त्रिपुरा: टिपरा मोथा ने कोकबोरोक परीक्षाओं में बंगाली लिपि को ‘अनिवार्य’ बनाने का विरोध किया

कोकबोरोक को 1979 में त्रिपुरा में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी. हाल ही में त्रिपुरा बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन के प्रमुख ने कथित तौर पर दावा किया था कि बोर्ड के छात्रों को कोकबोरोक परीक्षा देते समय केवल बंगाली लिपि का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी. टिपरा मोथा पार्टी ने कहा है कि वह क़ानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

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तिपरा मोथा पार्टी और विपक्ष के नेता अनिमेष देबबर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक)

कोकबोरोक को 1979 में त्रिपुरा में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी. हाल ही में त्रिपुरा बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन के प्रमुख ने कथित तौर पर दावा किया था कि बोर्ड के छात्रों को कोकबोरोक परीक्षा देते समय केवल बंगाली लिपि का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी. टिपरा मोथा पार्टी ने कहा है कि वह क़ानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

तिपरा मोथा पार्टी और विपक्ष के नेता अनिमेष देबबर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: टिपरा मोथा पार्टी ने बीते शुक्रवार (2 फरवरी) को टीबीएसई (त्रिपुरा बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन) के प्रमुख डॉ. धनंजय गणचौधरी की उस टिप्पणी का विरोध किया, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर दावा किया था कि बोर्ड के छात्रों को कोकबोरोक परीक्षा देते समय केवल बंगाली लिपि का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी.

टीबीएसई प्रमुख पर तीखा हमला करते हुए विपक्ष के नेता अनिमेष देबबर्मा ने दावा किया कि अधिकारी अपने ‘फैसले’ से राज्य में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, टिपरा मोथा के नेता अनिमेष देबबर्मा ने कहा, ‘अगर उनमें (टीबीएसई प्रमुख) हिम्मत है, तो वह एक लिखित आदेश दे सकते हैं कि कोकबोरोक को रोमन लिपि में नहीं लिखा जा सकता है. 17 साल से छात्र रोमन लिपि में कोकबोरोक लिख रहे हैं और यह शख्स कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है.’

उन्होंने कहा, ‘लोग सोचेंगे कि वह अपने सांप्रदायिक रवैये से टीबीएसई को प्रदूषित करने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य में कानून व्यवस्था, शांति और अनुशासन बिगड़ने से पहले सरकार को उन्हें बोर्ड से हटा देना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि हो सकता है कि कुछ लोग गणचौधरी को उकसा रहे हों और उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. माणिक साहा से इस मामले को देखने की अपील की है.

अनिमेष देबबर्मा ने इससे पहले कहा था, ‘अगर गणचौधरी एक आदेश लाते हैं कि रोमन लिपि की अनुमति नहीं है, तो आप पाएंगे कि कल सभी सड़कें अवरुद्ध हो जाएंगी. बहुत बड़ा आंदोलन होगा. यह समय की बर्बादी होगी. इसीलिए मैंने कहा कि इस तरह के फैसले से कानून-व्यवस्था प्रभावित होगी. मैं सरकार और बोर्ड अध्यक्ष से ऐसे फैसले न लेने की अपील करता हूं.’

टिपरा मोथा के संस्थापक प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने भी इस मुद्दे पर आदिवासियों से अपने अधिकारों के लिए लड़ने का आग्रह किया है.

उन्होंने गुरुवार (1 फरवरी) शाम सोशल मीडिया पर प्रसारित एक संदेश में कहा था, ‘यह हमें सिस्टम से बाहर रखने की एक योजना है. मैं आपसे कह रहा हूं कि जवाब दिया जाना चाहिए, लेकिन राजनेताओं के रूप में नहीं, बल्कि टिपरा लोगों के रूप में… यह बुबागरा (राजा) हैं, जो टिपरा लोगों से खड़े होने और विरोध करने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए कह रहे हैं.’

विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए टीबीएसई प्रमुख धनंजय गणचौधरी ने कहा, ‘राज्य सरकार ने पहले ही सीबीएसई को एक प्रस्ताव भेज दिया है, जिसमें छात्रों को कोकबोरोक परीक्षाओं के लिए रोमन लिपि का उपयोग करने की अनुमति देने के लिए कहा गया है. लेकिन हमें अब तक जवाब नहीं मिला है. इसलिए, मुख्यमंत्री ने बोर्ड को अगली अधिसूचना तक परीक्षा को वैसे ही जारी रखने का निर्देश दिया, जैसे लंबे समय से चल रही थी. विपक्षी नेता ने जो कुछ भी कहा वह आंशिक रूप से सच है और छात्रों को गुमराह कर सकता है.’

रोमन लिपि को कोकबोरोक भाषा की आधिकारिक लिपि मानने का मुद्दा पिछले साल राज्य विधानसभा में और जनवरी में शीतकालीन सत्र के दौरान भी उठाया गया था.

अनिमेष देबबर्मा ने छात्रों को बंगाली और रोमन दोनों लिपियों में कोकबोरोक परीक्षा देने की अनुमति देने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था.

विपक्षी दलों – टिपरा मोथा, कांग्रेस और माकपा के विधायकों के गंभीर दबाव का सामना करते हुए मुख्यमंत्री माणिक साहा ने सदन को आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार जल्द ही सीबीएसई को लिखेगी, जिसमें छात्रों को कोकबोरोक परीक्षाओं के लिए बंगाली और रोमन लिपियों का उपयोग करने की अनुमति देने का अनुरोध किया जाएगा.

रिपोर्ट के अनुसार, कोकबोरोक त्रिपुरा के 19 आदिवासी समुदायों में से अधिकांश की भाषा है. इसे 1979 में त्रिपुरा में आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी गई थी.

पूर्व मंत्री श्यामा चरण त्रिपुरा और भाषाविद् पबित्रा सरकार के तहत क्रमश: दो भाषा आयोग स्थापित किए गए, जिनमें से दोनों ने कोकबोरोक भाषा के लिए रोमन लिपि की सिफारिश की थी.

हालांकि, पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकारों ने बंगाली लिपि को ‘पसंद’ दी थी, लेकिन रोमन लिपि के उपयोग के प्रावधानों को बरकरार रखा था.

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