बस्‍तर के आदिवासी की विडंबना: ‘ईश्‍वर’ को भी दो गज़ ज़मीन के लिए करना पड़ा इंतज़ार 

छत्तीसगढ़ के बस्‍तर ज़िला स्थित छिंदबहार गांव के निवासी ईश्‍वर कोर्राम की मृत्यु अप्रैल के अंतिम सप्ताह में हुई थी, लेकिन ग्रामीणों ने यह कहकर गांव में उनका अंतिम संस्कार नहीं होने दिया कि वह ईसाई धर्म अपना चुके थे. इस तरह के मामले पूरे छत्तीसगढ़ से सामने आ रहे हैं, जहां ईसाई आदिवासियों की मौत के बाद उनका अंतिम संस्कार होने से रोका जा रहा है.

डेमॉगॉग, जो शुरुआत लफ़्फ़ाज़ के तौर पर करता है और तानाशाह में बदल जाता है

डेमॉगॉग लोगों के भीतर छिपी अश्लीलताओं को उत्तेजित करता है, समाज में विभाजन पैदा करता है और जो अंतर लोगों में है, उनका इस्तेमाल कर उनके बीच खाई खोदता है, वह एक के हित को दूसरे के ख़िलाफ़ खड़ा करता है, ख़ुद को अपने लोगों के रक्षक के तौर पर पेश करता है.

विश्वविद्यालयों का गलगोटियाकरण और गायब होती वैचारिक छात्र राजनीति

गलगोटिया यूनिवर्सिटी के छात्रों पर जो सवाल उठा, वह किसी एक कैंपस का मामला नहीं है. तमाम सरकारी विश्वविद्यालयों का भी गलगोटियाकरण हो रहा है. इस प्रक्रिया में विश्वविद्यालय प्रशासन, छात्रसंघ और गलगोटियातुर छात्रों की भूमिका अहम है.

लोकतंत्र ही नहीं हमारी मानवीयता में भी लगातार कटौती हो रही है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिंदी अंचल इस समय भाजपा और हिंदुत्व के प्रभाव में है, लगभग चपेट में. इस दौरान सार्वजनिक व्यवहार में कुल पंद्रह क्रियाओं से ही काम चलता है. ये हैं: रोकना, दबाना, छीनना, लूटना, चिल्लाना, मिटाना, मारना, पीटना, भागना, डराना-धमकाना, ढहाना, तोड़ना-फोड़ना, छीनना, फुसलाना, भूलना-भुलाना.

वेनिस बिनाले से भारतीय पवेलियन की अनुपस्थिति

कला-यात्रा: वेनिस में प्रतिष्ठित बिनाले के साठवें संस्करण की शुरुआत हो चुकी है. अफ़सोस यह है कि पूरा विश्व जब अपने सांस्कृतिक स्रोतों के संवर्धन पर ध्यान दे रहा है, भारत अपनी विशिष्ट उपलब्धि को रेखांकित करने में नाकामयाब रहा है.

अत्याचारी और उसकी याद

आम चुनावों के दौरान जब हमारा देश, ख़ासकर हिंदी प्रदेश कठिन रास्ते से गुज़र रहा है, प्रस्तुत है हिंदी कविता में जनतंत्र की गौरवपूर्ण उपस्थिति की याद दिलाते इस स्तंभ की दूसरी क़िस्त.

हम प्रधानमंत्री नहीं, इस पद के उम्मीदवार भी नहीं, लेकिन प्रधानमंत्री होने का अधिकार हमारा है

जिस वक़्त हमारा चुनावी लोकतंत्र पूरे देश, ख़ासकर हिंदी प्रदेश में कठिन रास्ते से गुज़र रहा है, प्रस्तुत है यह नया स्तंभ जो हिंदी कविता में लोकतंत्र की गौरवपूर्ण उपस्थिति की याद दिलाता है.

फासीवाद का खतरा और सीपीआई की राजनीतिक अपरिपक्वता

सीपीआई को यह भ्रम है कि इसके पास एक वैज्ञानिक विचारधारा है जो हर सामाजिक परिघटना की व्याख्या कर सकती है, लेकिन उसके सहारे चुनाव नहीं लड़ा जा सकता.

संविधान सभा और प्रधानमंत्री की शक्तियां

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री सत्ता पर पूरी तरह नियंत्रण चाहते हैं. उनके तमाम कदम इसी दिशा में जाते दिखाई देते हैं. क्या भारतीय संविधान उन्हें इसकी अनुमति देता है? संविधान निर्माता प्रधानमंत्री को किस तरह की शक्तियां सौंपना चाहते थे?

संवैधानिक आचरण समूह का होना निष्पक्ष ढंग से असहमत और प्रतिरोधी होने का प्रमाण है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पूर्व सिविल सेवकों के 'संवैधानिक आचरण समूह' ने सांप्रदायिक घृणा, हिंसा, चुनाव और मतदान, मौलिक अधिकारों समेत विभिन्न मुद्दों को लेकर पत्र लिखे हैं. किताब के रूप में उन पत्रों का संचयन इस डराऊ-धमकाऊ समय में निर्भय, जागरूक साहस और असहमति का दस्तावेज़ है.

राजस्थान: लगातार बंद हो रहे इंटरनेट से परेशान क़रीब 4 लाख कर्मियों के मुद्दे चुनाव में कहां हैं?

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर इंडिया के मुताबिक़, 2012 से 2024 के बीच जम्मू कश्मीर के बाद राजस्थान में सबसे ज़्यादा बार इंटरनेट बंद किया गया है. इस तरह इंटरनेट पर आधारित ऐप्स से जुड़े रोज़गारों के लिए नियमित इंटरनेट बंदी बड़ी मुसीबत बन गई है.

भड़काऊ भाषण पर चुनाव आयोग की चुप्पी: लोकतंत्र का अंत?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत उनके दल के नेताओं की हेट स्पीच पर चुनाव आयोग की ख़ामोशी से अंदाज़ मिलता है कि भाजपा नेताओं को माहौल सांप्रदायिक बनाने के लिए उसने पूरी छूट दी है.

पुलिस नोटिस को झेलते बिहार के ग्रामीण मतदान से डर रहे हैं

ये नोटिस अमूमन पासवान, महतो और तेली जैसी अति-पिछड़ी जाति और अनुसूचित जातियों के सदस्यों के पास आए हैं. इस आरोप से डरकर ये लोग मतदान के दिन अपना गांव छोड़कर जाने का सोच रहे हैं- इस तरह यह नोटिस इन्हें मतदान के अधिकार से वंचित कर सकता है.

पहला आम चुनाव: इतिहास का सबसे बड़ा जुआ

इस ऐतिहासिक चुनाव का श्रेय कई इंसानों और संस्थाओं को दिया जा सकता है, लेकिन किसी भी मूल्यांकन की शुरुआत जवाहरलाल नेहरू और सुकुमार सेन के साथ उन दो संस्थाओं से होनी चाहिए जिनके उत्कृष्ट मूल्यों को दोनों इंसान रूपायित करते थे - भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भारतीय सिविल सेवा.

लोकतंत्र को सीधी राह पर लाने का क्या उपाय है?

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: लोकतंत्र अपने आप सीधी राह पर वापस नहीं आता या आ सकता. हम ऐसे मुक़ाम पर हैं जहां नागरिक के लोकतांत्रिक विवेक की परीक्षा है. उन्हें ही निर्णय करना है कि वे लोकतंत्र पर सीधी राह पर वापस लाने की कोशिश करना चाहते हैं या नहीं.

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