सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के आदेश को अवैध, दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट 2002 के गुजरात दंगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका से संबंधित बीबीसी के एक डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए राजी हो गया है. शीर्ष न्यायालय अगले सोमवार (6 फरवरी) सुनवाई करेगा.
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी परदीवाला की पीठ ने वकील एमएल शर्मा और वरिष्ठ वकील सीयू सिंह की दलीलों पर गौर किया. दोनों वकीलों ने इस मुद्दे पर अपनी अलग-अलग जनहित याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था.
सुनवाई की शुरुआत में शर्मा ने याचिका का उल्लेख करते हुए कहा कि लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. इस पर सीजेआई ने कहा, ‘इस पर सोमवार (6 फरवरी) को सुनवाई की जाएगी.’
वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह ने इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और वकील प्रशांत भूषण द्वारा दायर एक अलग याचिका का उल्लेख किया.
उन्होंने बताया कि कैसे आपातकालीन शक्तियों का कथित तौर पर इस्तेमाल कर एन. राम और प्रशांत भूषण के ट्वीट हटाए गए. उन्होंने यह भी बताया कि ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन (बीबीसी) की डॉक्यूमेंट्री को दिखाने पर अजमेर स्थित राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों को 14 दिन के लिए निलंबित कर दिया गया है.
इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘हम इस पर सुनवाई करेंगे.’
शर्मा ने डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले के खिलाफ जनहित याचिका दायर करते हुए आरोप लगाया कि यह ‘दुर्भावनापूर्ण, मनमानी और असंवैधानिक’ है.
जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट से बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री (पहले और दूसरे भाग) पर गौर करने तथा उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है, जो 2002 के गुजरात दंगों में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे और उसके लिए जिम्मेदार थे.
शर्मा ने कहा है कि अपनी जनहित याचिका में उन्होंने एक संवैधानिक सवाल उठाया है और शीर्ष अदालत को यह तय करना है कि अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत नागरिकों को 2002 के गुजरात दंगों पर समाचार, तथ्य और रिपोर्ट देखने का अधिकार है या नहीं.
उन्होंने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के 21 जनवरी, 2023 के आदेश को अवैध, दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने का निर्देश देने की मांग की है.
उनकी याचिका में पूछा गया है कि क्या केंद्र सरकार प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगा सकती है, जो संविधान के अनुच्छेद 19(1)(2) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है.
याचिका में दावा किया गया है कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में ‘दर्ज तथ्य’ हैं, जो ‘सबूत’ भी हैं और पीड़ितों के लिए न्याय का मार्ग प्रशस्त करने के वास्ते इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.
मालूम हो कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था.
साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी.
दो भागों की डॉक्यूमेंट्री का दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद – विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद – मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है. इसमें मोदी को ‘बेहद विभाजनकारी’ बताया गया है.
केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने बीते 21 जनवरी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नामक डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था.
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का हिस्सा’ बताते हुए खारिज कर कहा था कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है.
बीते 20 जनवरी को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री पर संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि यह एक ‘गलत आख्यान’ को आगे बढ़ाने के लिए दुष्प्रचार का एक हिस्सा है.
बहरहाल, बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री के साथ खड़ा हुआ है और उसका कहना है कि यह काफी शोध करने के बाद बनाई गई है, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को निष्पक्षता से उजागर करने की कोशिश की गई है. चैनल ने यह भी कहा कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया.
देश के विभिन्न राज्यों के कैंपसों में डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को लेकर विवाद जारी है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्रों ने पिछले सप्ताह विरोध प्रदर्शन किया था, जब विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
देश भर में विपक्षी दल और छात्र समूह डॉक्यूमेंट्री को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कुछ मामलों में पुलिस के साथ झड़पें भी हुई हैं.
इस संबंध में नेशनल अलायंस ऑफ जर्नलिस्ट्स, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स और आंध्र प्रदेश वर्किंग जर्नलिस्ट फेडरेशन जैसे पत्रकार संगठनों की ओर से कहा गया था कि वे विभिन्न विश्वविद्यालयों में बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को प्रसारित करने की कोशिश करने के लिए छात्रों और उनकी यूनियनों पर बढ़ते हमलों से भी बहुत व्यथित हैं. इनके अनुसार, यह प्रेस के अधिकारों और स्वतंत्रता पर हमलों की निरंतरता का हिस्सा है.
हिंदू सेना ने बीबीसी के दिल्ली कार्यालय के बाहर तख्तियां लगाईं
इस बीच हिंदू सेना के सदस्यों ने बीबीसी डॉक्यूमेंट्री को लेकर रविवार को यहां स्थित उसके कार्यालय के बाहर कथित तौर पर बीबीसी विरोधी तख्तियां लगाईं.
विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री को लेकर जारी विवाद के बीच बीबीसी कार्यालय के मुख्य द्वार के बाहर ‘बीबीसी भारत की एकता के लिए खतरा है और इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए’ और ‘बीबीसी भारत की छवि को धूमिल करना बंद करो’ लिखी तख्तियां लगाई गईं. पुलिस ने तख्तियों को हटा दिया.
हिंदू सेना के सदस्यों ने मीडिया संगठन पर भारत और प्रधानमंत्री मोदी दोनों की छवि खराब करने की साजिश रचने का भी आरोप लगाया.
हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने कहा कि बीबीसी देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा है और चैनल को भारत में तुरंत प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.
उन्होंने याद किया कि इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहने के दौरान भारत में बीबीसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. गुप्ता ने दावा किया कि संगठन द्वारा माफी मांगने के बाद प्रतिबंध हटाया गया था.
पूछे जाने पर, पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘पास में मौजूद हमारी गश्ती टीम ने बीबीसी कार्यालय के बाहर तख्तियों को देखा और उन्हें हटाया.’
उन्होंने कहा, ‘उनमें से कुछ (हिंदू सेना के सदस्य) तख्तियों को कहीं और प्रदर्शित करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पुलिस की मौजूदगी के कारण वे नहीं कर सके और भाग गए.’
उन्होंने कहा कि कोई शिकायत नहीं मिलने के कारण कानूनी कार्रवाई शुरू नहीं की गई है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)