आईआईटी-दिल्ली में जातिगत भेदभाव पर होने वाले सर्वे को शुरू होते ही वापस लिया गया

आईआईटी दिल्ली में बीते कुछ समय में दो दलित छात्रों की आत्महत्या से मौत के बाद संस्थान के छात्र प्रकाशन बोर्ड ने परिसर के अंदर जातिगत भेदभाव पर एक सर्वे शुरू किया था, जिसे कुछ घंटों के भीतर ही इसलिए वापस ले लिया गया क्योंकि छात्रों का कहना था कि इसमें पूछे गए सवाल पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं.

आईआईटी दिल्ली. (फोटो साभार: फेसबुक)

आईआईटी दिल्ली में बीते कुछ समय में दो दलित छात्रों की आत्महत्या से मौत के बाद संस्थान के छात्र प्रकाशन बोर्ड ने परिसर के अंदर जातिगत भेदभाव पर एक सर्वे शुरू किया था, जिसे कुछ घंटों के भीतर ही इसलिए वापस ले लिया गया क्योंकि छात्रों का कहना था कि इसमें पूछे गए सवाल पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं.

आईआईटी दिल्ली. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: पिछले दो महीनों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)-दिल्ली में दो दलित छात्रों की कथित तौर पर आत्महत्या से मौत के बाद, संस्थान के छात्र प्रकाशन बोर्ड (बीएसपी) द्वारा प्रसारित जातिगत भेदभाव पर एक परिसर-व्यापी सर्वेक्षण शुरू होने के कुछ घंटों के भीतर ही निलंबित कर दिया गया था.

द हिंदू के मुताबिक, सर्वेक्षण साझा करते ही शिकायतों में कहा गया कि सर्वेक्षण का डिजाइन ‘पक्षपाती, असंवेदनशील और समस्याग्रस्त है’, संस्थान के आधिकारिक अनुसूचित जाति (एससी)/अनुसूचित जनजाति (एसटी) सेल ने कहा कि सर्वेक्षण पर उससे परामर्श नहीं किया गया था.

एससी/एसटी सेल के अध्यक्ष ने द हिंदू को बताया, ‘इस मामले में सेल से आधिकारिक तौर पर कभी परामर्श नहीं किया गया. सेल के अध्यक्ष को कभी भी किसी सर्वे या उसमें पूछे जाने वाले प्रश्नों के बारे में अवगत नहीं कराया गया. हम उक्त सर्वे की जांच करेंगे.’

बीएसपी ने भी सर्वे वापस लेने की पुष्टि की है.

उल्लेखनीय है कि इस साल जुलाई में गणित और कंप्यूटिंग विभाग में बीटेक अंतिम वर्ष के छात्र आयुष आशना की कथित तौर पर आत्महत्या से मौत हो गई थी. इस महीने की शुरुआत में इसी विभाग के अनिल कुमार की भी कथित तौर पर आत्महत्या से मौत हो गई थी. दोनों छात्र अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखते थे.

कुमार के मौत के कारण आईआईटी-दिल्ली के छात्रों में जातिगत भेदभाव के संकेतों की जांच करने और गणित एवं कंप्यूटिंग विभाग के खिलाफ जांच शुरू करने की मांग को लेकर नए सिरे से आक्रोश पैदा हो गया था, साथ ही प्रशासन को आधिकारिक तौर पर सूचित की गई अन्य मांगों की सूची भी शामिल थी.

गुरुवार को कैंपस के छात्रों ने द हिंदू को बताया कि उन्हें बीएसपी के प्रकाशनों में से एक ‘द इन्क्वायरर’ के अगले संस्करण के लिए बीएसपी द्वारा किए जा रहे एक सर्वे के बारे में पता चला था. बीएसपी संस्थान का आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त छात्र प्रकाशन है और इसका नेतृत्व रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर गौरव गोयल करते हैं.

‘जाति-आधारित भेदभाव पर छात्र सर्वे’ शीर्षक वाले सर्वे में नौ खंड शामिल थे, जिनमें कुल लगभग 45 प्रश्न थे, और इसे गूगल फॉर्म पर प्रसारित किया जा रहा था. सर्वे में उत्तरदाताओं की पहचान गोपनीय रखने का वादा किया गया था.

छात्रों ने बताया कि आरक्षण और सकारात्मक कार्रवाई के बारे में राय वाले अनुभाग में स्पष्ट पूर्वाग्रह नजर आता है. इसके अलावा, ‘छात्र निकायों में प्रतिनिधित्व’ शीर्षक वाले अनुभाग में केवल दो प्रश्न पूछे गए, उनमें से किसी का भी प्रतिनिधित्व से कोई लेना-देना नहीं था.

संस्थान में एससी/एसटी सेल छात्र प्रतिनिधि शैनाल वर्मा ने कहा, ‘इस तरह की किसी बात के लिए सेल या उसके सदस्यों को विश्वास में न लेना यह दर्शाता है कि संस्थान में सामाजिक बहिष्कार कैसे चल रहा है.’

गुरुवार शाम तक सर्वे को निलंबित कर दिया गया था. उस समय इसका वेब पेज प्रतिक्रियाएं स्वीकार न किए जाने की जानकारी दे रहा था.

बीएसपी के अध्यक्ष प्रोफेसर गोयल ने कहा, ‘यह स्वीकार करते हैं कि उचित प्रक्रिया का पूरी तरह से पालन नहीं किया गया. इसलिए हमने सर्वे वापस ले लिया है.’

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