बुलंदशहर हिंसा: मृत इंस्पेक्टर की बहन बोलीं- अख़लाक़ मामले की जांच की थी, इसलिए उन्हें मारा गया

सोमवार को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में भड़की भीड़ की हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मृत्यु हो गई थी. इंस्पेक्टर दादरी के अख़लाक़ लिंचिंग मामले में जांच अधिकारी थे

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह. (फोटो: पीटीआई)

सोमवार को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में भड़की भीड़ की हिंसा में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मृत्यु हो गई थी. इंस्पेक्टर दादरी के अख़लाक़ लिंचिंग मामले में जांच अधिकारी थे.

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह. (फोटो: पीटीआई)
इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह. (फोटो: पीटीआई)

लखनऊ: पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में सोमवार को गोकशी की अफवाह के बाद मचे बवाल में गुस्साई भीड़ ने स्याना थाने पर हमला किया, जिसमें उपद्रव के दौरान चली गोली से थाना अधिकारी इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की मौत हो गयी.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार भीड़ के थाने पर हमले में घायल सुबोध सिंह पर अस्पताल ले जाते हुए दोबारा हमला किया गया था और अस्पताल पहुंचने से पहले ही उनकी मौत हो गयी.

उत्तर प्रदेश के एडीजी (कानून और व्यवस्था) आनंद कुमार ने बताया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सुबोध सिंह की बायीं भौंह के पास .32 एमएम की गोली लगने की पुष्टि हुई है, साथ ही उनके शरीर पर भारी और धारदार हथियार से लगी चोटें भी हैं. बताया जा रहा है कि इंस्पेक्टर सुबोध की पिस्तौल और मोबाइल फोन गायब हैं.

सिंह के एक साथी पुलिसकर्मी को भी गंभीर चोटें आयी हैं और उन्हें इलाज के लिए मेरठ भेजा गया है.

उत्तर प्रदेश पुलिस ने सुबोध कुमार सिंह की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया है और कहा कि जिले में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्होंने ‘खुद को कुर्बान’ कर दिया, वहीं आईपीएस एसोसिएशन ने भी इंस्पेक्टर पर हमले की निंदा करते हुए दोषियों और उपद्रवियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है.

सुबोध सिंह सितंबर 2015 में दादरी के बिसाहड़ा गांव में हुए अख़लाक़ हत्याकांड मामले के पहले जांच अधिकारी थे. उनके साथी बताते हैं कि उन्हीं के प्रयासों के बाद इस मामले में आरोपियों की गिरफ़्तारी हुई थी.

हालांकि नवंबर 2015 में उनका तबादला वाराणसी कर दिया गया था और मामले में आरोप पत्र अन्य जांच अधिकारी में दाखिल किया था. 18 आरोपियों के खिलाफ इस मामले की सुनवाई स्थानीय अदालत में चल रही है और सभी आरोपी जमानत पर हैं.

इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की बहन ने आरोप लगाया कि हत्या पुलिस की एक ‘साज़िश’ है.

सुनीता सिंह ने मंगलवार को संवाददाताओं से कहा, ‘पुलिस ने एक साज़िश में मेरे भाई की हत्या की क्योंकि उसने एक गोहत्या मामले (अखलाक की पीट-पीट कर हत्या मामले) की जांच की थी.’

उन्होंने कहा, ‘उन्हें शहीद का दर्जा दिया जाना चाहिए और हमारे पैतृक स्थान पर उनका एक स्मारक बनाया जाना चाहिए.’

आवेशित सुनीता ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर बरसते हुए कहा, ‘गाय हमारी माता है. मैं उसे स्वीकार करती हूं. मेरे भाई ने अपना जीवन उनके लिए दिया. मुख्यमंत्री गाय, गाय, गाय करते रहते हैं. वह गोरक्षा के लिए कदम क्यों नहीं उठाते?’

लखनऊ में कार्यरत इंस्पेक्टर सुबोध के एक साथी पुलिसकर्मी अनुराग सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उन्होंने कई असाइनमेंट पर सुबोध के साथ काम किया था, जिनमें कई मामले ऐसे भी जहां पुलिस टीम द्वारा मारे गए छापों पर सवाल उठाए गए थे.

इंस्पेक्टर सुबोध के बारे में उन्होंने कहा, ‘वे पीछे हटने वालों में से नहीं थे. हर चुनौती का मुकाबला डटकर करते थे. कम से कम तीन मौकों पर मैंने देखा कि उन्होंने ऐसी किसी परिस्थिति से पीछे हटने से इनकार किया.’

अनुराग सिंह ने बताया कि दादरी में अख़लाक़ हत्याकांड के बाद भी सुबोध शांति बनाए रखने और अफवाहों पर नियंत्रण रखने के लिए रोज़ बिसाहड़ा गांव जाया करते थे.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एटा से आने वाले सुबोध कुमार सिंह के पिता भी पुलिस में थे. उनके परिवार में पत्नी और दो बेटे हैं.

पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के बेटे ने कहा है कि उनके पिता चाहते थे कि वह एक अच्छा नागरिक बने जो धर्म के नाम पर हिंसा नहीं भड़काए. अभिषेक सिंह ने कहा, ‘मेरे पिता ने इस हिंदू-मुस्लिम विवाद में अपना जीवन गंवा दिया. अगली बारी किसके पिता की होगी?’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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