विवादों के बीच भाजपा के पूर्व मीडिया सेल संयोजक को गुजरात विद्यापीठ का कुलपति नियुक्त किया गया

गुजरात विद्यापीठ एक डीम्ड विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना 100 साल पहले महात्मा गांधी ने की थी. आवश्यक शैक्षणिक अनुभव की कमी और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों का सामना करने के कारण यूजीसी के कारण बताओ नोटिस के बाद राजेंद्र खिमानी के पद छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद यह पद ख़ाली हो गया था.

गुजरात विद्यापीठ. (फोटो साभार: localguidesconnect.com)

गुजरात विद्यापीठ एक डीम्ड विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना 100 साल पहले महात्मा गांधी ने की थी. आवश्यक शैक्षणिक अनुभव की कमी और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों का सामना करने के कारण यूजीसी के कारण बताओ नोटिस के बाद राजेंद्र खिमानी के पद छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद यह पद ख़ाली हो गया था.

गुजरात विद्यापीठ. (फोटो साभार: localguidesconnect.com)

नई दिल्ली: गुजरात भाजपा मीडिया सेल के पूर्व संयोजक और वर्तमान में गांधीनगर में भारतीय शिक्षक शिक्षा संस्थान (आईआईटीई) के कुलपति हर्षद पटेल को बीते बुधवार (7 फरवरी) को गुजरात विद्यापीठ का कुलपति नियुक्त किया गया.

गुजरात विद्यापीठ एक डीम्ड विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना 100 साल पहले महात्मा गांधी ने की थी.

डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, जिन्होंने 2022 से विद्यापीठ के कुलाधिपति के रूप में कार्य किया है, ने पटेल को इसका 17वां कुलपति नियुक्त किया.

आवश्यक शैक्षणिक अनुभव की कमी और वित्तीय अनियमितताओं के आरोपों का सामना करने के कारण यूजीसी के कारण बताओ नोटिस के बाद राजेंद्र खिमानी के पद छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद यह पद खाली हो गया था.

गुजरात हाईकोर्ट द्वारा उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करने के बाद खिमानी ने इस्तीफा दे दिया था.

दिलचस्प बात यह है कि 2020 में आईआईटीई के कुलपति के रूप में हर्षद पटेल की नियुक्ति को भी इस आधार पर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी कि उनके पास विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के अनुसार कॉलेज प्रोफेसर के रूप में 10 साल के अनुभव सहित आवश्यक योग्यता का अभाव था.

अदालत ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि ‘उनकी नियुक्ति के संबंध में कोई अनियमितता नहीं हुई है’.

आईआईटीई वेबसाइट पर उनके बायोडाटा में कहा गया है कि वह अहमदाबाद में एसयूजी कॉलेज ऑफ एजुकेशन में ‘शिक्षक प्रशिक्षक’ थे. एसयूजी कॉलेज की वेबसाइट पर उनके बायोडाटा में कहा गया है कि वह ‘1998 से एसोसिएट प्रोफेसर बने हुए हैं’.

उन्होंने एडसीआईएल (इंडिया) लिमिटेड (एमएचआरडी का पीएसयू) में स्वतंत्र निदेशक, डब्ल्यूआरसी के सदस्य, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद, गुजरात सरकार के मुख्यमंत्री कार्यालय में मीडिया के लिए विशेष अधिकारी, म्यूनिसिपल स्कूल बोर्ड के उपाध्यक्ष, शिक्षा विभाग में नई शिक्षा नीति 2020 हेतु ‘टास्क फोर्स’ समिति के सदस्य सहित विभिन्न पदों पर भी कार्य किया है.

1920 में गांधी द्वारा स्थापित गुजरात विद्यापीठ में पिछले कुछ वर्षों में कई बदलाव हुए हैं, खासकर प्रसिद्ध कार्यकर्ता और स्व-रोजगार महिला संघ (सेवा) की संस्थापक इला भट्ट की मृत्यु के बाद.

नियुक्तियों और वित्त प्रबंधन में अनियमितताओं के आरोपों का सामना कर रहे विश्वविद्यालय ने कुलाधिपति (Chancellor) का पद स्वीकार करने के लिए राज्यपाल देवव्रत से संपर्क किया था.

विश्वविद्यालय के नौ ट्रस्टियों ने इस कदम के खिलाफ इस्तीफा दे दिया और एक खुला पत्र लिखकर राज्यपाल से पद स्वीकार न करने के लिए कहा, जिसमें कहा गया था कि यह ‘घोर राजनीतिक दबाव में’ और ‘गांधी के मूल्यों, तरीकों और प्रथाओं की पूरी तरह से उपेक्षा’ में किया गया था.

राज्यपाल ने पद स्वीकार कर लिया और नौ प्रतिष्ठित ट्रस्टियों के इस्तीफे भी स्वीकार कर लिए गए. तब से नौ नए ट्रस्टियों का चयन किया गया है, जिनमें पूर्व भाजपा मंत्री भूपेंद्र सिंह चुडास्मा, भारतीय प्रबंधन संस्थान-कलकत्ता में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष श्रीकृष्ण कुलकर्णी और हर्षद पटेल शामिल हैं.

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