14 सितंबर 2020 को हाथरस में कथित तौर पर ऊंची जाति के चार युवकों ने 19 साल की एक दलित युवती का बलात्कार किया था. 29 सितंबर 2020 को दिल्ली में इलाज के दौरान युवती की मौत हो गई थी. हाथरस की एक विशेष अदालत ने चार में से एक आरोपी को ग़ैर-इरादतन हत्या का दोषी ठहराया है.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के हाथरस में साल 2020 में 19 वर्षीय दलित युवती के सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले में चार में से तीन आरोपियों को बृहस्पतिवार (2 मार्च) को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अदालत ने बरी कर दिया. इतना ही नहीं अदालत ने किसी भी आरोपी को सामूहिक बलात्कार का दोषी नहीं पाया.
29 सितंबर 2020 को दिल्ली में इलाज के दौरान युवती की मौत हो गई थी और उनके परिवार की सहमति के बिना आधी रात को पुलिस अधिकारियों (कथित तौर पर हाथरस डीएम के निर्देश पर) द्वारा उनका अंतिम संस्कार किया गया था, जिसकी वजह से देश के विभिन्न हिस्सों में आक्रोश पैदा हो गया था.
सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के आरोपी युवक कथित ‘उच्च’ जाति के ठाकुर थे, जिसकी वजह से तमाम लोगों ने कई वर्षों के जातिगत अन्याय पर सवाल खड़े किए थे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, हाथरस की अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार अधिनियम से जुड़ी एक विशेष अदालत के न्यायाधीश त्रिलोक पाल सिंह ने सिर्फ संदीप (20 वर्ष) को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304 के तहत गैर-इरादतन हत्या के अपराध और एससी/एसटी अधिनियम के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया.
मामले के तीन अन्य आरोपी – रवि (35 वर्ष), लव कुश (23 वर्ष) और रामू (26 वर्ष) – जिन्होंने मामले में मुकदमे का सामना किया, को अदालत ने आरोपों से बरी कर दिया गया. हालांकि विशेष अदालत ने इन चार आरोपियों में से किसी को भी गैंगरेप या हत्या के अपराध का दोषी नहीं पाया.
14 सितंबर 2020 को हाथरस में कथित तौर पर ऊंची जाति के चार युवकों ने 19 साल की एक दलित युवती का बलात्कार किया था. इसके अलावा उनके साथ बुरी तरह मारपीट भी की गई थी. उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आई थीं. आरोपियों ने उनकी जीभ भी काट दी थी.
29 सितंबर 2020 को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में इलाज के दौरान युवती की मौत के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसके शव का कथित रूप से जबरन अंतिम संस्कार करा दिया था.
युवती के भाई की शिकायत के आधार पर चार आरोपियों- संदीप (20 वर्ष), उसके चाचा रवि (35 वर्ष) और दोस्त लवकुश (23 वर्ष) तथा रामू (26 वर्ष) को गिरफ्तार किया गया था. उनके खिलाफ गैंगरेप और हत्या के प्रयास के अलावा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारक अधिनियम) के तहत मामला दर्ज किया गया था.
हड़बड़ी में किए गए दाह संस्कार को ‘बेहद संवेदनशील’ मामला बताते हुए और नागरिकों के बुनियादी मानवीय/मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2020 में पूरे प्रकरण का स्वत: संज्ञान लिया था.
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने मामले में प्रशासन द्वारा आननफानन में देर रात शव जलाए जाने की घटना को प्रथमदृष्टया मृतक युवती और उनके परिवार के लोगों के मानवाधिकार का उल्लंघन करार दिया था.
मामले की जांच अक्टूबर 2020 में सीबीआई को दे दी गई थी. सीबीआई ने दिसंबर 2020 में चारों आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट (आरोप-पत्र) दायर की थी.
सीबीआई द्वारा दायर चार्जशीट में युवती के बयान की अनदेखी करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस को दोषी ठहराया गया था.
सीबीआई की चार्जशीट में कहा गया था, ‘22 सितंबर (2020) को अपनी पूछताछ के दौरान युवती ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसके साथ चार आरोपियों ने गैंगरेप किया था; उसने मृत्यु पूर्व दिए गए बयान में उनका नाम भी लिया था. यह स्थापित करता है कि 14 सितंबर (2020) को पीड़िता के साथ जब वह खेत में अकेली थी तो उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था. जांच में यह भी पता चला कि चारों आरोपी गांव या आसपास मौजूद थे, जिससे पीड़िता के आरोप की पुष्टि होती है.’
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पीड़ित परिवार की ओर से पेश वकील सीमा कुशवाहा ने कहा, ‘हम इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करने की कोशिश करेंगे.’
सीमा कुशवाहा ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक परिवार के पुरुष सदस्यों को सरकारी नौकरी नहीं दी है. उन्होंने कहा, ‘उन्हें नौकरी देने के स्पष्ट निर्देश के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं दी गई है.’
इंडियन एक्सप्रेस की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक, घटना के बाद से नौ लोगों का परिवार भारी सुरक्षा घेरे में रह रहा है. उनकी सुरक्षा में नकाबपोश सीआरपीएफ जवानों की 30 सदस्यीय कंपनी तैनात है, जो आंसू गैस के गोले दागने वाले हथियार और राइफल से लैस है, जबकि उनके घर के बाहर मेटल डिटेक्टर, सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए युवती के भाई ने कहा, ‘हम चाहते हैं कि यह सब खत्म हो जाए. हमें उम्मीद थी कि मामले में सामने आए सबूतों से सभी आरोपियों को सजा दिलाने में मदद मिलेगी. हम यह सब अपने पीछे छोड़कर गांव छोड़ना चाहते हैं, लेकिन हम अभी नहीं जा सकते हैं और इसी सुरक्षा में रहेंगे. यह हमें सुरक्षित महसूस कराता है, लेकिन इससे दम भी घुटता है. यह कारावास जैसा है.’
परिवार ने दावा किया कि उनके पास आने वाले एक रिश्तेदार को छोड़कर, वे किसी भी मेहमान को अपने यहां आमंत्रित नहीं कर सकते हैं. घर में प्रवेश करने के लिए सीआरपीएफ के वरिष्ठ अधिकारियों से पूर्व अनुमति लेनी होती है और उचित दस्तावेज सत्यापन के बाद ही वे घर में प्रवेश कर सकते हैं.
उन्होंने कहा कि परिवार में तीन युवा लड़कियां 2020 से स्कूल नहीं गई हैं.