अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के एक फ्रंट पेज पर 12 सितंबर को प्रकाशित उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के विज्ञापन में दिखाई गईं तीन प्रमुख तस्वीरों में से एक कोलकाता का फ्लाईओवर होने की वजह से विवाद हो गया है. तृणमूल कांग्रेस ने इस विज्ञापन को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है, तो भाजपा ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश सरकार जहां एक्सप्रेसवे का निर्माण करती है, वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी शासन में फ्लाईओवर धराशायी हो जाते हैं.
गुजराती समाचार पोर्टल ‘फेस ऑफ द नेशन’ के संपादक धवल पटेल ने पिछले साल कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को लेकर गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन का सुझाव देने वाली एक रिपोर्ट लिखी थी, जिसके चलते 11 मई 2020 को उनके ख़िलाफ़ राजद्रोह का केस दर्ज किया गया था. उनके माफ़ी मांगने के बाद यह मामला रद्द किया गया था.
मामला अंडमान निकोबार द्वीप समूह का है, जहां पुलिस ने पिछले साल एक स्वतंत्र पत्रकार को कोविड-19 वायरस की रोकथाम को लेकर अपनाई जा रही अजीबोग़रीब क्वारंटीन नीति से संबंधित एक ट्वीट पर हिरासत में लिया था. पत्रकार ने ट्विटर पर अंडमान प्रशासन को टैग करते हुए सवाल किया था कि जिन परिवारों ने केवल कोविड मरीज़ों से केवल फोन पर बात की है, उन्हें क्वारंटीन के लिए मजबूर क्यों किया जा रहा है.
आयकर विभाग ने बीते 10 सितंबर को दिल्ली के दो ऑनलाइन मीडिया पोर्टल्स- न्यूज़क्लिक और न्यूज़लॉन्ड्री के परिसरों का दौरा किया और दोनों के बही-खातों की जांच की थी. अधिकारियों ने बताया था कि ये ‘सर्वे’ था, न कि ‘छापेमारी.’ ‘सर्वे’ के दौरान अधिकारी संस्थान के वित्तीय रिकॉर्ड्स खंगालते हैं, लेकिन कोई चीज ज़ब्ज नहीं करते हैं.
जर्मन प्रसारण कंपनी ‘डॉयचे वेले’ ने कहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में उसके नौ संवाददाता और एकमात्र महिला संवाददाता शुक्रवार को अपने परिवार के साथ देश छोड़कर निकलने में सफल रहे. इन संवाददाताओं को जर्मनी के बॉन शहर ले जाया जाना है.
बीते दिनों पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर ज़ी मीडिया के अंग्रेज़ी चैनल 'विऑन' से जुड़े हैं. अब उन्हें हटाने की मांग करते हुए पत्रकारों के एक समूह ने इस संस्थान से कहा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और यौन उत्पीड़कों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
प्रवर्तन निदेशालय मामले में दिल्ली हाईकोर्ट से राहत मिलने के बाद अब आयकर विभाग ने न्यूज़क्लिक के ख़िलाफ़ जांच शुरू की है.
बुधवार को त्रिपुरा में भाजपा और माकपा कार्यकर्ताओं के बीच संघर्ष के दौरान दो अख़बारों और दो टीवी चैनलों के दफ़्तरों में तोड़फोड़ की गई. तीन ज़िलों में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में हुई झड़पों में कम से कम दस घायल हो गए, दो पार्टी कार्यालय जल गए, कई अन्य में तोड़फोड़ की गई और छह वाहनों में आग लगा दी गई.
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल स्थित एक अख़बार के दो अफ़ग़ान पत्रकारों सहित कई अन्य पत्रकारों ने तालिबान की हिरासत में बुरी तरह प्रताड़ित किए जाने की बात कही है. जानकारी के अनुसार, तालिबान द्वारा पत्रकारों से कहा गया कि महिलाओं की तस्वीरें लेना ग़ैर-इस्लामिक है.
पुलिस द्वारा यह कार्रवाई कठोर यूएपीए क़ानून के तहत पिछले साल दर्ज एक मामले को लेकर की गई है, जो कश्मीर के पत्रकारों व कार्यकर्ताओं को जान से मारने की धमकी से जुड़ा हुआ है.
कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की के एक सवाल का लिखित जवाब देते हुए झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि कोविड-19 से पत्रकारों की मौत के संदर्भ में किसी स्रोत से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली और न ही जिला आपदा प्रबंधन टीमों ऐसी कोई सूचना दर्ज की है. झारखंड पत्रकार संघ ने कहा है कि राज्य में कोरोना से 30 पत्रकारों की मौत हुई है. इसका ब्योरा देते हुए मुख्यमंत्री और जनसंपर्क विभाग को पत्र लिखा गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने द वायर का प्रकाशन करने वाले ‘फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म’ और उसके तीन पत्रकारों के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश में दर्ज प्राथमिकियों को रद्द कराने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पास जाने के लिए कहा और उन्हें गिरफ़्तारी से दो माह का संरक्षण दिया है.
कई भारतीय समाचार चैनलों ने हस्ती टीवी का एक वीडियो ‘एक्सक्लूसिव’ बताते हुए प्रसारित किया और इसके सहारे दावा किया कि पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान के पंजशीर में हमला कर रहा है. हालांकि बाद में पता चला कि ये वीडियो गेम की फुटेज थी.
मद्रास हाईकोर्ट ने फेक न्यूज़ और फ़र्ज़ी पत्रकारों की समस्या से निपटने के लिए 19 अगस्त को तमिलनाडु सरकार को तीन महीने के भीतर प्रेस परिषद के गठन का आदेश दिया था. हाईकोर्ट ने इस प्रस्तावित परिषद को व्यापक अधिकार दिए हैं, जिसमें राज्य के प्रेस क्लबों, पत्रकार संघों या यूनियन को मान्यता देने का अधिकार भी शामिल है. पत्रकार संगठनों का कहना है कि इससे प्रेस की स्वतंत्रता बाधित हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेब पोर्टल किसी भी चीज़ से नियंत्रण नहीं होते हैं. ख़बरों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की जा रही है और यह एक समस्या है. अंतत: इससे देश का नाम बदनाम होता है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिल्ली में तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम और कोविड-19 के प्रसार पर इसके प्रभाव को लेकर फ़र्ज़ी और सांप्रदायिक खबरें प्रसारित करने के ख़िलाफ़ दाख़िल एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.