महिलाएं अपने साथियों के ख़िलाफ़ बतौर हथियार बलात्कार-रोधी क़ानून का दुरुपयोग कर रही हैं: कोर्ट

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता, अगर दोनों में से किसी एक पक्ष ने शादी करने से इनकार कर दिया हो. ओडिशा हाईकोर्ट ने भी बीते दिनों ऐसा ही एक फैसला सुनाया था.

उत्तराखंड हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता, अगर दोनों में से किसी एक पक्ष ने शादी करने से इनकार कर दिया हो. ओडिशा हाईकोर्ट ने भी बीते दिनों ऐसा ही एक फैसला सुनाया था.

उत्तराखंड हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि बलात्कार के लिए दंडित करने वाले कानून का आजकल महिलाएं अपने पुरुष साथी के साथ मतभेद होने पर एक हथियार के रूप में दुरुपयोग कर रही हैं.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस शरद कुमार शर्मा ने 5 जुलाई को एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर एक महिला ने शादी से इनकार करने के बाद बलात्कार का आरोप लगाया था. वे 2005 से सहमति से संबंध बना रहे थे.

न्यायाधीश ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने भी बार-बार दोहराया है कि वयस्कों के बीच सहमति से बने शारीरिक संबंध को बलात्कार नहीं कहा जा सकता, अगर दोनों में से किसी एक पक्ष ने शादी करने से इनकार कर दिया हो.’

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि महिलाएं मतभेद समेत विभिन्न कारणों से अपने पुरुष साथी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 का दुरुपयोग कर रही हैं.

महिला ने 30 जून 2020 को शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें कहा गया था कि आरोपी 2005 से उसके साथ सहमति से यौन संबंध बना रहा था. उसने कहा कि दोनों ने एक-दूसरे से वादा किया था कि जैसे ही उनमें से किसी एक को नौकरी मिलेगी, वे शादी कर लेंगे.

ऐसा दावा किया गया कि बाद में आरोपी ने दूसरी महिला से शादी कर ली और उसके बाद भी उनका रिश्ता जारी रहा,

हाईकोर्ट ने कहा, ‘सहमति का तत्व स्वचालित रूप से शामिल हो जाता है, जब शिकायतकर्ता ने यह जानने के बाद भी स्वेच्छा से अपना रिश्ता जारी रखा था कि आरोपी पहले से ही शादीशुदा था.’

अदालत ने कहा कि आपसी सहमति से किसी रिश्ते में प्रवेश करते समय विवाह के आश्वासन की सत्यता की जांच प्रारंभिक चरण में की जानी चाहिए, बाद के चरण में नहीं.

हाईकोर्ट ने कहा कि शुरुआती चरण तब नहीं माना जा सकता, जब रिश्ता 15 साल तक चला हो और यहां तक कि आरोपी की शादी के बाद भी जारी रहा हो.

गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले ओडिशा हाईकोर्ट भी एक मामले में समान फैसला सुना चुका है.

ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि शादी के वादे पर सहमति से शारीरिक संबंध बनाया गया और किन्हीं कारणों से वादा पूरा नहीं हो सका, तो इस संबध को बलात्कार नहीं माना जा सकता. यह आदेश भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रखते हुए सुनाया गया था.

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