विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सभी विश्वविद्यालयों से अपने छात्रों और फैकल्टी सदस्यों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा है. मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिये ‘विकसित भारत@2047: युवाओं की आवाज़’ परामर्श कार्यक्रम में बोलेंगे. कुछ शिक्षाविदों और सांसदों ने इस क़दम की आलोचना की है.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों के साथ सेल्फी पॉइंट स्थापित करने का निर्देश देने के एक सप्ताह बाद विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सोमवार (11 दिसंबर) को विश्वविद्यालयों से अपने छात्रों और फैकल्टी सदस्यों को उनका (प्रधानमंत्री) भाषण सुनने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, मोदी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये ‘विकसित भारत@2047: युवाओं की आवाज’ परामर्श कार्यक्रम में बोलेंगे. विश्वविद्यालयों को अपने परिसरों से इस कार्यक्रम को देखने की व्यवस्था करने के लिए कहा गया है.
कुछ शिक्षाविदों और सांसदों ने परिसरों में सरकारी प्रचार को बढ़ावा देने के लिए उच्च शिक्षा नियामक (यूजीसी) के इस कदम की आलोचना की है.
यूजीसी सचिव मनीष जोशी की ओर से देश के सभी विश्वविद्यालयों को लिखे पत्र में कहा गया है, ‘आपसे अनुरोध है कि आप अपने प्रतिष्ठित संस्थान में कार्यक्रम का लाइव वेबकास्ट देखने के लिए आवश्यक व्यवस्था करें.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘आपसे यह भी अनुरोध है कि आप सभी छात्रों और फैकल्टी सदस्यों के साथ वेबकास्ट लिंक साझा करें और उन्हें इस महत्वपूर्ण अवसर का लाइव वेबकास्ट देखने के लिए प्रोत्साहित करें. आपकी सक्रिय भागीदारी और सहभागिता इस आयोजन की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है.’
इस घटनाक्रम पर डीएमके सांसद पी. विल्सन ने कहा कि विश्वविद्यालयों को सेल्फी पॉइंट स्थापित करने और छात्रों को प्रधानमंत्री का भाषण देखने के लिए कहने का यूजीसी का निर्देश सरकारी प्रचार को बढ़ावा देने जैसा है.
विल्सन ने कहा, ‘यूजीसी अधिनियम के तहत यूजीसी का कार्य उच्च शिक्षा के मानकों को सुनिश्चित करना है, जिसके लिए वह अनुदान वितरित करता है. इसके पास संस्थानों को इस क्षेत्र के बाहर कुछ भी करने के लिए कहने का कोई अधिकार नहीं है.’
एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति ने कहा कि छात्रों को चर्चा के अवसर के बिना प्रधानमंत्री के भाषण को सुनने के लिए मजबूर करना ‘शैक्षिक भावना’ के खिलाफ है.
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री को सुनना गलत नहीं है. हालांकि, अगर यह परिसरों में राजनीतिक प्रचार के गुप्त प्रवेश का एक तरीका बन जाता है, तो यह गलत है. विश्वविद्यालय स्वायत्त हैं. वे ऐसे प्रयासों का विरोध कर सकते हैं.’
उन्होंने आरोप लगाया कि हाल के वर्षों में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नियुक्त अधिकांश कुलपति सरकार के एजेंडे को लागू करने के लिए तैयार दिखे हैं.
उन्होंने कहा, ‘अब पूरी प्रणाली कुलपति पद के लिए ऐसे लोगों का चयन करने के लिए तैयार है, जो सरकार के प्रति वफादार हैं. उनके पास किसी निर्देश की योग्यता का विश्लेषण करने की नैतिक शक्ति नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘बल्कि, वे सरकारी निर्देशों के खिलाफ परिसर में किसी भी असहमति की अनुमति नहीं देते हैं. विश्वविद्यालय किसी भी दृष्टिकोण को चुनौती देने का स्थान हैं, किसी दृष्टिकोण को कुचलने का नहीं.’
सरकार की प्रचार शाखा प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि मोदी देश भर के राजभवनों में आयोजित कार्यशालाओं में सभी राज्यस्तरीय शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों – जिनमें राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और उनके फैकल्टी सदस्यों को भी शामिल करेंगे – को संबोधित करेंगे.
यह स्पष्ट नहीं है कि कार्यशालाएं कब आयोजित की जाएंगी और उनका संचालन कौन करेगा.