चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को ‘असली’ शिवसेना के रूप में मान्यता दी, ‘तीर और धनुष’ चिह्न आवंटित किया

चुनाव आयोग के इस फैसले को उद्धव ठाकरे ने ‘लोकतंत्र की हत्या’ क़रार दिया. उन्होंने कहा कि शिंदे गुट ने शिवसेना का चुनाव चिह्न चुरा लिया है. हम लड़ते रहेंगे और उम्मीद नहीं खोएंगे. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने इस घटनाक्रम को ‘ख़तरनाक’ बताया है.

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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (फोटो: पीटीआई)

चुनाव आयोग के इस फैसले को उद्धव ठाकरे ने ‘लोकतंत्र की हत्या’ क़रार दिया. उन्होंने कहा कि शिंदे गुट ने शिवसेना का चुनाव चिह्न चुरा लिया है. हम लड़ते रहेंगे और उम्मीद नहीं खोएंगे. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने इस घटनाक्रम को ‘ख़तरनाक’ बताया है.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे के गुट को ‘असली’ शिवसेना के रूप में मान्यता दी है. लगभग आठ महीने पहले शिंदे के विद्रोह के कारण मूल पार्टी दो गुटों में बंट गई थी.

चुनाव आयोग ने यह भी घोषणा की है कि शिंदे गुट को ‘तीर और धनुष’ चुनाव चिह्न मिलेगा, जो मूल पार्टी चिह्न है. शिंदे के पार्टी में विद्रोह के बाद आयोग ने इस प्रतीक के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी और शिंदे गुट को ‘दो तलवार और ढाल’ तथा उद्धव ठाकरे खेमे को ‘धधकती मशाल’ का निशान आवंटित कर दिया था.

दोनों धड़ों ने पार्टी के चुनाव चिह्न और पार्टी के नाम दोनों पर अपना दावा पेश किया था और अदालतों तथा चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव आयोग ने 78 पेज के आदेश में दो गुटों के बीच की लंबी लड़ाई की पड़ताल की और कहा कि शिंदे के गुट को 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी के 76 प्रतिशत विजयी वोटों के साथ विधायकों का समर्थन प्राप्त है.

चुनाव आयोग के फैसले से खुश शिंदे ने इसे शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की विरासत की ‘जीत’ बताया.

द हिंदू ने शिंदे के हवाले से कहा, ‘मैं चुनाव आयोग को धन्यवाद देता हूं. लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है. यह (शिवसेना संस्थापक) बालासाहेब (ठाकरे) की विरासत की जीत है. हमारी शिवसेना असली है.’

चुनाव आयोग के फैसले के तुरंत बाद उद्धव ठाकरे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसे ‘लोकतंत्र की हत्या’ बताया.

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने (शिंदे के गुट ने) शिवसेना का चुनाव चिह्न चुरा लिया है. हम लड़ते रहेंगे और उम्मीद नहीं खोएंगे. फिलहाल तो शिंदे को अपनी चोरी से खुश होने दीजिए. एक बार देशद्रोही, हमेशा के लिए देशद्रोही होता है.’

उद्धव ठाकरे खेमे से शिवसेना सांसद संजय राउत ने एनडीटीवी को बताया कि ‘इस तरह के फैसले की उम्मीद थी. हमें चुनाव आयोग पर भरोसा नहीं है’.

सूत्रों के हवाले से न्यूज चैनल ने यह भी कहा कि ठाकरे गुट चुनाव आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा.

शिंदे गुट की प्रवक्ता शीतल म्हात्रे ने कहा कि यह फैसला पूरी तरह मेरिट के आधार पर लिया गया है. म्हात्रे ने कहा, ‘अब जबकि चुनाव चिह्न और संख्या शिंदे गुट के पास है, पार्टी को उम्मीद है कि और लोग (विधायक) जल्द ही शामिल होंगे.’

इस बीच राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने इस घटनाक्रम को ‘खतरनाक’ बताया.

एनसीपी प्रवक्ता क्लाइड कास्त्रो ने कहा, ‘एकनाथ शिंदे गुट की असली शिवसेना के रूप में मान्यता आने वाले समय में हमारे देश में चुनाव प्रक्रिया के लिए खतरनाक साबित होगी. आज मूल शिवसेना के साथ जो हुआ है, वह भाजपा सहित किसी भी राजनीतिक दल के साथ हो सकता है.’

शिंदे के विद्रोह के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाडी सरकार गिर गई थी, उस समय एनसीपी सरकार में शामिल थी.

मालूम हो कि जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में हुए हाई-वोल्टेज विद्रोह में 40 विधायकों के साथ उन्होंने महा विकास अघाड़ी सरकार का साथ छोड़ दिया था.

शिंदे ने उद्धव ठाकरे के नेतृत्व के खिलाफ बगावत करते हुए दावा किया था कि उनके पास शिवसेना के 55 में 40 विधायकों और 18 लोकसभा सदस्यों में से 12 का समर्थन प्राप्त है.

इसके बाद उद्धव के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार गिर गई और शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर एक नई सरकार बना ली थी. उद्धव के इस्तीफे के बाद शिंदे ने भाजपा की मदद से सरकार बनाने हुए मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.

इस विद्रोह के बाद से ठाकरे और शिंदे गुट में पार्टी के नाम और चुनाव चिह्न को लेकर आमने-सामने आ गए थे.

अक्टूबर 2022 में दोनों गुटों के बीच विवाद को लेकर निर्वाचन आयोग ने एक आदेश जारी कर उद्धव ठाकरे नीत गुट के लिए पार्टी के नाम के रूप में ‘शिवसेना – उद्धव बालासाहेब ठाकरे’ नाम आवंटित किया, जबकि एकनाथ शिंदे के गुट को ‘बालासाहेबंची शिवसेना’ (बालासाहेब की शिवसेना) नाम आवंटित किया है.

उद्धव ठाकरे गुट ने दिल्ली हाईकोर्ट में ‘धनुष और तीर’ के चिह्न पर रोक को चुनौती दी है. गुट ने यह तर्क दिया है कि आयोग बिना सुनवाई के ऐसा निर्णय नहीं ले सकता है.

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