एल्गार परिषद मामले में आरोपी 70 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को बीते 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नज़रबंद रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि उसके आदेश का क्रियान्वयन 48 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए. हालांकि सोमवार शाम तक वह जेल में ही थे, क्योंकि उनकी रिहाई की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो सकी हैं.
मुंबई: जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा का नवी मुंबई की तलोजा जेल से बाहर निकलना अब भी बाकी है, जबकि पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने उनके स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें एक महीने के लिए नजरबंद रखने की अनुमति दी थी.
70 वर्षीय नवलखा को अब भी जेल में रखे जाने का कारण उनकी रिहाई की औपचारिकताओं के अब तक प्रक्रिया में होने को बताया जा रहा है.
नवलखा 2017-18 के एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में अप्रैल 2020 से न्यायिक हिरासत में हैं. उन्होंने कई रोगों से खुद के ग्रसित होने का दावा किया है.
सुप्रीम कोर्ट ने 10 नवंबर को उन्हें कुछ शर्तों के साथ नजरबंद रखने की अनुमति देते हुए कहा था कि उसके आदेश का क्रियान्वयन 48 घंटे के अंदर किया जाना चाहिए.
हालांकि, सोमवार शाम तक वह जेल में ही हैं, क्योंकि उनकी रिहाई की औपचारिकताएं पूरी नहीं हो सकी हैं.
उनके वकील के अनुसार, नवलखा की जेल से रिहाई की औपचारिकताएं मुंबई की एक विशेष एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) अदालत के समक्ष सोमवार को शुरू की गई थी, जो उनके खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही है.
जेल से रिहा होने पर नवलखा को नवी मुंबई के बेलापुर में निगरानी में रखा जाएगा. शीर्ष न्यायालय के आदेश के अनुसार, नवलखा मुंबई से बाहर नहीं जा सकेंगे.
उनके वकील ने सोमवार को विशेष एनआईए न्यायाधीश राजेश कटारिया को नजरबंदी पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अवगत कराया और उनकी रिहाई की औपचारिकताएं पूरी करने के लिए शीर्ष न्यायालय द्वारा निर्धारित जमानत राशि भरने की प्रक्रिया शुरू की.
सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा के मुंबई में रहने के लिए कई शर्तें लगाई थीं, जिनमें सुरक्षा के लिए 2.4 लाख रुपये जमा करने, कमरों के बाहर और आवास के प्रवेश एवं निकास द्वार पर सीसीटीवी कैमरे लगाना शामिल है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, सोमवार को जब नवलखा की कानूनी टीम जमानत की आवश्यकता के संबंध में औपचारिकताएं पूरी करने गई, तो रजिस्ट्रार कार्यालय ने उस व्यक्ति के सॉल्वेंसी (करदान क्षमता) प्रमाण-पत्र पर जोर दिया, जो नवलखा के लिए जमानत देने के लिए सहमत हुए थे.
नवलखा के वकील ने तब विशेष एनआईए अदालत के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसमें उन्हें 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के अनुसार 2 लाख रुपये की नकद जमानत देने की अनुमति दी गई और साथ ही उन्हें पुलिस टीम के खर्च और हाउस अरेस्ट अवधि के लिए सुरक्षा शुल्क जमा करने की अनुमति दी गई.
उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें बाद में सॉल्वेंसी सर्टिफिकेट जमा करने की अनुमति दी जाए, क्योंकि संबंधित तहसीलदार के कार्यालय से इसे प्राप्त करने में कम से कम एक महीने का समय लगेगा.
उसके बाद अदालत ने एनआईए से याचिका का जवाब देने को कहा और मामले को मंगलवार को आगे की सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया.
पुलिस टीम और सुरक्षा शुल्क के संबंध में नवलखा को पहले स्थानीय पुलिस आयुक्त कार्यालय को शुल्क का भुगतान करने के लिए कहा गया था, जो सुरक्षा कवर प्रदान करेगा.
नवलखा के वकील ने विशेष अदालत को सूचित किया कि जब कानूनी टीम ने आयुक्त कार्यालय में 2.4 लाख रुपये का ड्राफ्ट जमा किया, तो संबंधित अधिकारी ने भुगतान स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
उसके बाद वकील ने शुल्क लेने से इनकार करने को लेकर नवी मुंबई पुलिस के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया, जो कि नवलखा को हाउस अरेस्ट से रिहा करने की शर्तों में से एक है. अदालत ने भुगतान के मुद्दे पर नवी मुंबई पुलिस और एनआईए को भी नोटिस जारी किया.
गौरतलब है कि नवलखा के खिलाफ मामला 31 दिसंबर 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है. पुलिस का दावा है कि इसकी वजह से अगले दिन पुणे के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के निकट हिंसा हुई थी.
पुणे पुलिस के अनुसार, प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) समूह से जुड़े लोगों ने कार्यक्रम का आयोजन किया था.
मामले के 16 आरोपियों में से केवल दो आरोपी वकील और अधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और तेलुगू कवि वरवरा राव फिलहाल जमानत पर बाहर हैं. 13 अन्य अभी भी महाराष्ट्र की जेलों में बंद हैं.
आरोपियों में शामिल फादर स्टेन स्वामी की पांच जुलाई 2021 को अस्पताल में उस समय मौत हो गई थी, जब वह चिकित्सा के आधार पर जमानत का इंतजार कर रहे थे.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)