साल 2023 में भाजपा की नीतियों के कारण भारत में हिंसा और अधिकारों का हनन हुआ: ह्यूमन राइट्स वॉच

मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में भाजपा सरकार के कार्यकाल में भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी नीतियों के कारण अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा में बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उजागर करते हुए कई घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है.

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मणिपुर हिंसा (बाएं) और नूंह सांप्रदायिक दंगों के दृश्य. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: सोशल मीडिया/द वायर)

मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत में भाजपा सरकार के कार्यकाल में भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी नीतियों के कारण अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा में बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उजागर करते हुए कई घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है.

मणिपुर हिंसा (बाएं) और नूंह सांप्रदायिक दंगों के दृश्य. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: सोशल मीडिया/द वायर)

नई दिल्ली: मानवाधिकार संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ ने बीते गुरुवार (11 जनवरी) को अपनी ‘विश्व रिपोर्ट 2024’ में कहा है कि 2023 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की भेदभावपूर्ण और विभाजनकारी नीतियों के कारण अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि हुई, जिससे भय का व्यापक माहौल बना.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार ने लगातार भेदभावपूर्ण प्रथाओं के माध्यम से अधिकारों का सम्मान करने वाले लोकतंत्र के रूप में अपनी वैश्विक नेतृत्व आकांक्षाओं को कमजोर कर दिया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया उपनिदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, ‘दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार लोगों को जिम्मेदार ठहराने के बजाय अधिकारियों ने पीड़ितों को दंडित करना चुना और इन कार्यों पर सवाल उठाने वाले किसी भी व्यक्ति को सताया.’

740 पेज की वर्ल्ड रिपोर्ट 2024 के 34वें संस्करण में ह्यूमन राइट्स वॉच ने 100 से अधिक देशों में मानवाधिकार की समीक्षा की है.

भारतीय अधिकारियों ने छापे, वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआर), जो गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी फंडिंग को नियंत्रित करता है, के उपयोग के माध्यम से पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और आलोचकों को परेशान किया.

फरवरी 2023 में भारतीय टैक्स अधिकारियों ने बीबीसी की दो भाग वाली डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ के स्पष्ट प्रतिशोध में नई दिल्ली और मुंबई में उसके कार्यालयों पर छापा मारा था, जिसमें गुजरात दंगों के दौरान मुसलमानों को सुरक्षा प्रदान करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की विफलता पर प्रकाश डाला गया था.

इतना ही नहीं सरकार ने देश के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों के तहत आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए जनवरी में भारत में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर रोक लगा दिया था.

रिपोर्ट में धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रथाओं को उजागर करते हुए कई घटनाओं को सूचीबद्ध किया गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘31 जुलाई 2023 को हरियाणा के नूंह जिले में एक हिंदू जुलूस के दौरान सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी और तेजी से आसपास के कई जिलों में फैल गई. हिंसा के बाद अधिकारियों ने अवैध रूप से सैकड़ों मुस्लिम संपत्तियों को नष्ट करके और कई मुस्लिम लड़कों और पुरुषों को हिरासत में लेकर जवाबी कार्रवाई की थी. अतिक्रमण हटाने के नाम पर की गई कार्रवाई पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से पूछा कि क्या वह ‘जातीय सफाया’ कर रही है.

यह भी कहा गया है, ‘मई 2023 में पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर राज्य में बहुसंख्यक मेईतेई और अल्पसंख्यक कुकी-जो समुदायों के बीच जातीय हिंसा भड़कने के बाद 200 से अधिक लोग मारे गए, हजारों लोग विस्थापित हुए, सैकड़ों घर तथा चर्च नष्ट कर दिए गए तथा महीनों तक इंटरनेट बंद रहा. भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कुकी जनजाति को कलंकित करके, मादक पदार्थों की तस्करी में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाकर और म्यांमार से शरणार्थियों को शरण प्रदान करके विभाजन को बढ़ावा दिया.’

इसके मुताबिक, ‘अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मणिपुर पुलिस ने ‘स्थिति पर नियंत्रण खो दिया है’ और विशेष टीमों को यौन हिंसा सहित हिंसा की जांच करने का आदेश दिया था. सितंबर 2023 में एक दर्जन से अधिक संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों ने मणिपुर में चल रही हिंसा और दुर्व्यवहार पर चिंता जताते हुए कहा था कि इसे लेकर सरकार की प्रतिक्रिया धीमी और अपर्याप्त थी.’

रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि भारतीय अधिकारियों ने जम्मू-कश्मीर में लगातार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और अन्य अधिकारों को सीमित किया है. सुरक्षा बलों द्वारा गैर-न्यायिक हत्या की घटनाएं पूरे वर्ष जारी रहीं.

इसने भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह के मामले को भी उजागर किया, जिन पर भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान एक दशक तक कम से कम छह महिला पहलवानों द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाया गया था.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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