तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपने दादा एमके करुणानिधि का नाम लेते हुए कहा कि द्रमुक किसी विशेष धर्म या आस्था के ख़िलाफ़ नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि धर्म को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
नई दिल्ली: द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) नेता और तमिलनाडु के मंत्री उदयनिधि स्टालिन ने कहा कि पार्टी उस मंदिर से सहमत नहीं है जो एक मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद बनाया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुवार को उन्होंने कहा कि उनके दादा एमके करुणानिधि ने कहा करते थे कि द्रमुक किसी विशेष धर्म या आस्था के खिलाफ नहीं है.
डीएमके यूथ विंग के प्रमुख ने 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस का जिक्र करते हुए कहा, ‘हमें वहां मंदिर बनने से कोई समस्या नहीं है. हम मस्जिद को ध्वस्त करने के बाद मंदिर बनाए जाने से सहमत नहीं हैं.
उदयनिधि, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, स्टालिन ने कहा कि धर्म को राजनीति के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘हमारे कोषाध्यक्ष (टीआर बालू) पहले ही कह चुके हैं कि अध्यात्म और राजनीति को नहीं मिलाया जाना चाहिए.’
मालूम हो कि सितंबर 2023 में उदयनिधि के सनातन धर्म को लेकर दिए गए एक बयान पर खासा विवाद हुआ था.
2 सितंबर को एक सम्मेलन में उदयनिधि ने कहा था कि सनातन धर्म डेंगू और मलेरिया की तरह है, जिसे खत्म करने की जरूरत है. इसे लेकर हिंदुत्व समूहों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया मिली थी. यहां तक कि उदयनिधि को जान से मारने की धमकी भी मिली थी. अयोध्या के संत परमहंस आचार्य ने उनका सिर काटने वाले को 10 करोड़ रुपये का इनाम देने की घोषणा भी की थी.
हालांकि, आलोचना के बावजूद वे अपनी टिप्पणियों पर कायम रहे थे.
मालूम हो कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) जैसे दलों ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेने से इनकार कर दिया है. वहीं कुछ राजनेताओं ने 22 जनवरी के बाद राम मंदिर जाने की बात कही है.
टीएमसी प्रमुख और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री 22 जनवरी को एक रैली निकालेंगी, जो रास्ते में मस्जिद, मंदिर, चर्च और गुरुद्वारे से होकर गुजरेगी.
इन दलों का कहना है कि यह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले चुनावी विचारों के लिए भाजपा और आरएसएस गठबंधन द्वारा आयोजित किया जा रहा है.
दलों का आरोप है कि भाजपा और आरएसएस ने मिलकर इसे अपने चुनावी लाभ के लिए एक राजनीतिक कार्यक्रम बना दिया है.
इसके अलावा चारों शंकराचार्यों ने 22 जनवरी को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल नहीं होने का फैसला किया है.