मणिपुर हिंसा: आदिवासियों ने सीमावर्ती शहर में ‘अतिरिक्त’ पुलिस कमांडो की तैनाती का विरोध किया

म्यांमार सीमा से लगे मणिपुर के तेंगनौपाल ज़िले के मोरेह शहर में आदिवासी महिलाओं का विरोध प्रदर्शन जारी है. कई आदिवासी संगठनों ने दावा किया कि शहर में इंफाल घाटी से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात करने के प्रयास चल रहे हैं, इससे शांति भंग हो सकती है. उनके अनुसार, अतिरिक्त मेइतेई पुलिस की तैनाती गंभीर चिंता का विषय है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: एक्स/@manipur_police)

म्यांमार सीमा से लगे मणिपुर के तेंगनौपाल ज़िले के मोरेह शहर में आदिवासी महिलाओं का विरोध प्रदर्शन जारी है. कई आदिवासी संगठनों ने दावा किया कि शहर में इंफाल घाटी से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात करने के प्रयास चल रहे हैं, इससे शांति भंग हो सकती है. उनके अनुसार, अतिरिक्त मेइतेई पुलिस की तैनाती गंभीर चिंता का विषय है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर के तेंगनौपाल जिले के मोरेह शहर में आदिवासी महिलाओं का एक वर्ग पिछले कुछ दिनों से यहां ‘अतिरिक्त’ पुलिस कमांडो की तैनाती का विरोध कर रहा है.

कूकी बहुल शहर मोरेह से लगभग 3 किमी दूर चिकिम गांव में महिलाएं धरने पर बैठी हैं.

अधिकारियों ने कहा कि असम राइफल्स के एक कमांडेंट और अन्य सुरक्षा अधिकारियों ने पिछले कुछ दिनों में प्रदर्शनकारियों के साथ कई बार बातचीत की, लेकिन मुद्दे का समाधान अभी तक नहीं हुआ है.

द हिंदू की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुकी इंपी और कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी (सीओटीयू) जैसे कई आदिवासी संगठनों ने दावा किया कि शहर में इंफाल घाटी से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात करने के प्रयास चल रहे हैं और इससे शांति भंग हो सकती है.

सीओटीयू ने एक बयान में कहा, ‘अर्द्धसैनिक बलों और भारतीय सेना की बफर जोन में मौजूदगी और मोरेह के भीतर शांति सुनिश्चित करने के बावजूद हेलिकॉप्टरों के माध्यम से अतिरिक्त मेइतेई पुलिस की तैनाती गंभीर चिंता का विषय है.’

इसमें दावा किया गया कि इंफाल-पूर्वी जिले में हाल के अभियानों में हथियारों और गोला-बारूद की बरामदगी समुदाय को बदनाम करने के लिए ‘नाटकीय रूप से प्रबंधित’ की गई है.

कुकी इनपी ने इंफाल-मोरेह सड़क के किनारे काकचिंग लमखाई और वांगजिंग इलाकों में मेईतेई द्वारा कथित तौर पर स्थापित की गईं चौकियों को हटाने की भी मांग की, जहां मोरेह और तेंगनौपाल उप-मंडल तक पहुंचाई जाने वाली आवश्यक वस्तुओं को ‘अवरुद्ध’ किया जा रहा है.

मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 180 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.

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