महिला आरक्षण तत्काल लागू करने संबंधी याचिका का केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया

सितंबर 2023 में केंद्र, संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण से संबंधित नारी शक्ति वंदन अधिनियम लेकर आई थी, जिसे अगली जनगणना और इसके बाद होने वाले परिसीमन के बाद लागू किए जाने का प्रावधान किया गया है. इसे तत्काल लागू किए जाने की मांग करते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है.

(फोटो साभार: एएनआई)

सितंबर 2023 में केंद्र, संसद और राज्य विधानसभाओं में 33% महिला आरक्षण से संबंधित नारी शक्ति वंदन अधिनियम लेकर आई थी, जिसे अगली जनगणना और इसके बाद होने वाले परिसीमन के बाद लागू किए जाने का प्रावधान किया गया है. इसे तत्काल लागू किए जाने की मांग करते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया है.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बीते सोमवार (22 जनवरी) को 2023 नारी शक्ति वंदन अधिनियम को तत्काल लागू करने की मांग करने वाली याचिका, जिससे 2024 के आम चुनावों से पहले लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की जा सकें, का यह तर्क देते हुए विरोध किया कि याचिका यह तर्क रखने में विफल रही है कि कैसे संवैधानिक संशोधन संविधान की मूल संरचना के प्रतिकूल है.

याचिका की विचारणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति उठाते हुए केंद्र ने जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ को बताया कि संवैधानिक संशोधनों पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका में ‘यह प्रदर्शित करने के लिए कोई तर्क नहीं दिया गया है कि महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के कार्यान्वयन के लिए पूर्व निर्धारित शर्तों के रूप में जनगणना और परिसीमन को शामिल करने से बुनियादी संरचना के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है.’

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मामले में सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता की सहायता कर रहे वकील कनु अग्रवाल ने कहा, ‘सॉलिसिटर जनरल को इस मामले में प्रारंभिक आपत्ति है. संविधान संशोधन को चुनौती तो दी गई है, लेकिन बुनियादी ढांचे पर कोई दलील इस याचिका पर नहीं है. वे कुछ अंतरिम आदेश भी मांग रहे हैं, लेकिन हमें इसकी विचारणीयता पर प्रारंभिक आपत्ति है.’

संक्षिप्त सुनवाई के दौरान मेहता उपस्थित नहीं थे.

इस पर पीठ ने केंद्र से एक हलफनामा मांगा, जिसमें अक्टूबर 2023 में कांग्रेस नेता जया ठाकुर द्वारा दायर जनहित याचिका पर उसकी आपत्तियों का विवरण दिया गया हो.

अग्रवाल ने कहा कि उन्हें लिखित उत्तर प्रस्तुत करने के लिए दो सप्ताह की आवश्यकता होगी, हालांकि जया ठाकुर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने शीघ्र सुनवाई के लिए दबाव डाला.

सिंह ने कहा, ‘आम चुनावों की घोषणा जल्द ही किसी भी समय की जा सकती है. कृपया, इसे दो सप्ताह के बाद तुरंत सुनें, अन्यथा इस याचिका को दायर करने का पूरा उद्देश्य विफल हो जाएगा.’ उन्होंने साथ ही अंतरिम आदेश का भी अनुरोध किया.

सिंह ने यह भी सवाल किया कि महिला आरक्षण को जनगणना के वैज्ञानिक आंकड़ों के अधीन क्यों रखा गया है, जबकि 1992 में पहली बार स्थानीय निकाय चुनावों में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण प्रदान करते समय ऐसा नहीं किया गया था.

प्रतिक्रिया देते हुए पीठ ने कहा कि वह केंद्र के जवाब को देखे बिना अंतरिम आदेश की याचिका पर टिप्पणी नहीं करना चाहेगी.

जैसे ही अदालत ने केंद्र को अपना जवाब देने के लिए मामले को तीन सप्ताह के लिए स्थगित किया, जया ठाकुर की ओर से पेश एक और वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पावनी ने पीठ से केंद्र सरकार को औपचारिक नोटिस जारी करने का अनुरोध किया.

उनके अनुरोध को स्वीकार करते हुए पीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया कि केंद्र की ओर से अग्रवाल द्वारा औपचारिक नोटिस को टाला जा रहा है, क्योंकि वह सरकार की ओर से पेश हुए हैं.

18 सितंबर 2023 को केंद्र ने संसद और राज्य विधानसभाओं में 33 फीसदी महिला आरक्षण से संबंधित संविधान (128वां संशोधन) विधेयक 2023 पेश किया था, जिसे लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने मंजूरी दे दी. नारी शक्ति वंदन अधिनियम, जैसा कि इसे कहा जाता है, को 28 सितंबर 2023 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी.

वैधानिक संशोधनों के माध्यम से कानून ने प्रावधान किया कि 33 फीसदी कोटा का कार्यान्वयन अगली जनगणना और उसके बाद के परिसीमन अभ्यास – लोकसभा और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण – के अधीन होगा, ताकि महिला उम्मीदवारों के लिए निर्धारित की जाने वाली सीटों की सही संख्या सुनिश्चित की जा सके.

इसमें कहा गया है कि लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए कोटा 15 साल तक जारी रहेगा, हालांकि संसद बाद में लाभ की अवधि बढ़ा सकती है.

कांग्रेस नेता जया  ठाकुर ने 33 फीसदी महिला आरक्षण कानून को तत्काल लागू करने के लिए अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और इस तरह के आरक्षण को जनगणना और उसके बाद के परिसीमन अभ्यास के अधीन बनाने वाले प्रावधान को रद्द करने की मांग की थी.

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