भारतीय सिनेमा के दिग्गज निर्देशक सईद अख़्तर मिर्ज़ा ने एक साक्षात्कार में विवादित फिल्म द कश्मीर फाइल्स को लेकर कहा, ‘फिल्म मेरे लिए कचरा है. बात किसी का पक्ष लेने की नहीं है. इंसान बनिए और मामले को समझने की कोशिश कीजिए.’
नई दिल्ली: पटकथा लेखक और निर्देशक सईद अख्तर मिर्जा ने इस साल चर्चा और कई बार विवादों में रही विवेक अग्निहोत्री की फिल्म द कश्मीर फाइल्स को ‘कचरा’ बताते हुए कहा है कि ‘बात पक्ष लेने की नहीं, विषय को मानवीय रूप से समझने की है.
सिनेमा के क्षेत्र में दिग्गज मिर्जा राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित हैं और नसीम, अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है, सलीम लंगड़े पे मत रो फिल्मों और प्रसिद्ध धारावाहिक नुक्कड़ के लिए जाने जाते हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए उन्होंने इस साल रिलीज हुई द कश्मीर फाइल्स का जिक्र आने पर उन्होंने कहा, ‘मेरे लिए यह फिल्म कचरा है. क्या कश्मीरी पंडितों का मुद्दा कचरा है? नहीं, वो नहीं है. यह वास्तविक है. क्या यह सिर्फ कश्मीरी हिंदुओं के बारे में है? नहीं. इससे मुसलमान भी जुड़े हैं, जो ख़ुफ़िया एजेंसियों की साजिशों के अश्लील जाल, तथाकथित राष्ट्रहितों की बात करने वाले देशों और सीमा पार से कहर बरपाने आने वाले लोगों के बीच फंसे हैं. बात किसी का पक्ष लेने की नहीं है. इंसान बनिए और मामले को समझने की कोशिश कीजिए.’
बातचीत में उन्होंने दिवंगत निर्देशक कुंदन शाह का भी जिक्र किया. मिर्जा ने उनका संस्मरण लिखा है. उन्होंने बताया कि 2002 के गुजरात दंगों के समय शाह ने उनसे माफ़ी मांगी थी.
उन्होंने कहा, ‘उन्होंने मुझसे गुजरात दंगों के बारे में माफ़ी मांगी थी. उनका कहना था कि ‘मैं हिंदू हूं और किसी न किसी को तो जवाबदेह होना ही होगा. मुझे मालूम है कोई नहीं होगा.’ मैंने कहा कि 21वीं सदी में तुम हिंदू बन रहे हो और मैं मुस्लिम? उन्होंने कहा कि बात यही है. तुम इससे मुंह फेर रहे हो, मेरे देश का यही सच है.’
उन्होंने ‘देशभक्ति को पैसा कमाने के तौर पर इस्तेमाल किए जाने के बारे में भी बात की और कहा कि हर कोई ऐसा करता है और इसमें दुनियाभर के कई देश शामिल हैं.
सईद अख्तर मिर्जा को मोहन जोशी हाजिर हो (1984), अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है (1980), सलीम लंगड़े पे मत रो (1989) और नसीम (1995) जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. वह नुक्कड़ (1986) और इंतजार (1988) जैसे लोकप्रिय टीवी धारावाहिकों के निर्देशक हैं. उन्होंने आखिरी बार शॉर्ट फिल्म कर्मा कैफे लिखी थी, जो 2018 में रिलीज हुई थी.
बता दें कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी. फिल्म साल 1990 में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों की हत्या के बाद समुदाय के कश्मीर से पलायन पर आधारित है. इसमें अभिनेता अनुपम खेर, दर्शन कुमार, मिथुन चक्रवर्ती और पल्लवी जोशी समेत अन्य प्रमुख किरदारों में हैं.
बीते महीने गोवा में 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव (इफ्फी) के समापन समारोह में इस्राइली फिल्म निर्माता और समारोह के जूरी सदस्य नदाव लपिद ने ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म को ‘भद्दी’ और ‘दुष्प्रचार वाली’ बताया था. फिल्म का प्रदर्शन 22 नवंबर को इफ्फी के ‘इंडियन पैनोरमा’ वर्ग में किया गया था.
लपिद ने इसके बाद आरोप लगाया था कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ को महोत्सव की आधिकारिक स्पर्धा में ‘राजनीतिक दबाव’ में जबरदस्ती शामिल कराया गया.
लपिद अपने इस बयान के कारण भारत में एक वर्ग के निशाने पर आ गए थे. आलोचनाओं पर प्रतिक्रिया में लपिद ने कहा था कि खराब फिल्म बनाना अपराध नहीं है, लेकिन विवेक अग्निहोत्री निर्देशित यह फिल्म ‘अधूरी, जान-बूझकर तथ्यों से छेड़छाड़ वाली और हिंसक’ है.
विवाद के बीच इफ्फी जूरी के तीन विदेशी सदस्यों ने कहा था कि लपिद ने जो कहा, वे उनके साथ खड़े हैं. इनमें अमेरिकी निर्माता जिन्को गोटोह, फ्रांसीसी फिल्म संपादक पास्कल चावेंस और फ्रांसीसी लघु फिल्म निर्माता जेवियर एंगुलो बारटुरेन शामिल थे.
ज्ञात हो कि फिल्म के रिलीज के बाद राजनीतिक दलों में इसकी विषयवस्तु को लेकर बहस छिड़ गई थी. रिलीज़ के बाद उपजे राजनीतिक विवाद के बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने विवेक अग्निहोत्री को सीआरपीएफ की वाई श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की थी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित भारतीय जनता पार्टी भाजपा के कई नेताओं ने जहां फिल्म, इसके कलाकारों और इसके फिल्म निर्माताओं की प्रशंसा की थी. वहीं, विपक्ष ने इसे एकतरफा और बेहद हिंसक बताया था.
भाजपा के विरोधियों पर तीखा हमला करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 मार्च 2022 को कहा था कि ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए, क्योंकि ये सच को सामने लेकर आती हैं. एक लंबे समय तक जिस सच को छिपाने की कोशिश की गई, उसे सामने लाया जा रहा है, जो लोग सच छिपाने की कोशिश करते थे, वो आज विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने कहा था, ‘इन दिनों द कश्मीर फाइल्स की खूब चर्चा हो रही है. जो लोग हमेशा अभिव्यक्ति की आजादी के झंडे लेकर घूमते हैं, वह पूरी जमात बौखला गई है.’
इसके अलावा फिल्म को भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया गया था और सभी भाजपा शासित राज्यों में फिल्म को कर-मुक्त घोषित कर दिया गया था. इतना ही नहीं कई राज्यों में सरकारी कर्मचारियों को फिल्म देखने के लिए विशेष अवकाश दिया गया था,
फिल्म इस साल सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्मों में से एक है.
फिल्म के सिनेमाघरों में प्रदर्शन के दौरान सांप्रदायिक नारेबाजी भी की गई थी. द वायर की पड़ताल में सामने आया था कि फिल्म के सिनेमाघरों में आने के शुरुआती हफ़्तों में वहां से आक्रामक युवकों के हिंसा भड़काने और मुसलमानों के बहिष्कार का आह्वान करने वाले कई वीडियो सामने आए थे.
ये वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा करने वाले कई लोग लंबे समय से सांप्रदायिक अभियानों का हिस्सा रहे थे.
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘कई अन्य लोग हेट स्पीच देने और ‘लव जिहाद’ जैसे मुद्दों पर नफरत फैलाने या मुसलमानों के सामाजिक-आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने में सक्रिय रहे हैं. इन कार्यकर्ताओं द्वारा बनाए और पोस्ट किए गए वीडियो यह स्पष्ट करते हैं कि फिल्म हिंदुत्व इकोसिस्टम के लिए नफरत के अंगारों को भड़काने का एक जरिया बन गई.’