जम्मू: तबादले की मांग कर रहे कश्मीरी पंडित कर्मचारियों का प्रदर्शन वेतन रोके जाने के बाद ख़त्म

मई 2022 से कश्मीर में बढ़े लक्षित हत्याओं के मामलों के बाद से प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे अनेक कश्मीरी पंडित घाटी से तबादले की मांग को लेकर जम्मू में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. 4 मार्च को प्रदर्शन ख़त्म करते हुए उन्होंने कहा कि कई महीनों से वेतन रोके जाने से वे आर्थिक तौर पर टूट चुके हैं और अब उनके पास प्रशासन के आगे 'सरेंडर' करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.

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तबादले की मांग को लेकर प्रदर्शन करते कश्मीरी पंडित कर्मचारी. (फोटो साभार: ट्विटर/@AMEAK_Displaced)

मई 2022 से कश्मीर में बढ़े लक्षित हत्याओं के मामलों के बाद से प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे अनेक कश्मीरी पंडित घाटी से तबादले की मांग को लेकर जम्मू में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. 4 मार्च को प्रदर्शन ख़त्म करते हुए उन्होंने कहा कि कई महीनों से वेतन रोके जाने से वे आर्थिक तौर पर टूट चुके हैं और अब उनके पास प्रशासन के आगे ‘सरेंडर’ करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.

तबादले की मांग को लेकर प्रदर्शन करते कश्मीरी पंडित कर्मचारी. (फोटो साभार: ट्विटर/@AMEAK_Displaced)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर में बढ़ते लक्षित हत्याओं के मामलों के मद्देनज़र तीन सौ दिन से अधिक से जम्मू में घाटी से बाहर तबादले की मांग कर रहे कश्मीरी पंडित कर्मचारियों के समूह ने अपना विरोध प्रदर्शन समाप्त कर दिया है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को प्रदर्शन खत्म करते हुए उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारी अब आर्थिक तौर पर टूट चुके हैं क्योंकि सरकार ने उनका वेतन कई महीनों से रोक दिया है.

जो कश्मीरी पंडित कर्मचारी काम बंद करके जम्मू पहुंचकर प्रदर्शन कर रहे थे उन्होंने कहा कि सरकार ने महीनों से वेतन रोकते हुए उन्हें आर्थिक रूप से खत्म कर दिया है और अब उनके पास ‘सरेंडर’ करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है.

ज्ञात हो कि आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाकर लगातार की जा रहीं हत्याओं (Targeted Killings) के बाद से घाटी में प्रधानमंत्री पुनर्वास पैकेज के तहत काम कर रहे अनेक कश्मीरी पंडित 310 दिनों से जम्मू में पुनर्वास आयुक्त कार्यालय में विरोध प्रदर्शन कर रहे थे.

प्रधानमंत्री पैकेज के तहत काम करने वाले लगभग 6,000 विस्थापित कश्मीरी पंडित समुदाय के सैकड़ों कर्मचारी पिछले साल मई को आतंकवादियों द्वारा उनके सहयोगियों राहुल भट और रजनी बाला की हत्या के बाद जम्मू पहुंचे थे. उनका आरोप था कि सरकार उन्हें सुरक्षा देने में असफल रही है.

12 मई 2022 को मध्य कश्मीर के बडगाम जिले में भट की उनके कार्यालय के अंदर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जबकि स्कूल शिक्षक बाला की हत्या 31 मई 2022 को दक्षिण कश्मीर के कुलगाम में गोली मारकर की गई थी.

2019 में जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद यह पहली बार था कि केंद्र में भाजपा सरकार का दृढ़ता से समर्थन करने वाला कश्मीरी पंडित समुदाय इसके खिलाफ हुआ था.

ऑल माइग्रेंट (डिस्प्लेज़्ड) एम्प्लॉइज एसोसिएशन (एएमईएके) के प्रमुख रूबन सप्रू, ने जम्मू में संवाददाताओं से कहा, ‘आपने उनका (प्रवासी कर्मचारियों का) गला घोंट दिया और उसके परिवार को नुकसान पहुंचाया. आपने उसे सड़क पर छोड़ दिया, उसके मन की बात कभी नहीं सुनी. हमारे पास कोई ताकत नहीं है, सत्ता के गलियारों में हमारी कोई भूमिका नहीं है. आपने हमारी कमजोरी को सामने लाया. सभी (प्रवासी पंडित) कर्मचारी आज सरकार के सामने झुक रहे हैं.’

उल्लेखनीय है कि बीते 26 फरवरी को  दक्षिण कश्मीर के पुलवामा ज़िले के अचन इलाके में हुई कश्मीरी पंडित संजय कुमार शर्मा की आतंकवादियों द्वारा गोली मारकर हत्या के विरोध में प्रदर्शन करते हुए कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने घाटी से ट्रांसफर करने की मांग दोहराई थी.

टेलीग्राफ के अनुसार, सरकारी सूत्रों ने बताया कि पिछले कुछ महीनों में वेतन रोके जाने के बाद सैकड़ों कर्मचारी चुपचाप घाटी लौट आए थे, जिससे उनके बीच फूट पड़ने की शुरुआत हो गई थी.

रिपोर्ट के अनुसार, शनिवार को प्रदर्शन खत्म किए जाने को लेकर दुखी कर्मचारियों ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहा. हालांकि, रूबन ने जोड़ा कि वे अपना प्रदर्शन ‘बंद’ कर रहे हैं, लेकिन अब तक इस बारे में कोई फैसला नहीं लिया गया है कि वे घाटी में अपनी ड्यूटी पर लौटेंगे या नहीं.

अख़बार के अनुसार, एक कर्मचारी ने कहा, ‘हम लौटना तो चाहते हैं, लेकिन यह भी चाहते हैं कि सरकार हमारे लिए फूलप्रूफ सुरक्षा का इंतजाम करे. सब जानते हैं कि वापस जाना कितना जोखिम भरा है. हत्याएं अब तक नहीं रुकी हैं. साथ ही हममें से किसी को भी प्रदर्शन का हिस्सा होने के लिए निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए.’

रूबन सप्रू ने आगे कहा, ‘हमारे माता-पिता, संगठनों और राजनीतिक नेतृत्व ने हमारे प्रदर्शन को जायज़ बताते हुए समर्थन दिया था, लेकिन कर्मचारियों के साथ जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण है.’

उन्होंने जोड़ा कि सरकार ने उनकी मूल मांग- घाटी से स्थानांतरण- को नजरअंदाज करना चुना और उनकी तनख्वाह रोक दी. उन्होंने कहा, ‘हम केंद्रशासित प्रदेश के प्रशासन के आगे सरेंडर कर रहे हैं. हमारी भावनाएं आहत हैं. हम पीड़ा में हैं. मैं कर्मचारियों से (पीछे हटने के लिए) माफ़ी मांगता हूं, हालांकि हमने इन मुद्दों के समाधान के लिए पूरी कोशिश की.’ उन्होंने कहा कि यह सरकार पर है कि वो आगे क्या कार्रवाई करती है.

उधर, कर्मचारी संगठन ने एक ट्वीट में कहा, ‘हमने अल्पविराम लिया है, पूर्ण विराम नहीं. प्रशासन को उस दुख, पीड़ा और डर को समझना चाहिए, जिसका सामना कश्मीरी पंडित कर्मचारियों को करना पड़ रहा है.’

उल्लेखनीय है कि दिसंबर 2022 में केंद्र सरकार ने बताया था कि कश्मीर घाटी में साल 2020 से अब तक 9 कश्मीरी पंडित मारे गए हैं, जिनमें से एक कश्मीरी राजपूत समुदाय से थे.

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2020 के बाद से कश्मीर में अल्पसंख्यक समुदायों के लगभग दो दर्जन सदस्य मारे गए हैं. इनमें से तीन कश्मीरी पंडित सहित कम से कम 14 लोगों की पिछले साल आतंकियों द्वारा हत्या की गई है.

सितंबर 2022 में सरकार ने संसद को सूचित किया था कि जम्मू कश्मीर में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद से और इस साल जुलाई के मध्य तक पांच कश्मीरी पंडित और 16 अन्य हिंदुओं तथा सिखों सहित 118 नागरिक मारे गए थे.

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