सांसद-विधायकों के ख़िलाफ़ मामलों के शीघ्र निपटान के लिए पीठ गठित करें हाईकोर्ट: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दिशानिर्देश तैयार करने से परहेज़ किया, लेकिन कहा कि उच्च न्यायालयों को सांसदों और विधायकों के लिए लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र में ‘सांसदों और विधायकों के लिए नामित अदालतें’ शीर्षक से स्वत: संज्ञान मामले दर्ज करने चाहिए.

(फोटो साभार: विकिपीडिया/Subhashish Panigrahi)

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में दिशानिर्देश तैयार करने से परहेज़ किया, लेकिन कहा कि उच्च न्यायालयों को सांसदों और विधायकों के लिए लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र में ‘सांसदों और विधायकों के लिए नामित अदालतें’ शीर्षक से स्वत: संज्ञान मामले दर्ज करने चाहिए.

(फोटो साभार: विकिपीडिया/Subhashish Panigrahi)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को विधायकों और सांसदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की निगरानी और शीघ्र निपटान सुनिश्चित करने के लिए विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया है.

यह देखते हुए कि वह पूरे देश में इस मामले पर एक समान दिशानिर्देश नहीं बना सकता है, मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 227 को लागू करके अपने संबंधित क्षेत्राधिकार में ऐसा कर सकते हैं. विशेष संवैधानिक प्रावधान उच्च न्यायालयों को उन सभी क्षेत्रों में सभी अदालतों और न्यायाधिकरणों पर अधीक्षण की शक्ति देता है, जिनके संबंध में वह अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करता है.

हालांकि शीर्ष अदालत ने दिशानिर्देश तैयार करने से परहेज किया, लेकिन कहा कि उच्च न्यायालयों को सांसदों और विधायकों के लिए लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए अपने संबंधित अधिकार क्षेत्र में ‘सांसदों और विधायकों के लिए नामित अदालतें’ शीर्षक से स्वत: संज्ञान मामले दर्ज करने चाहिए.

अदालत ने यह भी कहा कि उन मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जिनमें अधिकतम सजा के रूप में मौत की सजा या आजीवन कारावास की सजा हो.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने कहा, ‘विशेष पीठ आवश्यकतानुसार मामले को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध कर सकती है. उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मामलों के शीघ्र और प्रभावी निपटान के लिए आवश्यक आदेश और निर्देश जारी कर सकते हैं.’

सीजेआई ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालयों को मुकदमों में तेजी लाने के लिए सभी प्रयास करके उन मामलों को सूचीबद्ध करना चाहिए, जहां मुकदमों पर रोक लगा दी गई है.

यह सुनिश्चित करने के लिए कि ऐसे मामलों में मुकदमों के बारे में जानकारी सार्वजनिक हो, उन्होंने उच्च न्यायालयों को अपनी वेबसाइटों पर मुकदमे की स्थिति सहित मामलों के बारे में विभिन्न विवरण डालने के लिए एक अलग टैब बनाने का आदेश दिया.

शीर्ष अदालत के निर्देश 2016 में वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका के जवाब में आए हैं, जिसमें मौजूदा और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों की तेजी से सुनवाई के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की गई है.

मामले में न्याय-मित्र (एमिकस क्यूरी) की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया के अनुसार, देश भर में 5,175 मामलों में मुकदमे लंबित हैं, जिनमें विधायक और सांसद आरोपी हैं. इनमें से लगभग 40 प्रतिशत यानी 2,116 मामलों में सुनवाई पांच वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं. इनमें से अधिकांश मामले उत्तर प्रदेश (1,377), बिहार (546) और महाराष्ट्र (482) से हैं.

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और न्यू इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) के आंकड़ों के हवाले से द वायर ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि 40 प्रतिशत मौजूदा सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए हैं. 25 प्रतिशत विधायकों पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध सहित गंभीर अपराधों के आरोप हैं.

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