नागरिकता संशोधन अधिनियम को लेकर मेघालय की चिंताओं का समाधान हो गया है: मुख्यमंत्री संगमा

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने एक इंटरव्यू में बताया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के पहले मसौदे में किसी भी राज्य के लिए छूट का प्रावधान नहीं था, लेकिन हमारे चिंता जताने के बाद केंद्र सरकार एक प्रावधान लेकर आई, जिसके तहत मेघालय और छठी अनुसूची तथा इनर परमिट लिमिट वाले अन्य क्षेत्रों को क़ानून से छूट दी गई है.

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मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा. (फोटो साभार: फेसबुक)

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने एक इंटरव्यू में बताया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के पहले मसौदे में किसी भी राज्य के लिए छूट का प्रावधान नहीं था, लेकिन हमारे चिंता जताने के बाद केंद्र सरकार एक प्रावधान लेकर आई, जिसके तहत मेघालय और छठी अनुसूची तथा इनर परमिट लिमिट वाले अन्य क्षेत्रों को क़ानून से छूट दी गई है.

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) पर राज्य की चिंताओं का समाधान कर दिया गया है, क्योंकि राज्य के अधिकांश क्षेत्र अनुसूची 6 के अंतर्गत आते हैं, जिसे कि नागरिकता कानून से छूट प्राप्त है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक इंटरव्यू के दौरान नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) प्रमुख संगमा ने सीएए लागू होने पर राज्य पर पड़ने वाले ‘स्पिलओवर प्रभाव’ (एक राज्य/राष्ट्र का दूसरे राज्यों/राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला प्रभाव) पर चिंता व्यक्त की और इनर लाइन परमिट (आईएलपी) की आवश्यकता पर भी जोर दिया, जो बाहरी लोगों का प्रवेश प्रतिबंधित करेगा.

सीएए, जिसे बांग्लादेश के साथ 400 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा साझा करने वाले मेघालय में विरोध का सामना करना पड़ा है, के बारे में पूछे जाने पर संगमा ने कहा कि उनकी चिंताओं का समाधान कर दिया गया है, क्योंकि इसमें अनुसूची 6 के क्षेत्र शामिल नहीं हैं.

संगमा ने साक्षात्कार में बताया, ‘जब सीएए का पहला मसौदा सामने आया था, तो किसी भी राज्य के लिए छूट का कोई प्रावधान नहीं था. हमारे चिंता जताने के बाद हम गृह मंत्री से मिले, हम अन्य नेताओं से मिले, फिर पूरे मसौदे पर दोबारा विचार किया गया और वे एक प्रावधान लेकर आए, जहां मेघालय और छठी अनुसूची और आईएलपी वाले अन्य क्षेत्रों को छूट दी गई है.’

उन्होंने कहा, ‘मेघालय के हर क्षेत्र में, राजधानी शिलॉन्ग में कुछ वर्ग मीटर को छोड़कर… छोटा क्षेत्र जिसे हम यूरोपीय वार्ड कहते हैं, एकमात्र क्षेत्र है, जो गैर-अनुसूचित क्षेत्र है. राज्य का अधिकांश भाग अनुसूचित क्षेत्र है. एक बार छूट मिलने के बाद हमें कोई चिंता नहीं है. इसलिए हमारी चिंताओं का समाधान कर दिया गया है.’

वे बोले, ‘हमने हाल ही में भारत सरकार से अनुरोध किया है कि क्या हमारे पास अभी भी आईएलपी हो सकता है. क्योंकि अन्य राज्यों में जो कुछ भी होता है, उसका असर यहां भी हो सकता है, हमने इसके लिए अनुरोध किया है. हमें खुशी है कि भारत सरकार ने मेघालय को छूट दी. हमने पूछा है कि क्या गैर-अनुसूचित क्षेत्र को भी छूट दी जा सकती है, हालांकि यह बहुत छोटा क्षेत्र है.’

उन्होंने आईएलपी का विस्तार राज्य में करने के लिए राज्य विधानसभा द्वारा पारित एक प्रस्ताव का भी उल्लेख किया. दिसंबर 2019 में मेघालय विधानसभा ने राज्य में आईएलपी शासन लागू करने के लिए एक प्रस्ताव अपनाया था.

आईएलपी एक विशेष परमिट है, जो भारत के अन्य क्षेत्रों से ‘बाहरी लोगों’ को अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर राज्यों में प्रवेश करने के लिए आवश्यक होता है.

दिसंबर 2019 में संसद द्वारा पारित सीएए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आए हिंदुओं, सिखों, जैनियों, बौद्धों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करता है. बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सीएए लागू करने के नियम जारी कर दिए जाएंगे.

अधिनियम के प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे.

छठी अनुसूची आदिवासी आबादी को संरक्षण प्रदान करती है, स्वायत्त विकास परिषदों के निर्माण के माध्यम से समुदायों को स्वायत्तता देती है, परिषदें भूमि, जनस्वास्थ्य और कृषि पर कानून बना सकती हैं.

1961 के बाद राज्य में आए लोगों को निर्वासित करने के मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह के बयान के बारे में पूछे जाने पर संगमा ने कहा कि यह निर्णय राज्य और केंद्र सरकारों को लेना है, लेकिन साथ ही कहा, ‘मणिपुर में स्थिति जटिल है और उन निर्णयों को जमीनी कारकों को ध्यान में रखते हुए लेना होगा. यह भारत सरकार और मणिपुर सरकार को तय करना है.’

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