जयंती विशेष: राममोहन ‘राजा’ शब्द के प्रचलित अर्थों में राजा नहीं थे. उनके नाम के साथ यह शब्द तब जुड़ा जब दिल्ली के तत्कालीन मुग़ल शासक बादशाह अकबर द्वितीय ने उन्हें राजा की उपाधि दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी नेपाल यात्रा के दौरान दोनों देश के मध्य विश्वास को बढ़ाते नज़र नहीं आए. वे नेपालियों से ज़्यादा भारतवासियों, उनसे भी ज़्यादा कर्नाटक के मतदाताओं और सबसे ज़्यादा हिंदुओं को संबोधित करते दिखे.
विशेष: बहादुरशाह ज़फ़र हमारे उस स्वतंत्रता संग्राम के नायक हैं जिसमें हम हार भले ही गए थे पर हिंदुओं व मुसलमानों ने उसे एकजुट होकर लड़ा था और अपनी एकता की शक्ति प्रमाणित कर दी थी.
जयंती विशेष: द्विवेदी जी ऐसे कठिन समय में हिंदी के सेवक बने, जब हिंदी अपने कलात्मक विकास की सोचना तो दूर, विभिन्न प्रकार के अभावों से ऐसी बुरी तरह पीड़ित थी कि उसके लिए उनसे निपट पाना ही दूभर हो रहा था.
समझ में नहीं आता कि जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को संविधान पीठ को सौंपा हुआ है तो उसका फैसला आए बिना सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार की ऐसी अनिवार्यता थोपने का क्या तुक है.
मज़दूर दिवस पर विशेष: कहां तो कार्ल मार्क्स ने ‘दुनिया के मज़दूरों एक हो’ का नारा दिया और कहा था कि उनके पास खोने को सिर्फ बेड़ियां हैं जबकि जीतने को सारी दुनिया और कहां उन्मत्त पूंजी दुनिया भर में उपलब्ध सस्ते श्रम के शोषण का नया इतिहास रचने पर आमादा है.
जीवन भर आर्थिक चुनौतियों से जूझने के बावजूद बालकृष्ण शर्मा के मन में इसे लेकर कोई ग्रंथि नहीं थी. कोई उनसे भविष्य के लिए कुछ बचाकर रखने की बात करता तो कहते, मेरा शरीर भिक्षा के अन्न से पोषित है इसलिए मुझे संग्रह करने का कोई अधिकार नहीं है.
उमा भारती ने मध्य प्रदेश में अपने मुख्यमंत्रीकाल में विधानसभा के अंदर आसाराम के प्रवचन कराए थे तो पूरे मंत्रिमंडल के साथ सत्ता पक्ष के सारे विधायकों के लिए उसे सुनना अनिवार्य कर दिया था.
वामपंथी दल आज़ादी के बाद विकसित अपनी वह छवि नहीं बचा पाए हैं, जिसमें उन्हें सत्ता का सबसे प्रतिबद्ध वैचारिक प्रतिपक्ष माना जाता था. वे परिस्थितियों के नाम पर कभी इस तो कभी उस बड़ी पार्टी की पालकी के कहार की भूमिका में दिखने लगे.
पुण्यतिथि विशेष: शलभ श्रीराम सिंह ने नकारात्मकता के बजाय संघर्ष या युद्ध को अपनी कविता का महत्वपूर्ण पक्ष बनाया.
लंदन में वेस्टमिंस्टर के सेंट्रल हाल में हुए दो घंटों से ज़्यादा के कार्यक्रम ‘भारत की बात, सबके साथ’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से लेकर अंत तक अपनी ही बात करते रह गए.
नोटबंदी से पहले तक तो जनता ये कल्पना भी नहीं करती थी कि कभी उसे बैंकों में जमा अपना ही धन पाने में इतनी समस्याएं पेश आएंगी और सरकार के झूठे आश्वासन जले पर नमक छिड़कते नज़र आएंगे.
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ के पट्टीदारों ने उनकी विरासत को लंबे अरसे तक झगड़े में फंसाकर उन्हें जैसी ‘श्रद्धांजलि’ दी, वैसी किसी दुश्मन को भी न मिले.
जन्मदिन विशेष: भारत के जिस संविधान का भीमराव आंबेडकर को निर्माता कहा जाता है उसके लागू होने के बाद 1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में वे बुरी तरह हार गए थे.
जन्मदिन विशेष: आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों, सिद्धांतों, नैतिकताओं, उसूलों व चरित्र के जिन संकटों से दो-चार हैं, उनके अंदेशे भीमराव आंबेडकर ने तभी भांप लिए थे.