां काट दिए.
पेड़ों की कटाई को लेकर विरोध के मद्देनजर इलाके में भारी पुलिस बल तैनात किया गया था. घाटबर्रा, मदनपुर सहित आसपास के 6 गांवों में गलियों से लेकर मुख्य सड़कों तक पुलिस बल तैनात किया, ताकि गांव के लोग विरोध के लिए जंगल तक न पहुंच सकें. पुलिस बल, राजस्व व वन विभाग के अफसर दिनभर गांवो में रहे ताकि किसी तरह विवाद न हो.
वहीं, कटाई शुरू होने से पहले ही विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों को उनके घरों से हिरासत में ले लिया गया था. सभी को सरगुजा, सूरजपुर व कोरबा जिले के अलग-अलग थाना क्षेत्र के अलग-अलग स्थानों में दिनभर रखा गया.
पुलिस ने सुबह से ही आंदोलनकारियों को घर से उठाना शुरू किया था. ग्राम साल्ही व घाटबर्रा के लोगों को दरिमा के किसान भवन में रखा गया था और सभी के मोबाइल बंद कर दिए गए थे.
वहीं, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक ग्राम पतुरियाडांड के सरपंच उमेश्वर अर्मों और ग्राम पुटा के जगरनाथ बड़ा को मोरगा पुलिस ले गई थी. इसके अलावा साल्ही, घाटबरी व मदनपुर के ग्रामीणों व सरपंचों को अलग-अलग जगह पूरे दिन नजरबंद करके रखा गया था. इसके अलावा कटाई क्षेत्र में पूरे दिन ग्रामीणों की आवाजाही बंद करा दी गई थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, 27 सितंबर को अधिकारियों ने बताया था कि कार्रवाई का विरोध करने के लिए स्थानीय लोगों को कथित तौर पर उकसाने के आरोप में घाटबर्रा और आसपास के गांवों के करीब 10 ग्रामीणों को हिरासत में लिया गया है.
सरगुजा जिले के कलेक्टर कुंदन कुमार ने बताया था कि पीईकेबी कोयला खदान के दूसरे चरण के लिए वन विभाग ने मंगलवार सुबह पेंड्रामार-घाटबर्रा जंगल में पेड़ों की कटाई शुरू कर दी.
कुमार ने कहा था कि कानून-व्यवस्था की स्थिति बनाए रखने के लिए वहां पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है.
कलेक्टर से जब पूछा गया कि राज्य सरकार ने क्षेत्र में नई खदान नहीं शुरू करने का आश्वासन दिया था तब उन्होंने कहा था कि पीईकेबी एक पुरानी खदान है और इसके लिए आवश्यक मंजूरी पहले ही दी जा चुकी है.
बुधवार को जिला प्रशासन, वन विभाग ने सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल की मौजूदगी में काटे गए पेड़ों की बल्ली बनाने का काम पूरा शुरू किया.
इधर पेड़ों की कटाई के विरोध में एक वर्ष से धरना दे रहे ग्रामीणों ने पेड़ों को काटे जाने को दुखद बताया.
पेड़ों की कटाई को लेकर भाजपा और कांग्रेस नेता आमने-सामने
अडानी समूह द्वारा संचालित कोल ब्लॉक के लिए पेड़ों की कटाई को लेकर भाजपा और कांग्रेस के नेता आमने-सामने हैं. बुधवार को भाजपा ने परसा क्षेत्र में पहुंचकर प्रदर्शन किया और पेड़ों की कटाई के लिए कांग्रेस को दोषी बताया.
भाजपा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ने झूठ बोलकर लोगों को भ्रमित किया और लाखों पेड़ कटवा दिए. वहीं, कांग्रेस ने कहा है कि खदान को मंजूरी पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सरकार के कार्यकाल में दी गई थी.
नई दुनिया के मुताबिक, गुरुवार को स्वास्थ्य मंत्री व अंबिकापुर विधायक टीएस सिंहदेव के निवास से कुछ दूर मुख्य मार्ग में एक ओर भाजपा कार्यकर्ता और दूसरी ओर कांग्रेस कार्यकर्ता आमने-सामने आ गए. भाजपा कार्यकर्ता मंत्री निवास घेरने पहुंचे थे.
पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक लिया. उसके बाद भाजपा और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक-दूसरे के खिलाफ जमकर नारेबाजी की.
इसके पहले गुरुवार को भाजपा जिला अध्यक्ष ललन प्रताप सिंह के नेतृत्व में भाजपा के कई नेता और कार्यकर्ता पुराने बस स्टैंड से रैली के रूप में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के निवास तपस्या घेरने निकले थे.
कार्यकर्ताओं को पुलिस व प्रशासन ने बीच में ही रोक लिया गया, जिसके बाद सुरक्षा में तैनात पुलिस बलों के साथ उनकी तीखी झड़प भी हुई.
ललन प्रताप सिंह ने स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव पर निशाना साधते हुए कहा कि उन्होंने जनता से वादा किया था कि ‘एक भी डंगाल नहीं कटेगी. यदि गोली खानी पड़ी तो पहली गोली मैं खाऊंगा’, आज पेड़ कट गए परंतु बयान देने वाले विधायक व मंत्री का कहीं पता नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘स्थानीय ग्रामीणों में भय और भ्रम की स्थिति है, सुरक्षा में लगे पुलिस द्वारा ग्रामीणों को प्रताड़ित किया जा रहा है. वन कटाई क्षेत्र में जाने से रोका जा रहा है, ऐसे में क्षेत्र के विधायक एवं वर्तमान सरकार में कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव सामने आकर वस्तुस्थिति स्पष्ट करें तथा पेड़ों को कटने से बचाने के लिए सार्थक पहल करें.’
वहीं, कांग्रेस ने कहा कि भाजपा झूठ की राजनीति कर रही है. पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल में उक्त कोल ब्लाक को स्वीकृति दी गई थी. पुरानी खदान पीईकेबी को निरस्त करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. यदि भाजपा खदानों को निरस्त करना चाहती है तो प्रधानमंत्री कार्यालय तक उन्हें मार्च निकालना चाहिए.
मालूम हो कि वन विभाग ने इस वर्ष मई में पीईकेबी चरण-2 कोयला खदान की शुरुआत करने के लिए पेड़ काटने की कवायद शुरू की थी. जिसका स्थानीय ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. बाद में इस कार्रवाई को रोक दिया गया था.
इसके बाद, राज्य सरकार ने जून में इन तीन प्रस्तावित कोयला खदान परियोजनाओं से संबंधित सारी प्रक्रियाओं पर रोक लगा दी थी.
भाजपा सरकार की तरह कांग्रेस सरकार भी कॉरपोरेट्स का पक्ष ले रही है: कार्यकर्ता
इस बीच, कोयला खदानों के आवंटन का विरोध कर रहे ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ (सीबीए) के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा है कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य सरकार द्वारा हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोई नई खदान नहीं खोले जाने का आश्वासन देने के बावजूद वहां पेड़ों की कटाई की जा रही है तथा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया जा रहा है.
शुक्ला ने आरोप लगाया कि केंद्र की भाजपा सरकार की तरह छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस सरकार कॉरपोरेट्स का पक्ष ले रही है.
हसदेव अरण्य के समृद्ध जंगल और पर्यावरण को बचाने के लिए आदिवासियों का एक दशक का संघर्ष और छत्तीसगढ़ की सत्ताधारी दल के नेताओं के द्वारा हसदेव को बचाने दिए गए भरोसे को अंततः कुचल दिया गया।#SaveHasdeo pic.twitter.com/RzdUmg9Uvw
— Alok Shukla (@alokshuklacg) September 30, 2022
उन्होंने कहा कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,70,000 हेक्टेयर जंगल नष्ट हो जाएगा और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा.
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इस साल मार्च में छत्तीसगढ़ के समकक्ष भूपेश बघेल से मुलाकात के बाद राज्य सरकार ने सरगुजा और सूरजपुर जिलों की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि परसा खदान के लिए और सरगुजा जिले में पीईकेकेबी फेज-II खदान के लिए 1,136.328 हेक्टयर जमीन का इस्तेमाल गैर-वानिकी कार्य के लिए करने की अनुमति दे दी थी.
वहीं, आरआरवीयूएनएल को हसदेव अरण्य क्षेत्र में आवंटित केंटे एक्सटेंशन कोयला खदान पर जनसुनवाई लंबित है.
अक्टूबर 2021 में ‘अवैध’ भूमि अधिग्रहण के विरोध में आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोगों द्वारा रायपुर तक 300 किलोमीटर पदयात्रा की गई थी और प्रस्तावित खदान के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराया था.
‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ के बैनर तले स्थानीय ग्रामीण पिछले कई महीनों से इन खदानों के आवंटन का विरोध कर रहे हैं.
सरगुजा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सामने आए थे. यहां तक कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी इस महीने की शुरुआत में कैम्ब्रिज दौरे के दौरान कहा था कि उन्हें हसदेव अरण्य में खनन को मंजूरी देने के फैसले से दिक्कत है.
हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस घने जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है. इलाके में खनन बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, जिसका स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं.
हसदेव अरण्य जंगल को 2010 में कोयला मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं जल मंत्रालय के संयुक्त शोध के आधार पर 2010 में पूरी तरह से ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था. हालांकि, इस फैसले को कुछ महीनों में ही रद्द कर दिया गया था और खनन के पहले चरण को मंजूरी दे दी गई थी, जिसमें बाद 2013 में खनन शुरू हो गया था.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर 2021 को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दी थी. परसा आदिवासियों के आंदोलन के बावजूद क्षेत्र में आवंटित छह कोयला ब्लॉकों में से एक है.
खनन गतिविधि, विस्थापन और वनों की कटाई के खिलाफ एक दशक से अधिक समय से चले प्रतिरोध के बावजूद कांग्रेस के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने बीते छह अप्रैल को हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंजूरी दी थी.
यह अंतिम मंजूरी सूरजपुर और सरगुजा जिलों के तहत परसा ओपनकास्ट कोयला खनन परियोजना के लिए भूमि के गैर वन उपयोग के लिए दी गई थी.