मिज़ोरम सीएम ने मणिपुर के मिज़ो बहुल क्षेत्रों को शामिल कर ‘ग्रेटर मिज़ोरम’ बनाने की वकालत की

मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा ने कहा है कि ​हिंसाग्रस्त मणिपुर में जातीय मिज़ो भाई अब एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं, जो क्षेत्रों के पुन: एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर रहा है. मणिपुर में आदिवासी कुकी समुदाय के ख़िलाफ़ जारी हिंसा के बाद कई मिजो नेताओं ने कहा है कि दक्षिणी मणिपुर के कुकी क्षेत्रों को मिज़ोरम के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए.

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मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा. (फोटो साभार: ट्विटर)

मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा ने कहा है कि ​हिंसाग्रस्त मणिपुर में जातीय मिज़ो भाई अब एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं, जो क्षेत्रों के पुन: एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर रहा है. मणिपुर में आदिवासी कुकी समुदाय के ख़िलाफ़ जारी हिंसा के बाद कई मिजो नेताओं ने कहा है कि दक्षिणी मणिपुर के कुकी क्षेत्रों को मिज़ोरम के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए.

मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा. (फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: मणिपुर के मिज़ो समुदाय की बहुलता वाले क्षेत्रों को शामिल करके ‘ग्रेटर मिज़ोरम’ बनाने पर समर्थन व्यक्त करते हुए मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा ने कहा कि मणिपुर में मिज़ो लोगों को जबरदस्ती के बजाय संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार कदम उठाना चाहिए.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा, ‘मणिपुर में जातीय मिज़ो भाई अब एक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं, जो पुन: एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर रहा है.’

उन्होंने कहा कि मिजोरम ने मणिपुर के विस्थापित लोगों का खुले दिल से स्वागत किया है और वह उनके साथ अपना खाना-पीना साझा करेगा.

बता दें कि पिछले लगभग तीन महीने से जारी मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण 12,000 से अधिक लोग पड़ोसी राज्य मिजोरम चले गए हैं.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मिजोरम की सत्तारूढ़ मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) सहित कुछ समूहों ने अतीत में भी ‘ग्रेटर मिजोरम’ की मांग उठाई थी, जो कुकी, मिज़ो और म्यांमार के चिन समुदाय के साथ जातीय संबंध साझा करते हैं.

जैसे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (एनएससीएन) ने भारत और म्यांमार के सभी नगा-क्षेत्रों को भारतीय राज्य नगालैंड के साथ एकीकृत करके ‘ग्रेटर नगालिम’ की मांग उठाई थी, एमएनएफ और इसका समर्थन करने वाले समूह सभी कुकी और चिन-बहुल क्षेत्रों को भारतीय राज्य मिजोरम के साथ एकीकृत करके ‘ग्रेटर मिजोरम’ चाहते हैं – क्योंकि कुकी, चिन और मिज़ो (जिन्हें लुशाई भी कहा जाता है) एक ही ज़ोमी जनजाति का हिस्सा हैं.

मणिपुर में आदिवासी कुकी समुदाय के खिलाफ हिंसा के वर्तमान दौर के बाद कई मिजो राजनेताओं ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि दक्षिणी मणिपुर के कुकी क्षेत्रों को मिजोरम के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए, क्योंकि कुकी अब ‘मणिपुर में सुरक्षा और सम्मान के साथ नहीं रह सकते’.

मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा सहित मिजोरम के राजनेता कुकियों के खिलाफ हिंसा और मणिपुर के मेईतेई-प्रभुत्व वाले प्रशासन द्वारा उनके खिलाफ भेदभाव के आलोचक रहे हैं.

इस महीने की शुरुआत में मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरामथांगा ने मणिपुर में शांति का आह्वान करते हुए कहा कि हम उम्मीद कर रहे थे कि चीजें बेहतर हो जाएंगी, लेकिन स्थितियां और ख़राब होती दिख रही हैं. यह कब रुकेगा? मैं अपने मणिपुरी ‘ज़ो’ जातीय भाइयों के प्रति संवेदना व्यक्त करता हूं. वे पीड़ित मेरे रिश्तेदार हैं, मेरा अपना खून हैं.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, ज़ोरामथांगा के नेतृत्व वाले एमएनएफ के सूत्रों का कहना है कि मणिपुर के कुकी इलाकों को मिजोरम में शामिल करने की मांग पार्टी के भीतर जोर पकड़ रही है.

1986 के मिज़ो समझौते के बाद जब एमएनएफ राष्ट्रीय मुख्यधारा में लौटा तो यह ‘ग्रेटर मिज़ोरम’ की मांग पर शांत हो गया. अपने विद्रोही दिनों के दौरान एमएनएफ ने भारतीय सेना से लड़ने के लिए इन पड़ोसी राज्यों के मिज़ो-कुकी क्षेत्रों और म्यांमार के ज़ोमी और चिन क्षेत्रों में आधार स्थापित किए थे.

मालूम हो कि मणिपुर में बीते 3 मई को जातीय हिंसा बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) के दर्जे की मांग के कारण भड़की थी, जिसे पहाड़ी जनजातियां अपने अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देखती हैं.

इस​ हिंसा के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित प्रदर्शनकारी कुकी विधायकों और आदिवासी संगठन अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.

यह मुद्दा तब फिर उभर गया था, जब मणिपुर हाईकोर्ट ने बीते 27 मार्च को राज्य की भाजपा नेतृत्व वाली एन. बीरेन सिंह सरकार को निर्देश दिया था कि वह मेईतेई समुदाय को एसटी में शामिल करने के संबंध में केंद्र को एक सिफारिश सौंपे.

मणिपुर में मेईतेई समुदाय आबादी का लगभग 53 प्रतिशत है और ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी शामिल हैं, आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं, जो घाटी इलाके के चारों ओर स्थित हैं.

एसटी का दर्जा मिलने से मेईतेई सार्वजनिक नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के हकदार होंगे और उन्हें वन भूमि तक पहुंच प्राप्त होगी. लेकिन राज्य के मौजूदा आदिवासी समुदायों को डर है कि इससे उनके लिए उपलब्ध आरक्षण कम हो जाएगा और सदियों से वे जिन जमीनों पर रहते आए हैं, वे खतरे में पड़ जाएंगी.