पहलवानों के साथ फिर से उत्पीड़न हुआ क्योंकि वे अब भी न्याय के इंतज़ार में हैं: जस्टिस लोकुर

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों के साथ हुए व्यवहार को लेकर दिल्ली पुलिस की आलोचना की. उन्होंने कहा कि इस मामले से यह संकेत दिया जा रहा है कि महिलाओं को शक्तिशाली व्यक्तियों के ख़िलाफ़ यौन अपराध की शिकायत नहीं करनी चाहिए.

बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक जंतर मंतर पर. (फोटो साभार: ट्विटर/@SakshiMalik)

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी. लोकुर ने बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों के साथ हुए व्यवहार को लेकर दिल्ली पुलिस की आलोचना की. उन्होंने कहा कि इस मामले से यह संकेत दिया जा रहा है कि महिलाओं को शक्तिशाली व्यक्तियों के ख़िलाफ़ यौन अपराध की शिकायत नहीं करनी चाहिए.

बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक जंतर मंतर पर. (फोटो साभार: ट्विटर/@SakshiMalik)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने मंगलवार को भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दर्ज मामलों से निपटने और विरोध करने वाले पहलवानों के साथ इसके व्यवहार को लेकर दिल्ली पुलिस की आलोचना की.

एनडीटीवी के मुताबिक, ‘पहलवानों का संघर्ष: संस्थानों की जवाबदेही’ पर एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुए जस्टिस लोकुर ने कहा कि पीड़ितों का फिर से उत्पीड़न हुआ है, क्योंकि पहलवान न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से फिर से प्रताड़ित किए जाने का मामला है… पहलवानों ने कहा है कि वे दबाव में हैं.’

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि पहलवानों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद सिंह के खिलाफ उनकी शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया गया. उन्होंने एफआईआर दर्ज करने में देरी के लिए दिल्ली पुलिस की आलोचना भी की.

जस्टिस लोकुर ने यह भी कहा कि डब्ल्यूएफआई के पास यौन उत्पीड़न की शिकायतों से निपटने के लिए एक समिति नहीं है, जो कानून के खिलाफ है.

उन्होंने कहा, ‘जब जनवरी में विरोध शुरू हुआ, तो ऐसा नहीं था कि उन्होंने सीधे जंतर-मंतर जाने का फैसला किया. यौन उत्पीड़न बहुत पहले शुरू हो गया था. उन्होंने शिकायत की, लेकिन कुश्ती संघ में कोई शिकायत समिति नहीं थी.’

उन्होंने कहा, ‘हमने 28 मई को घटित भयानक दृश्य देखा… पीड़ितों को बताया जा रहा है कि वे अपराधी हैं क्योंकि उन्होंने विरोध प्रदर्शन किया था.’

ज्ञात हो कि उस दिन नए संसद भवन का उद्घाटन था और पहलवानों के समर्थन में वहां एक महिला महापंचायत प्रस्तावित थी. हालांकि, जैसे ही पहलवान जंतर-मंतर से निकले, उन्हें रोका गया, खदेड़ा गया और अस्थायी रूप से हिरासत में भी लिया गया. इसके बाद दिल्ली पुलिस ने दंगा करने की एक एफआईआर भी दायर की थी, जिसमें प्रदर्शनकारी नामजद थे.

इस चर्चा में मौजूद सुप्रीम कोर्ट की वकील बृंदा ग्रोवर ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने पहलवानों के मामले में कानून का उल्लंघन किया है.

उन्होंने कहा, ‘आंतरिक शिकायत समिति का होना कानून के तहत अनिवार्य है. कुश्ती महासंघ में आईसीसी नहीं होने से कानून का उल्लंघन किया जा रहा है.’

ग्रोवर ने कहा कि अदालतों को एक अलग नजरिये से स्थिति को देखने की जरूरत है जहां राज्य कानून को तोड़ने के लिए अपनी एजेंसियों का इस्तेमाल कर रहा है.

जस्टिस लोकुर ने विरोध करने वाले पहलवानों के लिए खतरे की आशंका के बारे में भी बात की और बताया कि सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि उन्हें सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए.

उन्होंने कहा कि इस मामले के माध्यम से यह संकेत दिया जा रहा है कि महिलाओं को शक्तिशाली व्यक्तियों के खिलाफ यौन अपराध की शिकायत नहीं करनी चाहिए.

उल्लेखनीय है कि दो ओलंपिक पदक विजेता और एक विश्व चैंपियन सहित भारत के शीर्ष पहलवान डब्ल्यूएफआई प्रमुख के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं, जिन पर महिला पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप है.

बीते जनवरी महीने में पहलवानों ने बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन शुरू किया था. कई हफ्तों के विरोध के बाद बीते 23 जनवरी को मामले की जांच के लिए केंद्रीय खेल मंत्रालय के आश्वासन और ओलंपिक पदक विजेता मुक्केबाज मैरी कॉम की अध्यक्षता में छह सदस्यीय समिति का गठन के बाद पहलवानों ने अपना धरना खत्म कर दिया था.

इस दौरान बृजभूषण को महासंघ के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों से अलग कर दिया गया था.

हालांकि कोई कार्रवाई न होने के बाद बीते 23 अप्रैल को बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट और साक्षी मलिक समेत अन्य पहलवानों ने अपना प्रदर्शन दोबारा शुरू कर दिया.

सात दिनों के विरोध के बाद बीते 28 अप्रैल को सिंह के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज की गई है. इनमें से एक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत और दूसरी महिला के शील भंग का प्रयास से संबंधित है.

इससे पहले दिल्ली पुलिस द्वारा एफआईआर न दर्ज करने का आरोप लगाते हुए खिलाड़ी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जिसने 25 अप्रैल को उनकी याचिका पर दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया था.

एफआईआर में ‘पेशेवर सहायता के बदले’ सेक्सुअल मांग के कम से कम दो मामले; यौन उत्पीड़न की कम से कम 15 घटनाएं, जिनमें गलत तरह से छूने की करीब दस घटनाएं, छेड़छाड़- जिसमें खिलाड़ियों के स्तनों को हाथ लगाना, नाभि को छूना शामिल है; डराने-धमकाने के कई उदाहरण जिनमें पीछा करना भी शामिल है- का जिक्र किया गया है.

मालूम हो कि बीते 28 मई को पहलवानों ने नई संसद के उद्घाटन के समय अपनी मांगों के समर्थन में संसद की ओर मार्च किया था, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें रास्ते में बलप्रयोग करके रोक दिया था और उन पर दंगा भड़कने समेत विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी. साथ ही, जंतर मंतर से उनको प्रदर्शन करने से हटा दिया गया था. इसके बाद क्षुब्ध खिलाड़ियों ने अपने पदकों को गंगा में प्रवाहित करने का ऐलान किया था.

हालांकि, इसके बाद उनके केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात हुई. ठाकुर ने बताया था कि उनके अनुरोध पर पहलवानों का आंदोलन पंद्रह जून तक स्थगित रहेगा.

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