नई दिल्ली: टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) ने वामपंथी छात्र संगठन प्रोग्रेसिव स्टूडेंट फोरम (पीएसएफ) पर प्रतिबंध लगा दिया है. इसके पहले टिस पर शिक्षण और गैर–शिक्षण कर्मचारियों के साथ–साथ छात्रों को निशाना बनाने का आरोप लग चुका है.
संस्थान ने सोमवार (19 अगस्त) को एक पन्ने का नोटिस जारी कर संगठन को तत्काल प्रभाव से ‘प्रतिबंधित’ कर दिया. नोटिस पर संस्थान के रजिस्ट्रार अनिल सुतार के हस्ताक्षर हैं.
संस्थान का दावा है कि यह छात्र संगठन कैंपस में ‘अवैध रूप से’ काम कर रहा था.
नोटिस में लिखा है, ‘यह समूह ऐसी गतिविधियों में शामिल रहा है जो संस्थान के कामकाज में बाधा डालती हैं, संस्थान को बदनाम करती हैं, हमारे समुदाय के सदस्यों को नीचा दिखाती हैं और छात्रों और शिक्षकों के बीच विभाजन पैदा करती हैं.’
संस्थान के प्रशासन ने पीएसएफ पर छात्रों को उनके ‘लक्ष्यों’ से गुमराह करने का भी आरोप लगाया है.
पीएसएफ एक वामपंथी छात्र संगठन है, जो कई वर्षों से परिसर में सक्रिय है और जिसका मुख्य काम छात्रों के मुद्दे को उठाना रहा है. यह कई मौकों पर सरकार के नज़रिये को आगे बढ़ाने लिए संस्थान की आलोचना भी करता रहा है.
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज एक पुराना सामाजिक विज्ञान संस्थान है, जिसने हाल ही में अपनी स्वायत्तता खो दी है और अब यह सीधे तौर पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियंत्रण में चला गया है. स्वायत्तता खोने से छात्रों को संस्थान के प्रशासन पर सवाल उठाने का अधिकार भी खो दिया है.
यह पहली बार नहीं है, जब संस्थान ने पीएसएफ को निशाना बनाया हो. इसी साल अप्रैल में दलित समुदाय के पीएचडी स्कॉलर रामदास प्रीति शिवानंदन को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के खिलाफ दिल्ली में आयोजित विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए निलंबित कर दिया गया था.
पीएसएफ के छात्र नेता शिवानंदन पर ‘राष्ट्र–विरोधी गतिविधि’ में भाग लेने का आरोप लगाया गया था और संस्थान ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उनके खिलाफ ‘जांच’ करने के लिए बुलाया था. शिवनंदन ने टिस के आरोपों को अदालत में चुनौती दी है.
पीएसएफ की तरह, टिस में भी कई छात्र संगठन हैं जो अपने राजनीतिक झुकाव के अनुसार संगठित हैं. इन सक्रिय समूहों में पीएसएफ, आदिवासी स्टूडेंट फोरम (एएसएफ), अंबेडकर स्टूडेंट एसोसिएशन (एएसए), नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट फोरम (एनईएसएफ), फ्रेटरनिटी मूवमेंट (एफएम), मुस्लिम स्टूडेंट फोरम (एमएसएफ) और डेमोक्रेटिक सेक्युलर स्टूडेंट फोरम (डीएसएसएफ) शामिल हैं. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) जैसे दक्षिणपंथी समूहों ने भी हाल के वर्षों में संस्थान में पैर जमाए हैं.
टिस में पहली बार किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है. पीएसएफ के सदस्यों का कहना है कि आदेश की भाषा उन्हें अपराधी बनाती है.
आदेश में कहा गया है, ‘कोई भी छात्र या फैकल्टी मेंबर छात्र संगठन की विभाजनकारी विचारधाराओं का समर्थन करते, प्रचार करते या उनसे जुड़ा हुआ पाया गया तो हमारे संस्थान की नीतियों के अनुसार अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी.’ संस्थान ने पीएसएफ की गतिविधियों में भाग लेने वाले छात्रों या फैकल्टी मेंबर्स के बारे में भी जानकारी मांगी है.
संगठन से जुड़े कई छात्रों का मानना है कि संस्थान इस आदेश के माध्यम से उन्हें निशाना बना रही है.
द वायर से बातचीत में एक छात्र ने कहा है, ‘संस्थान ने पहले ही दिखा दिया है कि वह क्या कर सकता है. एक छात्र को पहले ही निलंबित किया जा चुका है, और संस्थान चाहता था कि पुलिस उसके और अन्य छात्रों के पीछे पड़ जाए. अब उन्होंने हमें एक प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन की तरह पेश किया है.’
पीएसएफ ने हाल में ग्रेजुएशन के लिए आए नए विद्यार्थियों के हॉस्टल का मुद्दा उठाया था. संस्थान को लिखे ईमेल में पीएसएफ ने कहा था कि छात्रों के लिए छात्रावास आवश्यक बुनियादी सुविधा है, जो उन्हें मिलनी ही चाहिए. लेकिन टिस ने इसे लग्जरी मान लिया.
पिछले महीने टिस के दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित एक दर्जन पीएचडी स्कॉलर्स को परिसर में ‘अधिक समय तक रहने’ की वजह से निष्कासन का नोटिस दिया गया था, जबकि उनमें से अधिकांश केवल दो या तीन साल ही रह रहे थे.
उससे कुछ दिन पहले टिस के 115 शिक्षण और गैर–शिक्षण फैकल्टी मेंबर्स को बर्खास्तगी पत्र भेजे गए थे. काफ़ी हंगामे के बाद संस्थान को उसे वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
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