जम्मू कश्मीर उपराज्यपाल का दावा- केंद्रीय शासन से 80% लोग ख़ुश, स्थानीय दलों ने आपत्ति जताई

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाने की चर्चा के बीच उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि अगर सर्वे किया जाता है तो 80 फीसदी लोग वोट देंगे कि वर्तमान प्रणाली (केंद्रीय शासन) जारी रहनी चाहिए और किसी अन्य प्रणाली की ज़रूरत नहीं है. विपक्षी दलों ने उनके इस दावे को ‘ग़ैर-ज़िम्मेदाराना’ बताते हुए भारत के ‘लोकतांत्रिक प्रकृति के लिए चुनौती’ क़रार दिया है.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो साभार: फेसबुक)

जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराए जाने की चर्चा के बीच उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा है कि अगर सर्वे किया जाता है तो 80 फीसदी लोग वोट देंगे कि वर्तमान प्रणाली (केंद्रीय शासन) जारी रहनी चाहिए और किसी अन्य प्रणाली की ज़रूरत नहीं है. विपक्षी दलों ने उनके इस दावे को ‘ग़ैर-ज़िम्मेदाराना’ बताते हुए भारत के ‘लोकतांत्रिक प्रकृति के लिए चुनौती’ क़रार दिया है.

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा. (फोटो साभार: फेसबुक)

श्रीनगर: जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा बिना किसी सबूत के यह दावा करने के लिए निशाने पर आ गए हैं कि केंद्रशासित प्रदेश में ‘80 फीसदी लोग’, जो 2018 से निर्वाचित सरकार के बिना हैं, केंद्रीय शासन से खुश हैं.

विपक्षी दलों ने उनके इस दावे को ‘गैर-जिम्मेदाराना’ बताते हुए भारत के ‘लोकतांत्रिक प्रकृति के लिए चुनौती’ करार दिया है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), जिसे हाल ही में जम्मू में सार्वजनिक विरोध का सामना करना पड़ा है, ने भी सिन्हा की टिप्पणियों पर सतर्क रुख अपनाते हुए कहा है कि जम्मू कश्मीर में निर्वाचित सरकार नहीं होना ‘विकल्प नहीं है’.

सिन्हा की टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 370 संबंधी याचिकाओं की सुनवाई के दौरान जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए समयसीमा तय करने से केंद्र सरकार द्वारा इनकार किए जाने की पृष्ठभूमि में आई है.

हाल ही में एक समारोह में बोलते हुए सिन्हा ने दावा किया कि यदि जम्मू कश्मीर में एक ‘स्वतंत्र और गुप्त’ सर्वे किया जाता है तो ‘80 फीसदी लोग वोट देंगे कि वर्तमान प्रणाली जारी रहनी चाहिए और किसी अन्य प्रणाली की जरूरत नहीं है.’

सिन्हा ने बिना किसी सबूत का हवाला दिए दावा किया, ‘मैं आपको लोगों की राय बता रहा हूं.’

जम्मू कश्मीर 2018 से विधानसभा चुनाव होना बाकी है, जब पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार से भाजपा बाहर हो गई थी.

सिन्हा ने आगे कहा, ‘कुछ लोग हैं, जो दर्द में हैं. उनके लिए यह एक समस्या है. वे कुछ भी कह सकते हैं.’

उनका इशारा परोक्ष रूप से कश्मीर के राजनीतिक दलों की ओर था, जो केंद्र सरकार और भारतीय निर्वाचन आयोग से जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने का आग्रह कर रहे हैं.

द वायर से बात करते हुए जम्मू कश्मीर भाजपा के प्रवक्ता अरुण गुप्ता ने कहा कि पार्टी विधानसभा चुनावों के लिए तैयार है. उन्होंने कहा, ‘उन्होंने (सिन्हा) जो कुछ भी कहा है, वह उनकी राय है. जहां तक भाजपा का सवाल है, हम एक राजनीतिक दल के रूप में चुनाव के लिए तैयार हैं.’

जम्मू कश्मीर भाजपा के महासचिव (संगठन) अशोक कौल ने कहा कि चुनाव आयोग जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए अंतिम फैसला लेगा. उन्होंने कहा, ‘जब भी चुनाव आयोग चुनाव कार्यक्रम जारी करेगा, मुझे यकीन है कि सभी दल तैयार होंगे.’

सिन्हा की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर कौल ने कहा, ‘वह (सिन्हा) भी लोकतंत्र में विश्वास करते हैं. हम निर्वाचित प्रतिनिधियों को न नहीं कह सकते. कोई भी चुनी हुई सरकार (के महत्व) को अस्वीकार नहीं कर सकता.’

इससे पहले कौल जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की भी वकालत कर चुके हैं.

सिन्हा की टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देने में भाजपा की सतर्कता उस दबाव का प्रतिबिंब है, जो पार्टी को जम्मू, केंद्रशासित प्रदेश के हिंदू-बहुल क्षेत्र और भगवा पार्टी के पारंपरिक गढ़, में झेलना पड़ रहा है, जहां हाल ही में एक टोल प्लाजा की स्थापना के खिलाफ बंद देखा गया था.

राजनीतिक दलों ने उपराज्यपाल के बयान पर विरोध जताया

उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर पीडीपी के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने कहा, ‘भले ही वह दावा करें कि 100 फीसदी लोग केंद्रीय शासन के पक्ष में हैं, लेकिन कोई इसकी सत्यता कैसे परख सकता है? जनता की राय जानने के सभी स्वीकृत तरीके जम्मू कश्मीर में बंद कर दिए गए हैं.’

उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, ‘उपराज्यपाल जो कहते हैं, उसमें मुझे कुछ भी आपत्तिजनक नहीं दिखता. आपको बस ‘न्यू इंडिया’ और ‘न्यू जम्मू कश्मीर’ की भावना को महसूस करना होगा, जहां लोग कोई मायने नहीं रखते.’

गुलाम नबी आज़ाद के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीएपी) ने सिन्हा की टिप्पणियों को ‘अत्यधिक अस्वीकार्य और गैर-जिम्मेदाराना’ बताया.

डीएपी के प्रवक्ता सलमान निज़ामी ने कहा, ‘भारत लोकतंत्र का मंदिर है, जहां केवल चुनी हुई सरकार ही लोगों की ओर से बोल सकती है. सिन्हा का बयान न केवल उस लोकतांत्रिक स्वभाव को चुनौती दे रहा है, जिसके लिए भारत विश्व स्तर पर जाना जाता है, बल्कि यह एक खतरनाक प्रवृत्ति भी है, जिसका हम सभी पुरजोर विरोध करेंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘जम्मू कश्मीर लोकतांत्रिक शासन के लिए तरस रहा है, जिससे हमें लगभग छह वर्षों से वंचित रखा गया है. चुनाव होने दीजिए, फिर उपराज्यपाल साहब को लोगों से जवाब मिलेगा.’

उपराज्यपाल की आलोचना करते हुए उमर अब्दुल्ला ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, ‘जम्मू कश्मीर के नए राजा से मिलें जो बेताज बादशाह बने रहने के लिए इतने बेताब हैं कि अब वह विधानसभा चुनाव कराने की अपनी अनिच्छा को सही ठहराने के लिए सर्वेक्षणों का आविष्कार कर रहे हैं. भारत वास्तव में ‘लोकतंत्र की जननी’ है और हम जम्मू कश्मीर में उसके अनाथ बच्चे हैं. शायद यही वह तर्क है जिसका इस्तेमाल भाजपा देश भर में चुनाव रोकने के लिए करना शुरू करेगी – वन नेशन, नो इलेक्शन (एक राष्ट्र, कोई चुनाव नहीं).’

सिन्हा पर निशाना साधते हुए पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता और जम्मू कश्मीर के पूर्व मंत्री इमरान रजा अंसारी ने एक्स पर कहा, ‘कोई व्यक्ति जो 1,19,000 वोटों के अंतर से अपना चुनाव हार जाता है, वह निश्चित रूप से कहेगा कि चुनाव की जरूरत नहीं है. मैं वास्तव में इस गुप्त सर्वेक्षण से आश्चर्यचकित हूं, जिसमें 80 प्रतिशत लोग जम्मू कश्मीर में पिछले दरवाजे से सबसे बड़ी नियुक्ति का समर्थन कर रहे हैं.’

बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनावों में सिन्हा की हार हुई थी. तब वह पूर्वी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर निर्वाचन क्षेत्र से सांसद थे, लेकिन बसपा के अफजल अंसारी से हार गए थे.

अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद केंद्र सरकार और जम्मू कश्मीर प्रशासन द्वारा घोषित कई प्रशासनिक उपायों, नियमों और विनियमों का हाल ही में जम्मू में विरोध किया गया था, क्योंकि स्थानीय लोगों का मानना है कि वे कथित तौर पर उनके आर्थिक अवसरों को खा रहे हैं. नए कर और बढ़ते बिजली बिलों का भी विरोध किया गया था.

पिछले महीने जम्मू के सांबा जिले के सरोर इलाके में एक टोल प्लाजा की स्थापना के विरोध में बंद आयोजित किया गया था. क्षेत्र के व्यापार समूहों ने टोल-पोस्ट को ‘जम्मू के व्यापारिक समुदाय को परेशान करने का प्रयास’ करार दिया है. अतीत में भी उन नीतियों के खिलाफ इसी तरह के विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिन्होंने कथित तौर पर इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से प्रभावित किया है.

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