मीडिया संगठनों ने समाचार पोर्टल के यूट्यूब चैनल पर पाबंदी को सेंसरशिप बताया

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और प्रेस एसोसिएशन ने हिंदी समाचार पोर्टल 'बोलता हिंदुस्तान' और 'नेशनल दस्तक' के यूट्यूब चैनलों पर लगाए गए प्रतिबंध को 'प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला' बताते हुए इस रोक को हटाने की मांग की है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Bill Kerr/Flickr, CC BY-SA 2.0)

नई दिल्ली: प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) और प्रेस एसोसिएशन (पीए) ने हिंदी समाचार पोर्टल ‘बोलता हिंदुस्तान’ और ‘नेशनल दस्तक’ के यूट्यूब चैनलों पर प्रतिबंध की निंदा करते हुए इसे ‘मीडिया पर सेंसरशिप’ और ‘प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला’ बताया है.

रिपोर्ट के मुताबिक, पीसीआई और पीए ने इन चैनलों पर लगी रोक हटाने की मांग की है.

पीसीआई और पीए ने 13 अप्रैल को जारी एक बयान में कहा, ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और प्रेस एसोसिएशन सरकार की इस कठोर कार्रवाई की निंदा करता है, हम चिंतित हैं क्योंकि यह कदम मीडिया पर सेंसरशिप और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है, खासकर तब जब 2024 के लोकसभा चुनाव में बस कुछ ही समय बचा है.’

सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) ने यूट्यूब को विशेष रूप से ‘बोलता हिंदुस्तान’, जिसके 3 लाख सब्सक्राइबर हैं और ‘नेशनल दस्तक’ जिसके 94.2 लाख सब्सक्राइबर हैं, के चैनलों को ब्लॉक करने का निर्देश दिया है.

यूट्यूब ने इन छोटे मीडिया स्टार्टअप्स को भेजे गए मेल में कहा है कि एमआईबी से उसे जो ब्लॉकिंग अनुरोध प्राप्त हुए थे, उनमें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69ए और सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) के नियम 15(2) का इस्तेमाल किया गया था.

इसके अलावा, पीसीआई और पीए ने ‘सेंसरशिप के समान’ अन्य हालिया उदाहरणों पर भी ध्यान आकर्षित किया.

दो क्रिएटर्स- न्यूज़लॉन्ड्री में काम कर चुके मेघनाद और स्वतंत्र पत्रकार सोहित मिश्रा को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) से संबंधित वीडियो दिखाने पर मॉनेटाइजेशन पर पाबंदी का नोटिस मिला था.

पीसीआई और पीए ने कहा, ‘ये दोनों ऐसे समय में ईवीएम और वीवीपैट से जुड़ी विभिन्न चिंताओं पर बात कर रहे थे जब भारत महत्वपूर्ण लोकसभा चुनावों की ओर बढ़ रहा है. यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट ने भी ईवीएम और वीवीपैट मुद्दे पर विचार किया है और सरकार को नोटिस जारी किया है.’

प्रेस संगठनों ने कहा कि हाल ही में किसान आंदोलन पर रिपोर्टिंग करने वाले कई स्वतंत्र पत्रकारों के सोशल मीडिया हैंडल दो महीने से अधिक समय तक एक्सेस से बाहर रहने के बाद अनब्लॉक किए गए.

संगठनों ने कहा, ‘प्रभावित पक्षों को अपना बचाव करने का मौका दिए बिना सामग्री को हटाने या ब्लॉक करने के लिए सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जारी किए गए ऐसे अपारदर्शी निर्देश और आदेश सेंसरशिप के समान हैं.’

इन संगठनों ने कहा, ‘अनुराग ठाकुर की अध्यक्षता वाले सूचना और प्रसारण मंत्रालय को यूट्यूब चैनलों को प्रतिबंधित करने के इस कठोर आदेश के पीछे के कारण बताना चाहिए. हम इस रोक को तत्काल हटाने की मांग करते हैं.’

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