गुरुवार को राज्यसभा में देश की अदालतों में लंबित मामलों के बारे में पूछे गए एक सवाल को केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू ने न्यायाधीशों के रिक्त पदों से जोड़ते हुए कहा कि यह मुद्दा जजों की नियुक्तियों के लिए ‘कोई नई प्रणाली’ लाए जाने तक हल नहीं होगा.
नई दिल्ली: केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को न्यायाधीशों के रिक्त पदों को अदालतों में लंबित मामलों की भारी संख्या से जोड़ते हुए उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियों के लिए सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम प्रणाली का जिक्र करते हुए राज्यसभा को बताया कि यह मुद्दा नियुक्तियों के लिए ‘कोई नई प्रणाली’ लाने तक हल नहीं होगा.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, उन्होंने यह भी कहा कि ‘भारत के लोगों के बीच यह भावना है कि अदालतों को मिलने वाली लंबी छुट्टी इंसाफ चाहने वालों के लिए बहुत सुविधाजनक नहीं है’ और यह उनका ‘दायित्व है कि वे इस सदन के संदेश या भावना को न्यायपालिका तक पहुंचाएं.’
राज्यसभा में कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला के अदालतों के कार्य दिवसों की संख्या पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए रिजिजू ने कहा कि देश में लंबित मामलों की संख्या 4.90 करोड़ तक पहुंच गई है.
उन्होंने कहा कि इसके कई कारण हैं, लेकिन ‘प्राथमिक वजह न्यायाधीशों की नियुक्ति’ और स्वीकृत संख्या के अनुरूप उनकी मौजूदगी न होना हैं.
मंत्री के लिखित उत्तर में कहा गया है कि 12 दिसंबर, 2022 तक उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों की स्वीकृत संख्या 25,011 थी, लेकिन 19,192 कार्यरत थे.
उन्होंने कहा कि 1 मई 2014 से 5 दिसंबर, 2022 तक सुप्रीम कोर्ट में 46 जजों की नियुक्ति की गई है. जवाब में यह भी कहा गया कि शीर्ष अदालत की अपनी वेबसाइट के अनुसार, 1 दिसंबर, 2022 तक सुप्रीम कोर्ट में 69,598 मामले और उच्च न्यायालयों में 59.56 लाख मामले लंबित थे.
उन्होंने आगे कहा, ‘इस बिंदु पर सरकार के पास रिक्तियों को कम करने के लिए बहुत सीमित शक्तियां हैं… मैं अदालतों पर ज्यादा टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि कभी-कभी ऐसा लगता है कि सरकार अदालत की शक्तियों में हस्तक्षेप की कोशिश कर रही है. संविधान के प्रावधानों को देखें, तो नियुक्तियों की प्रक्रिया अदालत के परामर्श से सरकार का अधिकार था. 1993 के बाद यह बदल गया. हम लंबित मामलों को खत्म करने को समर्थन दे रहे हैं, लेकिन जब तक हम नियुक्तियों के लिए एक नई प्रणाली स्थापित नहीं करते, तब तक जजों की नियुक्ति पर सवाल उठते रहेंगे.’
गौरतलब है कि संसद के दोनों सदनों ने 2014 के अगस्त माह में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) के प्रावधान वाला 99वां संविधान संशोधन सर्वसम्मति से पारित किया था, जिसमें जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को एक प्रमुख भूमिका दी गई थी.
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में इस कानून को संविधान के बुनियादी ढांचे के अनुरूप न बताते हुए इसे खारिज कर दिया था.
इसका हवाला देते हुए रिजिजू ने कहा कि संसद ने सर्वसम्मति से विधेयक पारित किया था, लेकिन 2015 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे रद्द कर दिया गया था. उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली जनता और सदन की भावनाओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है.
उन्होंने कहा कि एनजेएसी को निरस्त करने वाली संविधान पीठ के सदस्यों सहित कई सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने तब से सार्वजनिक रूप से कहा है कि संसद द्वारा पारित विधेयक को रद्द करना सही नहीं था.
उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह एनजेएसी के सवाल पर कानून मंत्री ने ही राज्यसभा में कहा था कि सरकार का इसे फिर से लाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है.
बीते कुछ समय से कॉलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय है. कानून मंत्री रिजिजू लगातार कॉलेजियम प्रणाली पर निशाना साधते रहे हैं.
रिजिजू के अलावा बीते 7 दिसंबर को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद में पारित राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेएसी) कानून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने को लेकर अदालत पर निशाना साधा था.
उन्होंने कहा था कि यह ‘संसदीय संप्रभुता से गंभीर समझौता’ और उस जनादेश का ‘अनादर’ है, जिसके संरक्षक उच्च सदन एवं लोकसभा हैं.
यह पहली बार नहीं था जब धनखड़ ने उपराष्ट्रपति बनने के बाद एनजेएसी को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना की है. बीते 2 दिसंबर को उन्होंने कहा था कि वह ‘हैरान’ थे कि शीर्ष अदालत द्वारा एनजेएसी कानून को रद्द किए जाने के बाद संसद में कोई चर्चा नहीं हुई. उससे पहले उन्होंने संविधान दिवस (26 नवंबर) के अवसर पर हुए एक कार्यक्रम में भी ऐसी ही टिप्पणी की थी.
इससे पहले रिजिजू कुछ समय से न्यायपालिका, सुप्रीम कोर्ट और कॉलेजियम प्रणाली को लेकर आलोचनात्मक बयान दे रहे हैं.
बीते नवंबर महीने में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम व्यवस्था को ‘अपारदर्शी और एलियन’ बताया था. उनकी टिप्पणी को लेकर शीर्ष अदालत ने नाराजगी भी जाहिर की थी.
सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर सरकार के ‘बैठे रहने’ संबंधी आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए रिजिजू ने कहा था कि ऐसा कभी नहीं कहा जाना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी हुई है.
नवंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि सरकार का कॉलेजियम द्वारा भेजे गए नाम रोके रखना अस्वीकार्य है. कॉलेजियम प्रणाली के बचाव में इसके बाद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि संवैधानिक लोकतंत्र में कोई भी संस्था परफेक्ट नहीं है.
गुरुवार को सदन में महिलाओं, एससी, एसटी और ओबीसी न्यायाधीशों की संख्या पर डीएमके सांसद तिरुचि शिवा के पूरक प्रश्न के जवाब में कानून मंत्री ने कहा कि कोई आरक्षण नीति नहीं थी, लेकिन सरकार ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को जजों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करते समय वंचित समूहों को ध्यान में रखने के लिए लिखा था. उन्होंने कहा कि अब तक एसटी समुदाय से सिर्फ एक जज होता था.