1988 से 42 संसद सदस्यों ने अपनी सदस्यता गंवाई, 14वीं लोकसभा में सर्वाधिक अयोग्य घोषित हुए: रिपोर्ट

चौदहवीं लोकसभा में सर्वाधिक 19 संसद सदस्यों को अयोग्यता का सामना करना पड़ा था. 10 सांसदों को पैसा लेकर संसद में सवाल करने के अशोभनीय आचरण के चलते अयोग्य क़रार दिया गया था, जबकि 9 सांसदों को विश्वास मत के दौरान क्रॉस-वोटिंग करने के लिए बाहर का रास्ता दिखाया गया था.

(फोटो साभार: एएनआई)

14वीं लोकसभा में सर्वाधिक 19 संसद सदस्यों को अयोग्यता का सामना करना पड़ा था. 10 सांसदों को पैसा लेकर संसद में सवाल करने के अशोभनीय आचरण के चलते अयोग्य क़रार दिया गया था, जबकि 9 सांसदों को विश्वास मत के दौरान क्रॉस-वोटिंग करने के लिए बाहर का रास्ता दिखाया गया था.

(फोटो साभार: एएनआई)

नई दिल्ली: हाल ही में लोकसभा से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अयोग्यता ने एक अधिनियम के प्रावधानों को सुर्खियों में ला दिया है, जिसका इस्तेमाल 1988 के बाद से 42 सदस्यों को संसद से बाहर करने के लिए किया गया है, जिनमें से 14वीं लोकसभा में ‘नकद के बदले सवाल’ घोटाले (कैश फॉर क्वेरी) और क्रॉस-वोटिंग के संबंध में 19 सांसदों को संसद से बाहर का रास्ता दिखाया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सांसदों को विभिन्न आधारों पर अयोग्य ठहराया गया है, जैसे कि- राजनीतिक निष्ठा बदलना, एक सांसद के तौर पर अशोभनीय आचरण करना और दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराधों के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराया जाना.

हाल ही में अयोग्य ठहराए गए कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता मोहम्मद फैजल पीपी और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अफजल अंसारी को अदालत द्वारा दो साल से अधिक की जेल की सजा सुनाई गई थी. जिसके बाद जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान लागू हो गए.

इस अधिनियम के तहत एक आपराधिक मामले में दोषी ठहराए जाने और दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाए जाने पर सांसद और विधायक स्वत: ही अयोग्य हो जाते हैं.

लोकसभा में लक्षद्वीप का प्रतिनिधित्व करने वाले फैजल की अयोग्यता के फैसले को तब वापस ले लिया गया था, जब केरल हाईकोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि और सजा पर रोक लगा दी. उन्हें हत्या के प्रयास संबंधी मामले में सजा सुनाई गई थी.

राहुल गांधी ने ‘मोदी सरनेम’ से जुड़े आपराधिक मानहानि के मामले में राहत पाने के लिए गुजरात हाईकोर्ट का रुख किया है. उन्हें सूरत की एक अदालत ने दो साल जेल की सजा सुनाई थी.

1985 में दलबदल विरोधी कानून लागू होने के बाद अयोग्य ठहराए गए पहले लोकसभा सदस्य कांग्रेस के लालदुहोमा थे, जिन्होंने मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए मिजो नेशनल यूनियन के उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया. इस पार्टी के वही संस्थापक थे.

नौवीं लोकसभा में जब जनता दल के तत्कालीन नेता वीपी सिंह ने गठबंधन सरकार बनाई, तो लोकसभा के नौ सदस्यों को दलबदल विरोधी कानून के उल्लंघन में अयोग्य करार दिया गया.

हालांकि, 14वीं लोकसभा (साल 2004) में सर्वाधिक संसद सदस्यों को अयोग्यता का सामना करना पड़ा था. 10 सांसदों को पैसा लेकर संसद में सवाल करने के अशोभनीय आचरण के चलते अयोग्य करार दिया गया था, जबकि 9 सांसदों को विश्वास मत के दौरान क्रॉस-वोटिंग करने के लिए बाहर का रास्ता दिखाया गया था.

बता दें कि जुलाई 2008 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की पहली सरकार में लाए गए विश्वास मत के दौरान वाम मोर्चे ने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते को लेकर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था.

2005 में भाजपा के छह सदस्यों, बसपा के दो और कांग्रेस व राजद के एक-एक सदस्य को ‘कैश फॉर क्वेरी’ घोटाले को लेकर लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था. बसपा के एक राज्यसभा सदस्य को भी सदन से निष्कासित किया गया था.

रिपोर्ट के अनुसार, लोकसभा के पूर्व अतिरिक्त सचिव देवेंद्र सिंह असवाल ने बताया, ‘निष्कासन को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरकरार रखा गया था. इनमें से किसी भी मामले को निष्कासन की मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया था.’

10वीं लोकसभा में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था, तब दल-बदल विरोधी कानून के तहत चार सदस्य सदन से अयोग्य ठहराए गए थे.

दल-बदल विरोधी कानून के तहत राज्यसभा में भी सदस्य अयोग्य ठहराए गए हैं, जिनमें मुफ्ती मोहम्मद सईद (1989), सत्यपाल मलिक (1989), शरद यादव (2017) और अली अनवर (2017) जैसे नाम शामिल हैं.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन और समाजवादी पार्टी (सपा) की सदस्य जया बच्चन को भी क्रमशः 2001 और 2006 में लाभ का पद धारण करने के चलते राज्यसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. सोरेन जहां झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे, वहीं जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष थीं.

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष का लाभ का पद धारण करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भी एक अयोग्यता याचिका लाई गई थी, जो उनके लोकसभा की सदस्यता छोड़ने के चलते निष्फल हो गई थी.

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत के एक निर्णय, जिसे लिली थॉमस मामले के रूप में संदर्भित किया गया है, ने कानूनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा था कि कोई भी दोषसिद्धि जिसमें दो साल या उससे अधिक की सजा हो, के बाद स्वत: ही एक निर्वाचित प्रतिनिधि अयोग्य हो जाएगा.

फैसले के परिणामस्वरूप कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद को भ्रष्टाचार के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के कारण उच्च सदन से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

इसी तरह, चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद और जदयू सदस्य जगदीश शर्मा को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था.