इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोहत्या विरोधी क़ानून के ‘दुरुपयोग’ के लिए यूपी सरकार को फटकार लगाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी गोहत्या निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों के तहत दर्ज एक अभियुक्त को अग्रिम ज़मानत देते हुए इस क़ानून के ‘दुरुपयोग’ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और कहा कि जांच अधिकारियों ने निष्पक्ष जांच नहीं की. इस संबंध में दर्ज एफ़आईआर केवल आशंका और संदेह पर आधारित है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी गोहत्या निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों के तहत दर्ज एक अभियुक्त को अग्रिम ज़मानत देते हुए इस क़ानून के ‘दुरुपयोग’ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई और कहा कि जांच अधिकारियों ने निष्पक्ष जांच नहीं की. इस संबंध में दर्ज एफ़आईआर केवल आशंका और संदेह पर आधारित है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी गोहत्या निवारण अधिनियम के कई प्रावधानों के तहत दर्ज एक अभियुक्त को अग्रिम जमानत देते हुए इस कानून के ‘दुरुपयोग’ के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच अधिकारियों ने निष्पक्ष जांच नहीं की कहते हुए जस्टिस मो. फैज आलम खान ने कहा कि एफआईआर केवल ‘आशंका और संदेह’ पर आधारित थी.

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस द्वारा मौके से कोई भी प्रतिबंधित जानवर या उसका मांस बरामद नहीं होने के बाद भी आरोप पत्र दायर किया गया है, वहां से सिर्फ गाय का गोबर और एक रस्सी मिली थी.

अदालत ने राज्य के पुलिस प्रमुख को जांच अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने का आदेश देते हुए कहा, ‘सरकार का कर्तव्य निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करना है, जो इस अदालत की राय में मौजूदा मामले में नहीं की गई है.’

अदालत मामले के एक आरोपी निजामुद्दीन की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. उन पर यूपी गोहत्या निवारण अधिनियम की धारा 3, 5 और 8 के तहत मामला दर्ज किया गया था.

अभियोजन पक्ष का कहना है कि 16 अगस्त, 2022 को मामले के चार आरोपियों ने एक आरोपी जमाल के गन्ने के खेत में एक बछड़े को काट दिया था.

पुलिस ने कहा कि मौके पर पहुंचने वाले पहले मुखबिर को ‘एक रस्सी और अर्ध-पचा हुआ गोबर’ मिला था. एफआईआर में यह भी कहा गया है कि कुछ ग्रामीणों ने आरोपी को एक बछड़े को खेत में ले जाते हुए देखा था.

मामले में जांच अधिकारी ने पाया था कि मौके पर एक रस्सी और गाय का गोबर मिला था. अधिकारियों ने गाय के गोबर को जांच के लिए फॉरेंसिक लैब भी भेजा था. हालांकि, जांच के अनुरोध को लैब ने यह कहते हुए ठुकरा दिया कि वह गाय के गोबर का विश्लेषण नहीं करती है.

अदालत ने कहा कि एफआईआर केवल ‘संदेह और आशंका’ पर दर्ज की गई थी.

अदालत ने कहा कि आवेदक का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है और इसलिए ट्रायल कोर्ट द्वारा पर्याप्त शर्तें लगाकर उसकी उपस्थिति को सुरक्षित किया जा सकता है. आवेदक को अग्रिम जमानत दी गई है.

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