छत्तीसगढ़ में मूलवासी बचाओ मंच पर बैन लोकतांत्रिक आंदोलन के संवैधानिक अधिकारों की हत्या: पीयूसीएल

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ ने बस्तर इलाके में सक्रिय मूलवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध की कड़ी निंदा करते हुए सवाल किया कि क्या माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी नीतियों का विरोध करना अपराध है.

सिलगेर में शील्ड्स के साथ तैनात पुलिस. (फोटो: नंदिनी सुंदर)

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में सक्रिय मूलवासी बचाओ मंच को राज्य की भाजपा सरकार ने विकास-विरोधी बताते हुए प्रतिबंध लगा दिया है. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने इसकी कड़ी निंदा करते हुए कहा कि यह शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक आंदोलन के संवैधानिक अधिकारों की हत्या है.

पीयूसीएल ने एक बयान जारी कर कहा कि मूलवासी बचाओ मंच पिछले कुछ वर्षों से लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण तरीकों से निर्दोष आदिवासियों की हत्याओं और गिरफ्तारियों के खिलाफ, पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में ग्रामसभाओं की सहमति के बिना पुलिस कैंपों की स्थापना के खिलाफ आंदोलन कर रहा है.

बयान में कहा कि संगठन को प्रतिबंध लगाने के लिए सरकार द्वारा दिए गए कारण कि ‘वह केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा माओवाद प्रभावित इलाकों में चलाए जा रहे विकास कार्यों और इनके संचालन के लिए स्थापित किए जा रहे पुलिस कैंपों का विरोध करने के लिए जनता को उकसा रहा है’ पूरी तरह से झूठा आरोप है.

पीयूसीएल ने कहा कि मूलवासी बचाओ मंच कैंपों विरोध जरूर किया है लेकिन विकास कार्यों का नहीं. यह संगठन कई जगहों पर स्कूल और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मांग उठाई है.

इसने सवाल किया कि क्या माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी नीतियों का विरोध करना अपराध है?

बयान में आगे कहा गया है कि मूलवासी बचाओ मंच के प्रदर्शनों में कभी कोई हिंसा या हिंसात्मक गतिविधि नहीं हुई है, न ही किसी भाषण या कार्यक्रम में जनता से हथियार उठाने के लिए कहा गया है. अधिसूचना में किसी हिंसात्मक गतिविधियों का उल्लेख नहीं है.

इसने कहा कि एक लोकतांत्रिक युवा संगठन को इस प्रकार प्रतिबंध करना एक संदेश है कि सरकार अपनी नीतियों पर किसी भी प्रकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती.

पीयूसीएल ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19(1)(सी) के तहत नागरिकों को संगठित होने का मौलिक अधिकार है. यह अधिकार नागरिकों को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक या राजनीतिक संघ बनाने की आजादी देता है.

पीयूसीएल ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार इस प्रतिबंध के जरिए बस्तर के निर्दोष और पीड़ित आदिवासियों की आवाज को कुचलकर उनके जंगल-जमीनों को कॉरपोरेट घरानों को सौंपने का रास्ता आसान बना रही है.

इसने यह भी आरोप लगाया कि माओवाद उन्मूलन के नाम पर बस्तर में निर्दोष आदिवासियों की फर्जी मुठभेड़ में हत्याएं की जा रही हैं और झूठे केसों में लोगों को जेलों में डाला जा रहा है.

बयान में आगे कहा कि राज्य सरकार द्वारा उनके साथ संवाद स्थापित करने के बजाय संगठन को प्रतिबंध करना बस्तर के युवाओं को माओवाद की ओर धकेलने का कदम है.

पीयूसीएल ने मांग की कि संगठन पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाया जाए और गिरफ्तार किए गए सभी निर्दोष आदिवासियों को रिहा करे.