नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के हाथरस में आयोजित एक सत्संग में मची भगदड़ से 121 लोगों की मौत होने के बाद सामने आ रहा है कि जिस ‘भोले बाबा’ के चरणों की धूल पाने की चाह में लोग काल के गाल में समा गए, वास्तव में उसका विवादों से गहरा नाता रहा है, जिसकी जड़ें ढाई दशक पुरानी हैं और जो अब परत दर परत खुलकर सामने आ रही हैं. अतीत में उनकी गिरफ़्तारी भी हो चुकी है, उन पर ज़मीन पर अतिक्रमण के भी आरोप लगे हैं और कोरोना महामारी के प्रतिबंधों के बीच सत्संग करके हजारों लोगों की भीड़ जुटाने के चलते भी वे विवादों में रहे हैं.
कई नामों वाले ‘भोले बाबा’ यूपी पुलिस में कॉन्स्टेबल थे
भगवा वस्त्र या धोती-कुर्ता जैसे बाबाओं के पारंपरिक परिधानों से इतर सूट-बूट और टाई में चमत्कार के जरिये भक्तों की समस्याओं का निवारण करने का दावा करने वाले ‘भोले बाबा’ को ‘सूरज पाल’ और ‘नारायण साकार हरि’ के नाम से भी जाना जाता है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, धार्मिक उपदेशक बनने से पहले वह 90 के दशक में उत्तर प्रदेश पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल रहे. साथ ही, उत्तर प्रदेश स्थानीय खुफिया इकाई के भी सदस्य रहे. अब वह लाखों अनुयायियों वाले एक चमत्कारी बाबा हैं, जिसके भक्तों में भगदड़ में जाने गंवाने वाले आम लोगों से लेकर यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे प्रभावशाली लोग तक शामिल हैं.
उनके सत्संग का कार्यक्रम महीने के पहले मंगलवार को उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों में होता है, जहां उनके अनुयायियों के मुताबिक बीमारियों का इलाज, गरीबी से राहत और मुर्दों में प्राण फूंकने तक का असंभव काम होता है.
यही अंधविश्वास कारण है कि यूपी के मैनपुरी स्थित उनके आश्रम पर प्रतिदिन हजारों लोगों का तांता उनके आशीर्वाद के लिए लगा रहता है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि उनके आश्रम में ऐसी व्यवस्था की गई है कि लोग वहां कुछ दिन बिता सकें.
बीते कुछ वर्षों में, ‘भोले बाबा’ के दरबार में एक प्रथा देखी गई है कि जब भी वे भक्तों के बीच से गुजरते हैं तो भक्त उनके द्वारा छुई गई ज़मीन से उनके चरणों की धूल इकट्ठा करने के लिए टूट पड़ते हैं. इस प्रथा को ‘राज’ नाम दिया गया है, और इसी ‘राज’ के चलते हाथरस में मंगलवार को मौत के मातम का राज स्थापित हो गया.
भोले बाबा उर्फ सूरज पाल उर्फ नारायण साकार हरि का अतीत
उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के पटियाली गांव के रहने वाले सूरज पाल 1998 तक यूपी पुलिस में हेड कॉन्स्टेबल थे. उन्होंने एटा जिला स्थानीय खुफिया इकाई में भी काम किया. बाद में उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली.
हिंदुस्तान टाइम्स ने तब के उनके सहकर्मियों के हवाले से बताया है कि 2000 के दशक की शुरुआत में पाल आगरा के केदार नगर स्थित अपने घर से वापस अपने गांव चले गए और एक झोपड़ी में रहने लगे. उन्होंने अपने इस कदम को ‘ईश्वर के साथ प्रत्यक्ष अनुभव’ से प्रेरित बताया, जहां उन्हें एहसास हुआ कि ‘उनका शरीर परमात्मा का एक हिस्सा है.’
उन्होंने ऐसा दावा करना शुरू दिया कि वह नारायण (भगवान विष्णु) के दिव्य अंश हैं, और वह स्वयं के लिए ‘नारायण सरकार हरि’ नाम का इस्तेमाल करने लगे.
हिंदुस्तान टाइम्स ने यूपी के अधिकारियों के हवाले से बताया है कि भोले बाबा के ज्यादातर भक्त दलित या पिछड़ा वर्ग से हैं, जो बाबा को भगवान का ऐसा अवतार मानते हैं जो उनके बीच से ही ऐसे समय पर निकला है जब अक्सर वह महसूस करते थे कि उनकी आवाज को अनसुना किया जा रहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, लोगों का कहना है कि वे ‘भोले बाबा’ की ओर इसलिए भी आकर्षित हुए क्योंकि वह स्वयं दलित परिवार से आते हैं और किसी भी तरह का चढ़ावा नहीं मांगते हैं.
भोले बाबा के कार्यक्रमों में भी देखा जा सकता है कि उनके पोस्टर में ‘विविधता में एकता’, भेदभाव को दूर करने और नारायण सरकार की शक्ति में विश्वास दिलाने की बात कही जाती हैं, जो कहीं न कहीं वंचित समुदाय के लोगों को आकर्षित करती हैं.
उनके प्रभाव को ऐसे समझा जा सकता है कि उनके सत्संग में समाजवादी प्रमुख अखिलेश यादव जैसे नेता भी शामिल होते थे. 2013 के एक सत्र में अखिलेश भी पहुंचे थे, तब वह यूपी के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. आईएएस अधिकारी उनके आश्रम में जाकर अपनी शादी किया करते थे.
बाबा के विवाद
भोले बाबा के उनके पास चमत्कारी शक्तियां होने के दावों के चलते वर्ष 2000 में उनके खिलाफ एक मामला भी दर्ज हुआ था. पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, उन्हें तब गिरफ्तार भी किया गया था.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, वर्ष 2000 में आगरा में उन्हें तब गिरफ्तार किया गया था, जब उन्होंने कथित तौर पर एक 16 वर्षीय किशोरी के शव को उसके परिवार से जबरन छीनते हुए दावा किया था कि वह उसे वापस जीवित कर देंगे. हालांकि, बाद में पुलिस ने यह मामला बंद कर दिया था.
आगरा के शाहगंज के तत्कालीन स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) रिटायर्ड पुलिस अधिकारी तेजवीर सिंह ने मार्च 2000 में हुई भोले बाबा की गिरफ्तारी को याद करते हुए बताया, ‘सूरज पाल 200-250 लोगों के साथ श्मशान घाट पर पहुंचे, जहां 16 वर्षीय लड़की का शव उसके परिवार द्वारा लाया गया था. सूरज पाल और अन्य लोगों ने परिवार को अंतिम संस्कार करने से रोक दिया और उन्हें समझाने की कोशिश की कि वह उसे फिर से जीवित कर सकता है.’
पुलिस थाने के रिकॉर्ड के अनुसार, मामला 18 मार्च 2000 को दर्ज किया गया था. इसमें सूरज पाल और उनकी पत्नी समेत छह आरोपी बनाए गए थे, जिन पर आईपीसी की धारा 109 (उकसावा) और ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था. तेजवीर सिंह के मुताबिक, तब सूरज पाल और उनके साथियों ने पुलिस टीम पर पथराव भी किया था, जिसके बाद उनकी गिरफ्तारी कर ली गई थी.
इस गिरफ्तारी की पुष्टि इंडियन एक्सप्रेस से आगरा के पुलिस उपायुक्त ने भी की है. बहरहाल, मामले में 2 दिसंबर 2000 को खात्मा रिपोर्ट लगा दी गई थी.
इसके अलावा, मई 2021 में भी कोराना महामारी प्रतिबंधों के बावजूद फर्रुखाबाद में लगभग 50,000 लोगों का सत्संग आयोजित करने के लिए उनके और उनके सेवादारों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था.
हिंदुस्तान टाइम्स को कानपुर के घाटमपुर एसीपी रंजीत कुमार ने यह भी बताया है कि भोले बाबा के खिलाफ पुलिस उस मामले की भी जांच कर रही है जिसमें उनके संगठन ‘साकार विश्व हरि’ पर करसुई गांव में सात बीघा जमीन पर कथित तौर पर अतिक्रमण का आरोप है.