हल्द्वानी से लेकर भाजपा शासित कई राज्यों में ‘बुलडोज़र अन्याय’ का सामना कर रहा मुस्लिम समुदाय

वीडियो: उत्तराखंड के हल्द्वानी शहर में नगर निगम द्वारा बनभूलपुरा क्षेत्र में एक मदरसे को ‘अतिक्रमण’ बताकर ढहाने की कार्रवाई के बाद क्षेत्र में हिंसा भड़क उठी थी. इसमें कम से कम पांच लोगों की मौत की पुष्टि हुई है.

बिहार: रेल अभ्यर्थियों के प्रदर्शन के वीडियो को यूट्यूब ने मोदी सरकार के आदेश पर ब्लॉक किया

सरकार ने 6 साल बाद असिस्टेंट लोको पायलट यानी रेलवे चालकों की भर्ती निकाली है, वह भी महज़ 5,696 पदों के लिए है. बिहार में युवा इन पदों की संख्या बढ़ाने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. ख़बर है कि इन प्रदर्शनों को कवर करने वाले कुछ चैनलों के वीडियो को सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देने के बाद यूट्यूब ने ब्लॉक कर दिए हैं.

नीतीश कुमार ‘पलटू’ हैं मगर बार-बार मुख्यमंत्री कैसे बन जाते हैं?

वीडियो: क्या वजह है कि नीतीश कुमार के ऊपर 'पलटूराम' की मोहर लगती है मगर फिर भी मुख्यमंत्री की कुर्सी उनके पास ही रहती हैं? भाजपा और राजद की राजनीति इसमें कैसे मदद करती है? अजय कुमार का नज़रिया.

क्या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानेगा इज़रायल?

वीडियो: गाजा पर इज़रायल के हमले के बीच दक्षिण अफ्रीका ने इस पर नरसंहार का आरोप लगाते हुए इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का रुख़ किया था, जिसने अपने निर्णय में इज़रायल को जेनोसाइड कन्वेंशन का पालन करने को कहा है. हालांकि इसने युद्धविराम का निर्देश नहीं दिया. फैसले की बारीकियों पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन से बातचीत.

अगर कर्पूरी ठाकुर जीवित होते तो मोदी सरकार के ख़िलाफ़ खड़े होते

कर्पूरी ठाकुर का पूरा जीवन संघर्ष बताता है कि उनकी और भाजपा की राजनीति में ज़मीन-आसमान का अंतर है. मोदी सरकार का कोई भी नेता कर्पूरी ठाकुर की नैतिकता और ईमानदारी को अपनी जीवन में जगह नहीं देता है. मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न ज़रूर दिया है मगर इसका मक़सद केवल चुनावी हिसाब-किताब है.

मोदी के भाषण में राम थे या राम के नाम पर की गई भाजपा की बेईमान राजनीति?

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण हिंदुत्व की राजनीति करने वाले व्यक्ति का संबोधन था. वो, जिसने धर्म की भावुकता और राजसत्ता की बेईमानी से एक ऐसा मिश्रण किया है जिसके ज़रिये वह आम आस्थावान जनता को छल सके.

राम मंदिर कवरेज सबूत है कि मीडिया ही मोदी सरकार की सबसे मज़बूत प्रचारक है

वीडियो: न्यूज़ चैनलों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हर छवि की अपडेट दी जा रही है. मीडिया अपना पूरा पैसा लगाकर नरेंद्र मोदी को हिंदू हृदय सम्राट के तौर में भारत के हर व्यक्ति के मानस में पहुंचाने में लगा हुआ है. धूप से लेकर के अगरबत्ती की अपडेट दी गई. टीवी चैनलों की अयोध्या कवरेज पर अजय कुमार का नज़रिया.

भारत-मालदीव विवाद की जड़ कहां है?

मालदीव के मंत्रियों द्वारा भारत के प्रधानमंत्री को लेकर की गईं अपमानजनक टिप्पणियां कोई फौरी प्रतिक्रिया थीं या इनकी वजह कहीं गहरी है?

अडानी-हिंडनबर्ग केस में कोर्ट का फ़ैसला न्याय है या कॉरपोरेट-राजनीति के गठजोड़ को मिली दोषमुक्ति?

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडानी समूह पर लगे आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में सेबी को बेदाग़ बताया गया है, जबकि समूह पर लगे आरोपों को लेकर सवाल सेबी के नियामक के बतौर कामकाज पर भी हैं. 

आमदनी, बेरोज़गारी, ग़रीबी, महंगाई, जीडीपी, एमएसपी पर 2023 में कैसी रही मोदी सरकार की नीति?

वीडियो: साल 2023 में आमदनी, बेरोज़गारी, ग़रीबी, महंगाई, जीडीपी, खेती-किसानी, एमएसपी पर मोदी सरकार की अर्थनीति क्या रही है? द वायर के अजय कुमार बता रहे हैं कि देश की सत्ता पर क़रीब 10 साल से क़ाबिज़ मोदी सरकार के तहत ज़्यादातर लोगों के जीवन में कोई बड़ा बुनियादी बदलाव नहीं आया है.

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य की तबाही में मोदी, अडानी, कांग्रेस सब शामिल

वीडियो: छत्तीसगढ़ के जैव-विविधता वाले हसदेव अरण्य में खनन गतिविधियों को लेकर यहां के मूल आदिवासी समुदाय लंबे समय से विरोध करते रहे हैं. हसदेव अरण्य एक घना जंगल है, जो 1,500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यह क्षेत्र राज्य के आदिवासी समुदायों का निवास स्थान है. इस जंगल के नीचे अनुमानित रूप से पांच अरब टन कोयला दबा है.

ज्ञानवापी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट का हालिया फैसला क्या न्यायसंगत कहा जा सकता है?

ज्ञानवापी मामले में मुस्लिम पक्ष की याचिकाएं ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की मस्जिद परिसर में मंदिर बहाली की याचिकाएं उपासना स्थल क़ानून के आधार पर ख़ारिज नहीं की जा सकतीं. हालांकि, एक सच यह है कि उपासना स्थल अधिनियम इसी तरह के मामलों से बचने के लिए लाया गया था.

क्यों अलग है उत्तर और दक्षिण भारत का राजनीतिक मिजाज़?

बीते दिनों आए विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद उत्तर भारत और दक्षिण भारत के लोगों और उनके प्रतिनिधि चुनने की प्राथमिकताओं पर लंबी बहस चली, तमाम सवाल उठाए गए. क्या वजह है कि इन क्षेत्रों के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मिजाज़ में इतना अंतर है?

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