पूर्व नौकरशाहों ने गृह मंत्री को लिखा- एफसीआरए लाइसेंस को लेकर एनजीओ का उत्पीड़न बंद करें

हाल में कई ग़ैर-सरकारी संगठनों के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस रद्द या निलंबित किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व नौकरशाहों ने एक पत्र में कहा कि मतभेद या असहमति की हर अभिव्यक्ति को देश की अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन या जनहित के ख़िलाफ़ नहीं माना जा सकता है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो साभार: फेसबुक/@Amit Shah)

हाल में कई ग़ैर-सरकारी संगठनों के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस रद्द या निलंबित किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व नौकरशाहों ने एक पत्र में कहा कि मतभेद या असहमति की हर अभिव्यक्ति को देश की अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन या जनहित के ख़िलाफ़ नहीं माना जा सकता है.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. (फोटो साभार: फेसबुक/@Amit Shah)

नई दिल्ली: 80 से अधिक सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भारत के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए काम करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ ‘प्रतिद्वंद्वी के बजाय सहयोगात्मक रुख अपनाने’ का आह्वान किया है.

रिपोर्ट के अनुसार, हाल के दिनों में कई एनजीओ के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) लाइसेंस रद्द या निलंबित किए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए पूर्व नौकरशाहों ने एक खुले पत्र में कहा, ‘मतभेद या असहमति की हर अभिव्यक्ति को देश की अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन या सार्वजनिक हित के खिलाफ नहीं माना जा सकता है. आपके (गृह) मंत्रालय और विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्रवाइयां इस संदेह को जन्म देती हैं कि देश के सामाजिक-आर्थिक संकेतकों के बारे में स्वतंत्र मूल्यांकन या दृष्टिकोण का स्वागत नहीं है.’

चार प्रसिद्ध गैर-लाभकारी संस्थाओं – कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (सीएचआरआई), ऑक्सफैम इंडिया, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) और सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज (सीईएस) को रद्द करने या निलंबित करने का जिक्र करते हुए पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि उनकी गतिविधियों का उद्देश्य भारतीय समाज के सबसे वंचित वर्गों की समस्याओं का समाधान करना है.

उन्होंने कहा, ‘इन संगठनों के एफसीआरए लाइसेंस को रद्द/निलंबित करना और भारत सरकार की विभिन्न कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा दंडात्मक कार्रवाई शुरू करना एफसीआरए के अत्यधिक त्रुटिपूर्ण प्रावधानों का परिणाम है.’

बयान में आगे कहा गया कि ऐसा लगता है कि एफसीआरए का उपयोग करके भारत सरकार नागरिक समाज संगठनों को विदेशी स्रोतों से धन लेने से रोकना चाहती है, जबकि निजी क्षेत्र, डिजिटल और प्रिंट मीडिया और राजनीतिक दलों को विदेशी धन तक स्वतंत्र रूप से पहुंचने की अनुमति देती है.

पत्र में कहा गया है, ‘एफसीआरए की धारा 3 वस्तुतः विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले एनजीओ से जुड़े किसी भी व्यक्ति द्वारा राय की स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर रोक लगाती है. धारा 5 भारत सरकार को किसी भी संगठन को ‘राजनीतिक प्रकृति’ घोषित करने की व्यापक शक्तियां देती है, जिससे वह विदेशी योगदान प्राप्त करने के लिए अयोग्य हो जाता है. एफसीआरए की धारा 7 के दायरे को इसके 2020 के संशोधन द्वारा सीमित कर दिया गया है, ताकि एक एफसीआरए-पंजीकृत पार्टी से दूसरे में विदेशी योगदान के हस्तांतरण पर रोक लगाई जा सके. धारा 12 में ‘भारत की संप्रभुता, अखंडता’ और ‘सार्वजनिक हित’ जैसे व्यापक शब्दों का उपयोग किया गया है ताकि सरकार को यह तय करने का पूरा अधिकार मिल सके कि किसी संगठन/व्यक्ति को विदेशी योगदान की अनुमति दी जाए या नहीं.’

आगे कहा गया, ‘एफसीआरए में इन सभी प्रतिबंधात्मक और अस्पष्ट शब्दों वाले खंडों का उपयोग उन संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए किया गया है जो आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर स्वतंत्र दृष्टिकोण रखते हैं, जो सरकार को पसंद नहीं हो सकते हैं.’

पूर्व नौकरशाहों ने यह भी जोड़ा, ‘स्वयंसेवी संस्थाओं का लगातार उत्पीड़न उस पर लांछन लगाने के समान है. ये संगठन जो कर रहे हैं वह स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, मानवाधिकार, प्रकृति संरक्षण आदि के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सरकार के प्रयासों को पूरा करना है. वे उन क्षेत्रों में काम करते हैं जहां सरकार की अपनी पहुंच सीमित या अप्रभावी है. सरकार को उन्हें साझेदार के रूप में देखना चाहिए न कि प्रतिद्वंद्वी के रूप में.’

एफसीआरए में व्यापक बदलाव का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि इसे ‘प्रतिबंधात्मक कानून के बजाय अधिक सुविधाजनक’ बनाया जाना चाहिए.

सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने अमित शाह से आग्रह किया, ‘हमें उम्मीद है कि आपकी सरकार इस दिशा में कदम उठाएगी और अपने नियंत्रण वाली एजेंसियों को भारत के लोगों, विशेषकर इसके सबसे हाशिए पर मौजूद और वंचित वर्गों की सेवा करने वाले संगठनों का अनावश्यक उत्पीड़न रोकने का निर्देश देगी.’

(पूरा पत्र और हस्ताक्षरकर्ताओं की सूची पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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