मणिपुर की राजधानी इंफाल के एक दैनिक अख़बार के संपादक धनबीर माईबाम को मोरेह शहर में बिगड़ती क़ानून व्यवस्था पर एक लेख प्रकाशित करने के लिए समुदायों के बीच दुश्मनी पैदा करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है. इससे पहले 29 दिसंबर 2023 को स्थानीय भाषा के एक सांध्य दैनिक के प्रधान संपादक को गिरफ़्तार किया गया था.
बीते 1 जनवरी को मणिपुर के घाटी ज़िले थौबल के लिलोंग इलाके में हथियारबंद लोगों ने चार लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी थी. घटना के संबंध में मेईतेई पंगलों (मेईतेई मुसलमानों) द्वारा गठित संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) की मांगें सरकार ने मान ली हैं, जिसके बाद समिति शवों के अंतिम संस्कार करने पर सहमत हो गई है.
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग पिछले महीने जातीय हिंसा प्रभावित मणिपुर में एक ही घटना में 13 लोगों की हत्या का स्वत: संज्ञान लेते हुए इस घटना को ‘ख़तरनाक और परेशान करने वाला’ बताया है. बीते 4 दिसंबर को म्यांमार सीमा के क़रीब मणिपुर के तेंगनौपाल ज़िले में भीषण गोलीबारी के बाद कम से कम 13 लोगों के शव मिले थे.
मणिपुर के घाटी क्षेत्र में स्थित थौबल ज़िले के लिलोंग इलाके में 1 जनवरी को यह हिंसा हुई. अज्ञात बंदूकधारियों छद्मवेश में पहुंचे और स्थानीय लोगों को निशाना बनाते हुए गोलीबारी शुरू कर दी थी. इसके बाद राज्य सरकार ने थौबल, इंफाल पूर्व, काकचिंग और बिष्णुपुर ज़िलों में फिर से कर्फ्यू लगा दिया है.
मालूम हो कि केंद्रीय गृह मंत्रालय, असम सरकार और यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के वार्ता समर्थक गुट ने बीते 29 दिसंबर को एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे. परेश बरुआ के नेतृत्व वाला दूसरा गुट, जिसे उल्फा (आई) के नाम से जाना जाता है, शांति प्रक्रिया में शामिल नहीं हुआ है.
मोरेह कुकी प्रभुत्व वले तेंगनौपाल ज़िले में है, जो 3 मई को राज्य में कुकी-ज़ो और मेईतेई समुदायों के बीच भड़के जातीय संघर्ष से प्रभावित ज़िलों में से एक है. शनिवार दोपहर वहां तब हिंसा भड़क उठी, जब सशस्त्र उपद्रवियों ने पुलिस जवानों की एक टीम पर घात लगाकर हमला किया, जिसमें एक जवान घायल हो गया.
इंफाल पुलिस ने भड़काऊ समाचार प्रकाशित करने के आरोप में स्थानीय दैनिक ‘कांगलेइपाकी मीरा’ के संपादक वांगखेमचा श्यामजई को गिरफ्तार कर लिया है. उन पर दंगा भड़काने का इरादा रखने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप है. वे 31 दिसंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिए गए हैं.
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) फिर से करने की मांग हो रही है, क्योंकि पिछली एनआरसी में कई कारक थे, जिसके कारण हम इसे ठीक से नहीं कर सके. असम में हालिया परिसीमन प्रक्रिया पर उन्होंने कहा कि 126 में से लगभग 97 सीटें स्वदेशी लोगों के लिए सुरक्षित की गई है.
बीते 26 दिसंबर को असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा के एक्स हैंडल ने एक पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया था कि ‘शूद्र - ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों - की सेवा करने के लिए हैं’. विवाद के बाद उन्होंने इसे डिलीट कर दावा किया कि उनकी टीम के एक सदस्य ने भगवद गीता के एक श्लोक का ग़लत अनुवाद पोस्ट कर दिया था.
शिलॉन्ग के आर्कबिशप विक्टर लिंगदोह ने कहा कि 18 दिसंबर को पोप फ्रांसिस द्वारा समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की मंज़ूरी दिए जाने के बाद मेघालय में 5,196 वर्ग किमी भूमि में फैले 2.65 लाख से अधिक कैथोलिकों की सेवा करने वाले शिलॉन्ग के आर्कडायोसिस ने इसका पालन करने का फैसला किया है.
एक अध्ययन में कहा गया है कि असम उन कुछ राज्यों में शुमार है जहां सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार राज्य पुलिस जवाबदेही आयोग (एसपीएसी) कार्यरत है, लेकिन 2022 में भाजपा सरकार द्वारा राज्य पुलिस अधिनियम में किए गए संशोधन आयोग की स्वतंत्रता से समझौता करते हैं.
सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज़ की 'आज़ाद आवाज़' टीम की एक रिपोर्ट बताती है कि असम के हिरासत शिविरों यानी डिटेंशन केंद्रों में संदिग्ध नागरिकता वाले लोगों को अमानवीय हालात में रहना पड़ रहा है, जहां गंभीर अपराधों की सज़ा काट रहे क़ैदी भी उनके साथ ही रहते हैं.
सात महीने से जातीय संघर्ष से जूझ रहे मणिपुर में ताज़ा झड़पें अब तक की हिंसा में मारे गए 87 कुकी-ज़ोमी पीड़ितों के सामूहिक दफ़न कार्यक्रम से पहले हुईं. ये घटनाएं सोमवार को चूड़ाचांदपुर शहर के कई हिस्सों और थिंगखांगफाई गांव में हुईं, जिसमें लगभग 30 लोग घायल हुए हैं.
प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि अग्निशमन सेवा विभाग के तहत फायरमैन और ड्राइवर पदों पर भर्ती के लिए मौखिक परीक्षा बिना किसी देरी के तुरंत आयोजित की जाए. उनके अनुसार, वे पिछले साल फिजिकल टेस्ट में शामिल हुए थे, जिसके बाद वे इस साल 8 जनवरी को लिखित परीक्षा में शामिल हुए थे.
मिज़ोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने कहा है कि उनकी सरकार संसाधनों की उपलब्धता के आधार पर शरणार्थियों और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की देखभाल करना जारी रखेगी. यह राजनीतिक नहीं, बल्कि मानवीय मुद्दा है. राज्य गृह विभाग के अनुसार, म्यांमार के 31,300 से अधिक नागरिकों और 1,100 से अधिक बांग्लादेशियों ने राज्य में शरण ले रखी है.