कर्नाटक चुनाव: आरक्षण में बढ़ोतरी के बावजूद भाजपा ने एससी/एसटी की 51 में से 39 सीटें गंवाईं

विधानसभा चुनाव से तीन महीने पहले कर्नाटक की पिछली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया था. साथ ही, अनुसूचित जाति के बीच आंतरिक आरक्षण की भी घोषणा की थी.

(फोटो साभार: फेसबुक/BJP Karnataka)

विधानसभा चुनाव से तीन महीने पहले कर्नाटक की पिछली भारतीय जनता पार्टी सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया था. साथ ही, अनुसूचित जाति के बीच आंतरिक आरक्षण की भी घोषणा की थी.

(फोटो साभार: फेसबुक/BJP Karnataka)

बेंगलुरु: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाने और अनुसूचित जाति के बीच आंतरिक आरक्षण प्रदान करने का कर्नाटक की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार का फैसला वोटों में तब्दील नहीं हुआ, क्योंकि पार्टी ने इस बार 51 आरक्षित सीटों में से सिर्फ 12 सीटें जीतीं. 2018 में उसे 22 सीटों पर जीत मिली थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चुनाव से तीन महीने पहले सरकार ने अनुसूचित जाति (एससी) के लिए आरक्षण 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 17 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया था.

उसे उम्मीद थी कि इस कदम से इन सीटों पर उसका प्रदर्शन 2018 की तुलना में इस बार बेहतर होगा. पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 16 अनुसूचित जाति और 6 अनुसूचित जनजाति की सीटों पर जीत मिली थी.

इस बार भाजपा को केवल 12 एससी सीटों पर जीत मिली और 15 एसटी सीटों में से कोई भी उसकी झोली में नहीं गई. कांग्रेस को 21 एससी और 14 एसटी सीटों पर जीत मिली, जबकि 2018 में उसे 12 एससी और 8 एसटी सीटों पर सफलता मिली थी. एनडीटीवी के मुताबिक, भाजपा एससी आरक्षित 13 सीटों पर दूसरे पायदान पर रही.

जनता दल (सेक्युलर) ने 4 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की है, जिनमें तीन एससी और एक एसटी सीट है.

बता दें कि कर्नाटक में 51 आरक्षित सीटें हैं, जिनमें 36 अनुसूचित जाति और 15 अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, हाई-प्रोफाइल मोलाकलमुरु सीट, जिसका प्रतिनिधित्व वाल्मीकि समुदाय के सबसे बड़े नेताओं में से एक बी. श्रीरामुलु करते थे, भी भाजपा हार गई. श्रीरामुलु को 2018 के चुनावों से पहले उपमुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया गया था. कुदलीगी से भाजपा के पूर्व विधायक एनवाई गोपालकृष्ण, जो चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हो गए थे, ने श्रीरामुलु को हराया.

लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मंत्री गोविंद करजोल, जो पूर्व में उपमुख्यमंत्री भी रहे, एससी आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों से हारने वाले भाजपा विधायकों में से एक हैं.

गौरतलब है कि अपने सोशल इंजीनियरिंग के प्रयास में भाजपा ने दलितों के बीच अधिक पिछले समूह माने जाने वाले एससी लेफ्ट समूह के लिए 6 फीसदी आंतरिक आरक्षण की घोषणा की थी.

एससी राइट समूह को 5.5 फीसदी हिस्सा मिला, ‘स्पर्श योग्य समुदाय’ जैसे कि बंजारा और भोवी को 4.5 फीसदी और अन्य एससी समुदायों को बाकी बचा 1 फीसदी हिस्सा मिला था. इस कदम का बंजारा समुदाय के सदस्यों ने हिंसक विरोध किया था.

कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी की सामाजिक न्याय शाखा के अध्यक्ष सीएस द्वारकानाथ ने कहा कि सरकार का कदम विफल रहा, क्योंकि लोगों ने भाजपा की बेईमानी देख ली.

उन्होंने कहा, ‘किसी भी जाति के लिए आरक्षण बढ़ाने या घटाने की एक लंबी प्रक्रिया है. निर्णय का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक डेटा होना चाहिए. लेकिन इस मामले में ऐसा कोई डेटा नहीं था.’

समग्र आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को पार करने की अनुमति देने वाला संवैधानिक संशोधन लाने में भाजपा द्वारा गंभीर प्रयास न किए जाने से कांग्रेस और जेडी (एस) को सरकार के इरादों के बारे में एससी और एसटी के दिमाग में संदेह पैदा करवाने का कारण दे दिया.

कांग्रेस अपने अच्छे प्रदर्शन का श्रेय 50 फीसदी की आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 75 फीसदी करने और देशव्यापी जाति सर्वेक्षण के बाद सभी जातियों और समुदायों को उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण बढ़ाने के अपने वादे को देती है.

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