एनसीईआरटी ने 12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब से खालिस्तान के संदर्भ को हटाया

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान की किताब से ‘एक अलग सिख राष्ट्र’ और ‘खालिस्तान’ के संदर्भों को हटाने की घोषणा की है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने ‘आनंदपुर साहिब प्रस्ताव’ को ग़लत तरीके से पेश कर सिख समुदाय के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक सामग्री को वापस लेने की मांग की थी.

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एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब, जिसके हिस्सों पर आपत्ति जताई गई है. (फोटो साभार: एनसीईआरटी)

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान की किताब से ‘एक अलग सिख राष्ट्र’ और ‘खालिस्तान’ के संदर्भों को हटाने की घोषणा की है. शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने ‘आनंदपुर साहिब प्रस्ताव’ को ग़लत तरीके से पेश कर सिख समुदाय के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक सामग्री को वापस लेने की मांग की थी.

एनसीईआरटी की कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब, जिसके हिस्सों को हटाई गई. (फोटो साभार: एनसीईआरटी)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने मंगलवार (30 मई) को कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान की किताब से ‘एक अलग सिख राष्ट्र’ और ‘खालिस्तान’ के संदर्भों को हटाने की घोषणा की.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीईआरटी ने मंगलवार को जारी एक पत्र में कहा कि यह कार्रवाई शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की आपत्तियों के बाद की गई, जिसमें ‘श्री आनंदपुर साहिब प्रस्ताव’ को गलत तरीके से पेश करके सिख समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री को वापस लेने की मांग की गई थी.

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव 1973 में शिरोमणि अकाली दल द्वारा अपनाया गया एक दस्तावेज था. प्रस्ताव में सिख धर्म के प्रति पार्टी की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई और पंजाब के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की गई थी. इसमें यह भी मांग की गई कि चंडीगढ़ शहर को पंजाब को सौंप दिया जाना चाहिए और पड़ोसी राज्यों में पंजाबी को दूसरी भाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए.

एसजीपीसी ने अप्रैल में अपने प्रस्ताव में कहा था कि पाठ्यपुस्तक ‘स्वतंत्रता के बाद से भारत में राजनीति’ (Politics in India since Independence) में 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को ‘अलगाववादी प्रस्ताव’ के रूप में व्याख्यायित किया है और मांग की थी कि पाठ को तुरंत हटा दिया जाना चाहिए.

किताब के एक अध्याय में कहा गया है कि प्रस्ताव के तहत क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग उठाई गई थी.

किताब के अनुसार, ‘प्रस्ताव में सिख कौम (समुदाय या राष्ट्र) की आकांक्षाओं की भी बात की गई थी और सिखों के बोलबाला (प्रभुत्व या आधिपत्य) को प्राप्त करने के रूप में अपना लक्ष्य घोषित किया था. प्रस्ताव संघवाद को मजबूत करने की दलील थी, लेकिन इसकी व्याख्या एक अलग सिख राष्ट्र की दलील के रूप में की जा सकती थी.’

आगे कहा गया था, ‘धार्मिक नेताओं के एक वर्ग ने स्वायत्त सिख पहचान का सवाल उठाया था. चरमपंथी तत्वों ने भारत से अलगाव और खालिस्तान के निर्माण की वकालत शुरू कर दी थी.’

इसके बाद एनसीईआरटी ने इस मुद्दे की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति बनाई और सिफारिशों के बाद पाठ में बदलाव करने का फैसला किया.

पत्र में कहा गया है, ‘बदलाव के साथ कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक की सॉफ्ट कॉपी एनसीईआरटी की वेबसाइट पर अपलोड की गई है.’

इससे पहले बीते अप्रैल माह में शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) और अन्य सिख निकायों ने किताब में 1973 के आनंदपुर साहिब प्रस्ताव को अलगाववादी दस्तावेज के रूप में चित्रित करने पर कड़ी आपत्ति जताई थी.

आनंदपुर साहिब प्रस्ताव आधुनिक सिख इतिहास में सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले दस्तावेजों में से एक है. इसे अक्टूबर 1973 में गुरु गोबिंद सिंह के पवित्र शहर आनंदपुर साहिब में आयोजित एक बैठक में शिरोमणि अकाली दल की कार्य समिति द्वारा अपनाया गया था. यह बाद में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के रूप में लोकप्रिय हो गया.

मालूम हो कि एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों से कुछ हिस्सों को हटाने को लेकर विवाद के बीच भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के लोकप्रिय किसान आंदोलन से संबंधित हिस्से को भी हटा दिया था.

आंदोलन का उल्लेख कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में ‘राइज़ ऑफ़ पॉपुलर मूवमेंट्स’ नामक अध्याय में किया गया था.  हटाए गए हिस्से में बताया गया था कि यूनियन 80 के दशक के किसान आंदोलन में अग्रणी संगठनों में से एक था.

इसी तरह एनसीईआरटी की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के संदर्भ और उसी पाठ्यपुस्तक के अध्याय 10 में उल्लिखित जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से जुड़ी वह शर्त हटा दी गई है, जिसमें इसे संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्त बनाए रखने की बात कही गई थी.

इस कड़ी में 12वीं कक्षा की इतिहास की किताबों से मुगलों और 2002 के गुजरात दंगों पर सामग्री को हटाना और महात्मा गांधी पर कुछ अंश हटाया जाना शामिल है.

उल्लेखनीय है कि एनसीईआरटी ऐसा पहले भी कर चुका है. 2022 में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था.

इसी तरह, कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी. इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था.

वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे. उसके पहले 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे.

वहीं, 2018 में भी एक ऐसे ही बदलाव में कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में ‘गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों’ में से ‘मुस्लिम विरोधी’ शब्द हटा दिया था.

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