मणिपुर में पिछले लगभग डेढ़ महीने से जारी जातीय हिंसा के बीच इंटरनेट पर प्रतिबंध 20 जून तक बढ़ा दिया गया है. अपना घर जलाए जाने पर केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह ने कहा कि राज्य में क़ानून व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से विफल हो चुकी है. इस बीच कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हिंसा को लेकर चुप्पी तोड़ने की अपील की है.
नई दिल्ली: मणिपुर में हिंसा को दौर जारी है, राज्य की एकमात्र महिला मंत्री नेमचा किपगेन के आधिकारिक आवास को जलाने के बाद बृहस्पतिवार (15 जून) रात केंद्रीय मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के राजधानी इंफाल स्थित घर को भी 1,000 से अधिक लोगों की भीड़ ने जला दिया. घटना के समय मंत्री घर में नहीं थे.
इसके अलावा राजधानी इंफाल में भड़की ताजा हिंसा के दौरान कई अन्य घरों को भी भीड़ के द्वारा आग के हवाले किए जाने की सूचना है. इसके साथ इंटरनेट पर जारी प्रतिबंध को पांच और दिनों के लिए बढ़ा दिया गया है.
केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री सिंह ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, ‘मैं इस समय आधिकारिक काम के सिलसिले में केरल में हूं. शुक्र है कि कल (बृहस्पतिवार) रात मेरे इंफाल स्थित घर में कोई घायल नहीं हुआ. बदमाश पेट्रोल बम लेकर आए थे और मेरे घर के ग्राउंड फ्लोर और फर्स्ट फ्लोर को नुकसान पहुंचाया गया है.’
उन्होंने कहा, ‘मेरे गृह राज्य में जो हो रहा है, उसे देखकर बहुत दुख है. मैं शांति की अपील करता रहूंगा. इस तरह की हिंसा में शामिल लोग पूरी तरह से अमानवीय हैं.’ उन्होंने कहा, ‘मैं सदमे में हूं. मणिपुर में कानून व्यवस्था की स्थिति पूरी तरह से विफल हो चुकी है.’
#WATCH | "I am shocked. The law and order situation in Manipur has totally failed," says Union Minister RK Ranjan Singh, whose residence at Kongba in Imphal was torched by mob on Thursday late night. pic.twitter.com/ECHNiKkdjm
— ANI (@ANI) June 16, 2023
समाचार वेबसाइट एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कर्फ्यू के बावजूद भीड़ इंफाल के कोंगपा इलाके में स्थित मंत्री के घर तक पहुंचने में कामयाब रही. उस वक्त घर में ड्यूटी पर 9 सुरक्षा एस्कॉर्ट कर्मी, 5 सुरक्षा गार्ड और 8 अतिरिक्त गार्ड तैनात थे.
केंद्रीय मंत्री राजकुमार रंजन सिंह के घर पर पिछले महीने भी हमला किया गया था. उनके घर के अलावा बीते बृहस्पतिवार की दोपहर इंफाल में भीड़ द्वारा कई और घरों को आग के हवाले कर दिया गया.
अधिकारियों के हवाले से समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया कि इंफाल के न्यू चेकॉन में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा बलों को आंसू गैस के गोले दागने पड़े.
ये घटनाएं तब हुई हैं, जब सेना और असम राइफल्स ने हिंसाग्रस्त मणिपुर में ‘क्षेत्र वर्चस्व’ (Area Domination) अभियान तेज कर दिया है.
इससे पहले बीते 14 जून को मणिपुर की एकमात्र महिला मंत्री नेमचा किपगेन के आधिकारिक आवास को हमलावरों ने जला दिया था. घटना के समय वह घर पर नहीं थीं. उनका आधिकारिक आवास इंफाल पश्चिम जिले के लाम्फेल इलाके में स्थित है.
उद्योग मंत्री किपगेन पिछले साल के विधानसभा चुनाव में आदिवासी बहुल कांगपोकपी विधानसभा सीट से चुनी गई थीं और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाले 12 सदस्यीय मंत्रालय में वह एकमात्र महिला मंत्री हैं. वह उन 10 कुकी विधायकों में से एक हैं, जिन्होंने अलग प्रशासन की मांग उठाई है और भाजपा से संबद्ध हैं.
कांगपोकपी मुख्य रूप से आदिवासी समुदाय बहुसंख्यक रूप से बसा है. इस जिले में बीते 13 जून की रात हुई हिंसा में कम से कम नौ लोगों की मौत हो गई थी. जिले के ऐगिजंग गांव जहां ये हत्याएं हुईं, कथित तौर पर एक कुकी (आदिवासी) गांव है, लेकिन जो शव बरामद हुए हैं, वे कथित तौर पर मेईतेई समुदाय के पुरुषों के हैं.
पुलिस ने दावा किया कि वे ‘स्थानीय स्वयंसेवक’ थे, यह एक ऐसा शब्द है, जिसका इस्तेमाल पिछले कुछ हफ्तों से सशस्त्र पुरुषों के लिए किया जा रहा है, जो अपने समुदायों की रक्षा करने का दावा करते हैं.
इससे पहले चूड़ाचांदपुर जिले के लैलोईफाई इलाके में बीते 12 जून को हुई गोलीबारी में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.
रंगकर्मी ने सरकार द्वारा गठित शांति समिति को छोड़ा
इस बीच राज्य के प्रख्यात रंगकर्मी रतन थियाम मणिपुर में जातीय हिंसा को शांत करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित 51 सदस्यीय शांति समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है. इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, उन्होंने इस कदम के पीछे ‘पूर्व व्यस्तता’ का हवाला दिया है.
समाचार वेबसाइट नॉर्थईस्ट लाइव के अनुसार, नाटककार ने कहा कि उन्हें विश्वास नहीं है कि समिति इस बिंदु पर बहुत कुछ कर सकती है. थियाम के हवाले से कहा गया है, ‘इतनी हिंसा है और हमने अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक शब्द भी नहीं सुना है.’
उन्होंने कहा कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और राजनीतिक शक्ति की जरूरत है. उन्होंने कहा, ‘जब तक केंद्र इसमें शामिल नहीं होता, तब तक स्थिति चिंताजनक बनी रहेगी.’
थियम इस समिति से हटने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं. नॉर्थईस्ट लाइव के अनुसार, तीन नागरिक समाज संगठनों – सीओसीओएमआई (मेईतेई समुदाय), कुकी इन्पी मणिपुर और इंडीजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम – ने भी शांति समिति का हिस्सा होने से इनकार किया है.
कुकी इन्पी मणिपुर के अध्यक्ष अजांग खोंगसाई और सेवानिवृत्त भारतीय रक्षा लेखा सेवा अधिकारी जे. लुंगदिम सहित कई कुकी प्रतिनिधि पहले ही समिति से बाहर हो गए थे.
मालूम हो कि केंद्र की मोदी सरकार ने बीते 10 जून को राज्यपाल अनुसुइया उइके के नेतृत्व में 51 सदस्यीय शांति समिति का गठन किया था.
तब मेईतेई और कुकी-ज़ोमी दोनों समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने कहा था कि वे शांति समिति में भाग नहीं लेंगे.
दरअसल इस समिति में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को शामिल किया गया है, जिनका विरोध किया जा रहा है. कई संगठनों पर राज्य में वर्तमान में जारी हिंसा के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया है.
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाए
मणिपुर में संवेदनशील स्थिति ने न केवल भाजपा शासित इस राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग को जन्म दिया है, बल्कि यह सवाल भी उठा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक स्थिति के बारे में कोई बयान क्यों नहीं दिया है या पूर्वोत्तर राज्य में शांति बहाली की अपील नहीं की है.
भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि ‘प्रधानमंत्री भारत को विफल कर चुके हैं और पूरी तरह खामोश हैं.’
एक ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘भाजपा की नफरत की राजनीति ने मणिपुर को 40 से अधिक दिनों तक जलाए रखा, जिसमें 100 से अधिक लोग मारे गए. प्रधानमंत्री भारत को विफल कर चुके हैं और पूरी तरह खामोश हैं.’
BJP’s politics of hatred has burnt Manipur for over 40 days leaving more than a hundred people dead.
The PM has failed India and is completely silent.
An all-party delegation must be sent to the state to end this cycle of violence & restore peace.
Let’s shut this ‘Nafrat ka…
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 15, 2023
उन्होंने कहा, ‘हिंसा के इस चक्र को समाप्त करने और शांति बहाल करने के लिए राज्य में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजा जाना चाहिए. आइए इस ‘नफरत के बाजार’ को बंद करें और मणिपुर में हर दिल में ‘मोहब्बत की दुकान’ खोलें.’
प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट कर कहा, ‘मणिपुर की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है और यह देखना बेहद निराशाजनक है कि केंद्र सरकार मणिपुर के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और शांति की बहाली के लिए तत्काल उपाय नहीं कर रही है.’
The situation in Manipur is very distressing, and it is deeply disheartening to see that the Central government is not taking immediate measures to ensure the safety of the people of Manipur and the restoration of peace.
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) June 15, 2023
कांग्रेस पार्टी इससे पहले भी प्रधानमंत्री से हिंसा को लेकर उनकी चुप्पी को तोड़ने की कई बार अपील कर चुकी है. साथ ही उनसे राज्य का दौरा करने का भी आग्रह किया है.
इंटरनेट पर प्रतिबंध पांच दिनों के लिए बढ़ा
हिंसा के बीच मणिपुर सरकार ने बृहस्पतिवार को राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध को और पांच दिनों (20 जून तक) के लिए बढ़ा दिया. सरकार बीते 3 मई से इंटरनेट सेवाओं को बंद रखने के लिए बार-बार आदेश जारी कर रही है. इसी दिन पहली बार जातीय हिंसा भड़की थी.
सरकार द्वारा जारी आदेश में कहा गया है, ‘इस बात की आशंका है कि कुछ असामाजिक तत्व सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर छवियों, अभद्र भाषा और नफरत वाले वीडियो संदेशों के प्रसारण के लिए उपयोग कर सकते हैं, जो जनता की भावनाओं को भड़काते हैं और जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति के लिए गंभीर परिणाम हो सकते हैं. जीवन और सार्वजनिक/निजी संपत्ति को नुकसान का आसन्न खतरा है.’
Manipur government on Thursday, June 15th, 2023 has continued suspension of internet for the next five days i.e. (15/06/23 to 20/06/23) in Manipur to tackle the worsening law and order situation after tribal groups took out rallies in several districts of the state. The ban came… pic.twitter.com/KfcideQF16
— Jon Suante (@jon_suante) June 15, 2023
पिछले शुक्रवार 9 जून को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध के खिलाफ याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था.
मणिपुर हाईकोर्ट के एक वकील चोंगथम विक्टर सिंह और एक व्यवसायी मेयेंगबाम जेम्स ने अपनी याचिका में कहा था कि यह प्रतिबंध आम जनता को कोई भी व्यापार या व्यवसाय करने से रोक रहा है और उन्हें संवैधानिक रूप से प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करने से वंचित कर रहा है.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि इंटरनेट प्रतिबंध के कारण मणिपुर में लोगों के जीवन पर ‘महत्वपूर्ण आर्थिक, मानवीय, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव’ पड़ा है. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. लोग बैंकों से धन निकालने, ग्राहकों से भुगतान प्राप्त करने, वेतन देने या ईमेल या वॉट्सऐप के माध्यम से संवाद करने में सक्षम नहीं हैं.
उल्लेखनीय है कि बीते 3 मई से कुकी और मेईतेई समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोग मारे गए हैं. लगभग 50,000 लोग विस्थापित हुए हैं और पुलिस शस्त्रागार से 4,000 से अधिक हथियार लूटे या छीन लिए गए हैं.
गौरतलब है कि मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें हुई थीं.
मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मेईतई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों- नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.
बीते सप्ताह केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्य के विभिन्न जातीय समूहों के बीच शांति स्थापित करने के लिए शांति समिति का गठन किया है. हालांकि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इसमें शामिल किए जाने का विरोध हो रहा है. कुकी समूहों के साथ अब मेईतेई संगठनों भी इसमें हिस्सा लेने से इनकार कर चुके हैं.