सत्यपाल मलिक के आरोप पर थरूर ने कहा- मीडिया ऐसी ख़बर की अनदेखी कैसे कर सकता है

जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा केंद्र और प्रधानमंत्री मोदी पर पुलवामा आतंकी हमले को लेकर लगाए गए गंभीर आरोपों को भारतीय मीडिया ने क़रीब-क़रीब अनदेखा कर दिया है. इस पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि ख़बर को दबाने में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा हित नहीं है. ऐसी अनदेखी केवल सत्तारूढ़ भाजपा के हित पूरे करती है.

/
New Delhi: Congress MP Shashi Tharoor arrives to attend the Monsoon session of the Parliament, in New Delhi on Tuesday, July 24, 2018. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI7_24_2018_000069B)
शशि थरूर. (फोटो: पीटीआई)

जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा केंद्र और प्रधानमंत्री मोदी पर पुलवामा आतंकी हमले को लेकर लगाए गए गंभीर आरोपों को भारतीय मीडिया ने क़रीब-क़रीब अनदेखा कर दिया है. इस पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा है कि ख़बर को दबाने में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा हित नहीं है. ऐसी अनदेखी केवल सत्तारूढ़ भाजपा के हित पूरे करती है.

New Delhi: Congress MP Shashi Tharoor arrives to attend the Monsoon session of the Parliament, in New Delhi on Tuesday, July 24, 2018. (PTI Photo/Kamal Kishore) (PTI7_24_2018_000069B)
शशि थरूर. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: जम्मू कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा लगाए गए चौंका देने वाले आरोपों को भारतीय मीडिया ने करीब-करीब अनदेखा (ब्लैकआउट) कर दिया है, इस पर निराशा व्यक्त करते हुए तिरुवनंतपुरम के कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि ‘मीडिया को भारत सरकार पर ईमानदारी से विफलता की स्वीकारोक्ति और सुधारात्मक कार्रवाई के लिए दबाव डालना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि ‘खबर को दबाने में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा हित नहीं है’ और इस तरह की अनदेखी केवल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के हितों को पूरा करती है.

द वायर को हाल ही में दिए एक साक्षात्कार में सत्यपाल मलिक ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने उन्हें चुप रहने के लिए कहा था, जब जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के रूप में उन्होंने पुलवामा आतंकवादी हमले को रोकने में सरकारी एजेंसियों विफलता की ओर इशारा किया. 2019 में हुए इस हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 जवान शहीद हो गए थे.

मीडिया में इस तरह के गंभीर आरोपों की ‘अंडर-रिपोर्टिंग’ पर प्रतिक्रिया देते हुए थरूर ने रविवार को मलिक के ‘खुलासों’ को बिंदुवार प्रस्तुत किया.

1. सीआरपीएफ ने जवानों को हवाई मार्ग से ले जाने के लिए विमान मांगा; इसके लिए गृह मंत्रालय ने मना कर दिया.

2. चयनित रास्ते को अच्छी तरह से खंगाला नहीं गया था. 8-10 जुड़ी हुईं सड़कों, जो काफिले पर हमले के लिए इस्तेमाल की जा सकती थीं, पर सुरक्षाकर्मी तैनात नहीं किए गए थे.

3. पाकिस्तान से 300 किलो आरडीएक्स वाली एक कार जम्मू कश्मीर में घुसी और 10 दिनों तक बेरोकटोक घूमती रही.

4. राज्यपाल मलिक ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) को खुफिया तंत्र और सुरक्षा विफलताओं के बारे में बताया और उन्हें सार्वजनिक रूप से इस बारे में न बोलने के निर्देश दिए गए.

5. अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर राज्यपाल को अंतिम समय में सूचित किया गया था, जबकि संवैधानिक तौर पर बदलाव के लिए उन्हें ही सहमति देनी थी. राज्यपाल मलिक ने महसूस किया कि जम्मू कश्मीर को एक राज्य से केंद्र शासित प्रदेश में बदलना (डाउनग्रेड करना) एक अनावश्यक अपमान था, जिसने कश्मीरी गौरव को चोट पहुंचाई.

उन्होंने कहा कि इस तरह के सभी आरोप ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले हैं, जो राष्ट्र के लिए चिंता का विषय होना चाहिए’ और पूछा कि ‘कोई भी गंभीर मीडिया इस तरह की बड़ी खबरों की अनदेखी कैसे कर सकता है.’

थरूर ने कहा कि मलिक का दावा कि प्रधानमंत्री कश्मीर के बारे में अनभिज्ञ हैं और उन्हें भ्रष्टाचार की परवाह नहीं है, यह पूर्व राज्यपाल का ख्याल हो सकता है.

लेकिन थरूर ने कहा कि जब मलिक ने राज्यपाल रहते हुए ‘राष्ट्रीय त्रासदी’ के लिए सरकारी अधिकारियों को दोषी ठहराया, तो इसे रिपोर्ट करने में विफलता मीडिया का ‘जान-बूझकर कर्तव्य से मुंह फेरना’ दिखाता है और ‘कानून द्वारा अमसमर्थित सेंशरशिप का सबूत है.’

उन्होंने ट्वीट किया, ‘अगर सरकार इस तरह से मीडिया का मुंह बंद कर सकती है तो हमें यह दावा करना बंद कर देना चाहिए कि हम एक स्वतंत्र प्रेस वाले लोकतंत्र हैं.’

उन्होंने कहा, ‘40 जवान हमारे पास वापस नहीं आएंगे, लेकिन वे और हमारा देश सच्चाई जानने के हकदार हैं.’

गौरतलब है कि इससे पहले विपक्षी दल और अन्य नेता भी मलिक के आरोपों पर सरकार से स्पष्टीकरण मांग चुके हैं. कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सत्यपाल मलिक द्वारा लगाए गए इन आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी चुप्पी तोड़ने का आग्रह किया था, लेकिन सरकार और न ही सत्तारूढ़ दल भाजपा की ओर से इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया आई है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.