उत्तराखंड में पारित समान नागरिक संहिता के विरोध में विपक्ष, महिलाएं और मुस्लिम संगठन

उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित समान नागरिक संहिता विधेयक के विरोध में सामने आए विचारों में कहा गया है कि राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस लाने में जल्दबाजी की गई है, कई प्रावधान एकरूपता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ हैं और लिव-इन रिलेशनशिप के नियमों के माध्यम से भाजपा अब लोगों के बेडरूम तक में घुस गई है.

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(इलस्ट्रेशन: द वायर)

उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित समान नागरिक संहिता विधेयक के विरोध में सामने आए विचारों में कहा गया है कि राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इस लाने में जल्दबाजी की गई है, कई प्रावधान एकरूपता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ हैं और लिव-इन रिलेशनशिप के नियमों के माध्यम से भाजपा अब लोगों के बेडरूम तक में घुस गई है.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रबर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: उत्तराखंड विधानसभा ने 7 फरवरी (बुधवार) को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पारित किया, जिसका उद्देश्य अन्य मुद्दों के अलावा विवाह, रिश्तों और विरासत को नियंत्रित करने वाले धार्मिक व्यक्तिगत कानूनों को बदलना है. इसके साथ ही यह समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है.

यह कदम लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उठाया गया है. समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एजेंडे में एक महत्वपूर्ण मुद्दा है.

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में कहा, ‘स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 के तहत अधिकार दिया कि राज्य भी उचित समय पर समान नागरिक संहिता लागू कर सकते हैं. लोगों के मन में इसे लेकर संदेह है. हमने संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार मसौदा बनाया है.’

असम और गुजरात ने भी कहा है कि राज्य इस कानून का समर्थन करेंगे.

विपक्ष को बहस का समय नहीं दिया

उत्तराखंड के नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि विधेयक पारित करने से पहले विपक्ष को बहस की तैयारी के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए था.

उन्होंने कहा, ‘इसे लागू करने के पीछे इतनी जल्दी क्या है? हमारे पास पर्याप्त समय है.’

वे आगे बोले, ‘वे हमसे उम्मीद करते हैं कि कुछ दिन पहले ही प्रस्तुत किए गए इतने लंबे दस्तावेज को हम पढ़ेंगे और चर्चा शुरू कर देंगे. ऐसा लगता है कि सरकार कुछ छिपाने की कोशिश कर रही है.’

उन्होंने कहा, ‘बिल को पारित करने के लिए आपके पास पूर्ण बहुमत है, लेकिन विपक्ष को तैयारी के लिए कुछ समय देना बेहतर होता.’

सोशल साइट एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने सवाल उठाया कि सरकार ने समान नागरिक संहिता के लिए जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई समिति का गठन किया. 13 महीनों में समिति ने सरकार को रिपोर्ट सोंप दी, लेकिन क्या समिति ने विभिन्न सामाजिक समूहों या राजनीतिक दलों को अपना ब्लू-प्रिंट बताया?

उन्होंने आगे कहा, ‘जिस देश में अभी भी आपराधिक कानून सहित अनेकों कानून अभी समान नहीं हैं , वहां कोई कैसे कल्पना के आधार पर ही ‘समान नागरिक संहिता’ पर अपने विचार दे सकता है? अगर समिति ने कोई ब्लू-प्रिंट दिया होता तो अनेकों व्यवहारिक और मूल्यवान विचार सामने आते.’

वे बोले, ‘प्रेस के माध्यम से पता चला है कि आपका कानून महिलाओं को लैंगिग समानता देने के उद्देश्य से लाया गया विधेयक है. अगर ऐसा है तो आप इस समानता के अधिकार से उत्तराखंड की अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को क्यों दूर रख रहे हैं ? क्या प्रदेश की 4 प्रतिशत जनसंख्या से संबध रखने वाली महिलाएं आपकी कथित लैंगिक समानता की हकदार नहीं थीं?’

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के साकेत गोखले ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों के लिए नियमों की आलोचना करते हुए कहा कि ‘भाजपा अब लोगों के बेडरूम में घुस गई है.’

एक्स पर एक पोस्ट में टीएमसी नेता ने कहा, ‘इस चौंकाने वाले प्रावधान का मतलब यह भी है कि एक पुरुष और एक महिला जो केवल एक साथ रह रहे हैं, उनके खिलाफ अगर कोई शिकायत कर देता है तो उन्हें यह साबित करना होगा कि वे लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं हैं.’

कांग्रेस नेता शमा मोहम्मद ने भी कहा कि यह विधेयक ‘सहमति से साथ रह रहे व्यस्कों के निजी जीवन में घुसपैठ करने का एक शर्मनाक प्रयास है.’

विधेयक को लेकर असम के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के अध्यक्ष और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा, ‘जब सरकार विफल हो जाती है तो राज्य विधानसभाओं को कुछ चमकदार करना पड़ता है. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा भी समय-समय पर ऐसा करते हैं. वे प्रधानमंत्री मोदी को खुश करना चाहते हैं, क्योंकि वे कुछ समय के लिए मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं. इस विधेयक को कूड़ेदान में फेंक देना चाहिए.’

उत्तराखंड की महिला संगठनों ने क्या कहा

वहीं, उत्तराखंड के महिला समूहों द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘यह विधेयक वास्तव में वयस्कों के सहमति से संबंध बनाने, जिसे ‘लिव इन’ कहा जाता है, जैसे संवैधानिक रूप से स्वीकार्य व्यवहारों का अपराधीकरण और विनियमन कर रहा है. स्वायत्तता और पसंद-नापसंद को कम कर रहा है, जो इस देश में महिलाओं ने घरों के अंदर और सार्वजनिक मंचों पर एकजुट होकर हासिल किया है.’

आगे कहा गया, ‘इस संबंध में मोरल पुलिसिंग लागू की गई है. चौंकाने वाली बात यह है कि यह कानून राज्य के सभी निवासियों के अलावा उन लोगों पर भी लागू होता है जो उत्तराखंड के बाहर जाकर रह रहे हैं.’

बयान में कहा गया है, ‘गौर करने वाली बात यह है कि एक परिवार के भीतर क्वीर और ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों और ट्रांसजेंडर और समलैंगिक लोगों के विवाह के अधिकारों पर इसमें चुप्पी साध ली गई है.’

इसमें कहा गया है, ‘मुख्य रूप से यह उन प्रावधानों में बदलाव लाने का प्रयास करता है, जिन्हें मुस्लिम कानून में दोषपूर्ण माना जाता है, जैसे उत्तराधिकार में विषमता, बहुविवाह और हलाला प्रथा. एक मायने में, विधेयक ने मुस्लिम परिवार कानून को समाप्त कर दिया है.’

मुस्लिम संगठनों ने अनुचित और अनावश्यक कानून बताया

विधेयक पारित होने के बाद एक बयान में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर प्रस्तावित कानून ‘अनुचित, अनावश्यक और विविधता के खिलाफ’ है.

उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए इसमें जल्दबाजी की गई है. यह महज दिखावा है और राजनीतिक प्रोपेगेंडा से ज्यादा कुछ नहीं है.’

बयान में कहा गया है, ‘हालांकि इस कानून में अनुसूचित जनजातियों को पहले से ही बाहर रखा गया है, अन्य सभी समुदायों के लिए उनके रीति-रिवाजों और प्रथाओं के लिए प्रावधान शामिल किए गए हैं. उदाहरण के लिए कानून निषिद्ध रिश्तों की सीमा बताता है, जिनमें विधिवत विवाह संपन्न नहीं हो सकता है, लेकिन इसमें यह भी शर्त है कि ऐसे नियम तब लागू नहीं होंगे, जब पक्षकारों के रीति-रिवाज और प्रथाएं इसके विपरीत बात कहते हों. जो प्रश्न उत्तर की मांग करता है वह यह है कि फिर समानता या एकरूपता कहां है?’

प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा, ‘यह स्पष्ट करना भी जरूरी है कि जुलाई 2023 में देश के अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर समान नागरिक संहिता को खारिज कर दिया था और कहा था कि यह मौलिक अधिकारों और धार्मिक तथा सांस्कृतिक विविधता के खिलाफ है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘प्रस्तावित अधिनियम से अनुसूचित जनजातियों को छूट दी गई है, फिर इसे समान नागरिक संहिता कैसे घोषित किया जा सकता है, जबकि राज्य में आदिवासियों की अच्छी-खासी आबादी है और बहुसंख्यक वर्ग को भी कई छूटें दी गई हैं. कानून का असली निशाना मुसलमान ही हैं.’

एक अन्य मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने कहा कि मुसलमान शरिया से समझौता नहीं कर पाएंगे. संस्था ने कहा, ‘हम शरिया के खिलाफ किसी भी कानून को स्वीकार नहीं कर सकते, क्योंकि एक मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन वह शरिया और धर्म से कभी समझौता नहीं कर सकता.’

समान नागरिक संहिता के तहत नियम

विधेयक में सभी समुदायों में विवाह के लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है – महिलाओं के लिए 18 वर्ष, पुरुषों के लिए 21 वर्ष.

इसमें लिव-इन रिलेशनशिप के अनिवार्य पंजीकरण और ऐसा न करने पर तीन से छह महीने की जेल की सजा का प्रावधान है.

लिव-इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चे वैध माने जाएंगे और परित्यक्त महिलाएं अपने पार्टनर से गुजारा भत्ता पाने की हकदार होंगी.

विधेयक बाल विवाह पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है और तलाक के लिए एक समान प्रक्रिया शुरू करता है. यह संहिता सभी धर्मों की महिलाओं को उनकी पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्रदान करती है. विवाह का पंजीकरण भी सभी धर्मों के लिए अनिवार्य है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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