मेघालय में सिर्फ़ मां का सरनेम अपनाने वालों को ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने को लेकर विवाद

मेघालय में खासी हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद द्वारा पति या पिता के सरनेम को अपनाने वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने से इनकार करने के आदेश की निंदा की जा रही है. खासी संस्कृति में बच्चे अपनी मां का सरनेम अपनाते हैं.

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मेघालय की राजधानी ​शिलांग स्थित खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (केएचएडीसी) का मुख्यालय. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

मेघालय में खासी हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद द्वारा पति या पिता के सरनेम को अपनाने वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने से इनकार करने के आदेश की निंदा की जा रही है. खासी संस्कृति में बच्चे अपनी मां का सरनेम अपनाते हैं.

मेघालय की राजधानी ​शिलांग स्थित खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (केएचएडीसी) का मुख्यालय. (फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: मेघालय में विपक्षी राजनेताओं और पुरुषों के अधिकार कार्यकर्ताओं ने खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (केएचएडीसी) द्वारा अपने पति या पिता के उपनाम (Surname) को अपनाने वाले लोगों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने से इनकार करने के आदेश की निंदा की है.

केएसएडीसी के मुख्य कार्यकारी सदस्य टिटोस्टारवेल चाइन ने द हिंदू को बताया कि यह आदेश खासी समाज के मातृसत्तात्मक रीति-रिवाजों को संरक्षित करने के लिए दिया गया था और स्थानीय कानूनों के अनुरूप था.

खासी संस्कृति में बच्चे अपनी मां का सरनेम अपनाते हैं. पुरुष अपनी पत्नियों के साथ चले जाते हैं और परिवार में सबसे छोटी बेटियां अपने माता-पिता के घरों को विरासत में लेती हैं.

हालांकि इसकी आलोचना करने वाले कहते हैं कि ये रीति-रिवाज बहिष्करण और मनोबल गिराने वाले हैं.

यह कहते हुए कि उनके बच्चे खासी मानदंडों के विपरीत उनके सरनेम का उपयोग करते हैं, मेघायल में वॉयस ऑफ द पीपल पार्टी (वीपीपी) के एक विधायक ने कहा, ‘मैं अपने बच्चों के लिए लड़ूंगा अगर उनके खासी कहलाने के अधिकार को छीनने का प्रयास किया गया.’

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘जब मेरी पत्नी और मैं खासी हैं तो उन्हें खासी क्यों नहीं माना जा सकता?’

पुरुषों के अधिकार समूह सिनगखोंग रिम्पेई थिम्माई (Syngkhong Rympei Thymmai) के पूर्व नेता कीथ पेरिएट ने बीबीसी न्यूज रिपोर्टर को बताया कि खासी संस्कृति अक्सर सेक्सिस्ट (सेक्स के आधार पर आमतौर पर महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रह या भेदभाव) धारणाओं को दर्शाती है.

उन्होंने कहा, ‘पेड़ पुलिंग है, लेकिन जब इसे लकड़ी में बदल दिया जाता है, तो यह स्त्रीलिंग हो जाती है. यही बात हमारी भाषा की कई संज्ञाओं के बारे में भी सच है. जब कोई चीज उपयोगी हो जाती है, तो उसका लिंग स्त्री हो जाता है.’

केएचएडीसी ने खासी समुदाय के मातृसत्तात्मक नियमों को लागू करने के लिए अतीत में प्रयास किए हैं. नवंबर 2021 में परिषद ने एक विधेयक पेश किया, जिसमें प्रस्तावित किया गया था कि जो महिलाएं और बच्चे अपने पति या पिता के रीति-रिवाजों को अपनाते हैं, उन्हें अपनी विरासत के अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए.

केएसएडीसी के मुख्य कार्यकारी सदस्य चाइन ने 2021 में ‘ओपन’ पत्रिका के साथ बातचीत में विधेयक के बचाव में कहा था, ‘हमारे पास विदेशों में रहने वाली महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने पतियों के रीति-रिवाजों को अपनाया है, लेकिन जो अपने भाइयों के यहां रहने के बजाय अब भी अपने परिवार की संपत्ति की मालिक हैं. वह क्यों नहीं बदलना चाहिए?’

वास्तव में खासी हिल्स स्वायत्त जिला खासी सोशल कस्टम ऑफ लाइनेज एक्ट, 1997 भी कहता है कि किसी व्यक्ति के कानूनी रूप से अपनी मां के खासी कबीले से संबंधित होने के लिए, वे या उसकी माता अपने गैर-खासी पिता (या पति) के ‘व्यक्तिगत कानूनों’ को नहीं अपना सकते हैं.

केएचएडीसी द्वारा इन मानदंडों को लागू करने के बावजूद कुछ महिला अधिकार समूहों ने चिंता व्यक्त की है कि खासी संस्कृति वास्तव में एक ‘पितृसत्तात्मक समाज’ है.

ओपन पत्रिका में जॉय ग्रेस सिएम नाम की एक कार्यकर्ता ने कहा था कि सत्ता और सरकार के पदों पर महिलाओं की कमी खासी संस्कृति में पितृसत्ता का सबूत है.

इस बीच, 16 मई को समाचार वेबसाइट ‘द मेघालयन’ को दिए एक साक्षात्कार में, टिटोस्टारवेल चाइन ने कहा था कि केएचएडीसी मेघालय सरकार से एसटी प्रमाणन को स्वयं अधिकृत करने की अनुमति लेने की प्रक्रिया में था.

भारत में एसटी एक संरक्षित श्रेणी है, जो अन्य बातों के अलावा अपने सदस्यों को शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और विधानसभाओं में आरक्षण देती है.

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