सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव ने एनसीईआरटी से उनका नाम पाठ्यपुस्तकों से हटाने को कहा

शिक्षाविद सुहास पलशिकर और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने एनसीईआरटी से इसकी राजनीति विज्ञान की टेक्स्टबुक से उनका नाम बतौर ‘मुख्य सलाहकार’ हटाने को कहा है. उनका कहना है कि ‘युक्तिसंगत’ बनाने के नाम पर लगातार सामग्री हटाने से 'विकृत' हुई किताबों से नाम जुड़ा देखना उनके लिए शर्मिंदगी का सबब है.

सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव. (फोटो: द वायर)

शिक्षाविद सुहास पलशिकर और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने एनसीईआरटी से इसकी राजनीति विज्ञान की टेक्स्टबुक से उनका नाम बतौर ‘मुख्य सलाहकार’ हटाने को कहा है. उनका कहना है कि ‘युक्तिसंगत’ बनाने के नाम पर लगातार सामग्री हटाने से ‘विकृत’ हुई किताबों से नाम जुड़ा देखना उनके लिए शर्मिंदगी का सबब है.

सुहास पलशिकर और योगेंद्र यादव. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा इसके पाठ्यक्रम को ‘युक्तिसंगत’ बनाने की कवायद के बीच शिक्षाविद सुहास पलशिकर और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने राजनीति विज्ञान की टेक्स्टबुक से उनका नाम बतौर ‘मुख्य सलाहकार’ हटाने को कहा है.

रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को उन्होंने एक खुला पत्र लिखते हुए यह मांग की.

वे एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के मुख्य सलाहकार थे. शिक्षा परिषद द्वारा हाल ही में इसकी कई पाठ्यपुस्तकों में किए गए विवादास्पद परिवर्तनों से असहमति के मद्देनजर उन्होंने यह पत्र जारी किया है.

पलशिकर और यादव ने एनसीईआरटी के निदेशक को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘हमसे कभी भी इन बदलावों के बारे में परामर्श नहीं किया गया या यहां तक कि सूचित भी नहीं किया गया … (किताब से) निरंतर सामग्रियां डिलीट करने के लिए सत्ता को खुश करने के अलावा कोई तर्क नहीं नजर आता. हालांकि संशोधनों को ‘युक्तिकरण’ के आधार पर सही ठहराया गया है, लेकिन हमें इसमें कोई भी शैक्षणिक तर्क देखने में विफल रहे हैं. हमे लगता है कि टेक्स्ट को इस तरह से विकृत कर दिया गया है कि यह पहचान में भी नहीं आ रहा है.’

उल्लेखनीय है कि इस साल की शुरुआत में एनसीईआरटी ने अपनी राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में किए गए बदलावों में से 12वीं कक्षा की किताब से 2002 के गुजरात दंगों के संदर्भों को हटा दिया है, कक्षा 10 की किताब से ‘लोकतंत्र और विविधता’, ‘लोकप्रिय संघर्ष और आंदोलन’ और ‘लोकतंत्र की चुनौतियां’ नाम के अध्यायों को और कक्षा 8 की किताब से राजद्रोह पर एक खंड को हटाया है.

एनसीईआरटी ने कक्षा 12 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक से मुगल इतिहास से संबंधित अध्यायों को भी हटा दिया है. साथ ही, कक्षा 10 की जीव विज्ञान की पाठ्यपुस्तक से डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत पर एक अध्याय हटाया गया.

परिषद ने कोविड-19 महामारी के बाद छात्रों पर ‘सामग्री भार को कम करने’ के लिए पाठ्यक्रम को ‘युक्तिसंगत’ बनाने का हवाला देते हुए इस कवायद को जायज़ ठहराया है.

पलशिकर और यादव 2006 में प्रकाशित एनसीईआरटी की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों के मुख्य सलाहकार थे और उनकी मांग है कि अब संशोधित किताबों से उनके नाम हटा दिए जाएं. उन्होंने अपने पत्र में कहा, ‘यह हमारे लिए शर्मिंदगी का सबब है कि इन विकृत और शैक्षणिक रूप से बेकार पाठ्यपुस्तकों के मुख्य सलाहकार के रूप में हमारे नामों का उल्लेख किया जा रहा है.’

परिषद ने शुक्रवार रात को उनके पत्र का जवाब देते हुए कहा कि वे एक संयुक्त सलाहकार प्रयास का हिस्सा था और नतीजन कोई भी व्यक्तिगत सदस्य स्वयं को पाठ्यपुस्तकों से अलग नहीं कर सकता.

परिषद के बयान में कहा गया, ‘किसी विषय पर हमारे ज्ञान और समझ की स्थिति के आधार पर स्कूल स्तर पर पाठ्यपुस्तकें ‘विकसित’ होती हैं. इसलिए, किसी भी स्तर पर व्यक्तिगत रचना होने का दावा नहीं किया जाता है, इसलिए किसी के द्वारा अपनी संबद्धता को वापस लेने का सवाल ही नहीं उठता.’

बयान में यह भी कहा गया है कि सलाहकारों के योगदान को ‘रिकॉर्ड के लिए’ स्वीकार किया जा रहा था, भले ही किताबों पर परिषद का कॉपीराइट हो और उनके प्रकाशित होते ही सलाहकारों का कार्यकाल समाप्त हो गया हो.

गौरतलब है कि एनसीईआरटी ने बीते मई महीने में कक्षा 12 के राजनीति विज्ञान की किताब से ‘एक अलग सिख राष्ट्र’ और ‘खालिस्तान’ के संदर्भों को हटाने की घोषणा की थी. इससे पहले एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों से कुछ हिस्सों को हटाने को लेकर विवाद के बीच भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के लोकप्रिय किसान आंदोलन से संबंधित हिस्से को भी हटा दिया था.

आंदोलन का उल्लेख कक्षा 12वीं की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में ‘राइज़ ऑफ़ पॉपुलर मूवमेंट्स’ नामक अध्याय में किया गया था.  हटाए गए हिस्से में बताया गया था कि यूनियन 80 के दशक के किसान आंदोलन में अग्रणी संगठनों में से एक था.

इसी तरह एनसीईआरटी की कक्षा 11 की राजनीति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन ऐट वर्क’ के पहले अध्याय से देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के संदर्भ और उसी पाठ्यपुस्तक के अध्याय 10 में उल्लिखित जम्मू कश्मीर के भारत में विलय से जुड़ी वह शर्त हटा दी गई है, जिसमें इसे संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्त बनाए रखने की बात कही गई थी.

इस कड़ी में 12वीं कक्षा की इतिहास की किताबों से मुगलों और 2002 के गुजरात दंगों पर सामग्री को हटाना और महात्मा गांधी पर कुछ अंश हटाया जाना शामिल है.

उल्लेखनीय है कि एनसीईआरटी ऐसा पहले भी कर चुका है. 2022 में एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटा दिए थे, जिस पर शिक्षकों ने विरोध जताया था.

इसी तरह, कोविड के समय एनसीईआरटी ने समाजशास्त्र की किताब से जातिगत भेदभाव से संबंधित सामग्री हटाई थी. इससे पहले कक्षा 12 की एनसीईआरटी की राजनीतिक विज्ञान की किताब में जम्मू कश्मीर संबंधी पाठ में बदलाव किया था.

वहीं, कक्षा 10वीं की इतिहास की किताब से राष्ट्रवाद समेत तीन अध्याय हटाए थे. उसके पहले 9वीं कक्षा की किताबों से त्रावणकोर की महिलाओं के जातीय संघर्ष समेत तीन अध्याय हटाए गए थे.

वहीं, 2018 में भी एक ऐसे ही बदलाव में कक्षा 12वीं की राजनीतिक विज्ञान की किताब में ‘गुजरात मुस्लिम विरोधी दंगों’ में से ‘मुस्लिम विरोधी’ शब्द हटा दिया था.