केवल दुर्लभ मामलों में ही जांच सीबीआई को हस्तांतरित की जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अडानी समूह के ख़िलाफ़ हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों की जांच भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से सीबीआई को स्थानांतरित करने या एसआईटी गठित करने की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की है. इससे इनकार करते हुए अदालत ने सेबी को 3 महीने में जांच पूरी करने का निर्देश दिया था.

अडानी-हिंडनबर्ग जांच एसआईटी को सौंपने का आधार नहीं, सेबी 3 महीने में जांच पूरी करे: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि जब सेबी के नियामक क्षेत्र की बात आती है तो अदालत के पास सीमित क्षेत्राधिकार है.

अडानी समूह के ख़िलाफ़ रिपोर्ट को लेकर पत्रकारों को गिरफ़्तारी से दी गई सुरक्षा कोर्ट ने बढ़ाई

इन चार पत्रकारों को गुजरात पुलिस ने अडानी समूह की आलोचना करने वाली उनकी रिपोर्ट को लेकर तलब किया था. अडानी-हिंडनबर्ग विवाद को लेकर दो पत्रकारों द्वारा लिखी गई एक रिपोर्ट ऑर्गनाइज़्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी, जबकि दो अन्य पत्रकारों की रिपोर्ट को फाइनेंशियल टाइम्स ने प्रकाशित किया था.

अडानी-हिंडनबर्ग: 2 पत्रकारों के ख़िलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई न करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

द फाइनेंशियल टाइम्स अखबार के दो पत्रकारों को गुजरात पुलिस ने अडानी समूह की कंपनियों के संबंध में अख़बार में प्रकाशित एक लेख के संबंध में प्रारंभिक जांच के लिए बुलाया था. इससे पहले अदालत ने दो अन्य पत्रकारों को अडानी-हिंडनबर्ग विवाद पर उनके द्वारा लिखी गई एक रिपोर्ट के संबंध में अंतरिम सुरक्षा प्रदान की थी.

अडानी-हिंडनबर्ग केस: याचिकाकर्ता का सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति पर हितों के टकराव का आरोप

अमेरिका वित्तीय शोध कंपनी हिंडनबर्ग द्वारा अडानी समूह पर ‘स्टॉक हेरफेर और ऑडिट धोखाधड़ी’ के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित छह सदस्यीय विशेषज्ञ समिति मई में अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंप चुकी है. अब समिति सदस्यों पर हितों के टकराव के आरोप लगाते हुए इसके पुनर्गठन की मांग की गई है.

भारत में लोकतंत्र की गिरावट का असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा

जो लोग यक़ीन करते हैं कि भारत अब भी एक लोकतंत्र है, उनको बीते कुछ महीनों में मणिपुर से लेकर मुज़फ़्फ़रनगर तक हुई घटनाओं पर नज़र डालनी चाहिए. चेतावनियों का वक़्त ख़त्म हो चुका है और हम अपने अवाम के एक हिस्से से उतने ही ख़ौफ़ज़दा हैं जितना अपने नेताओं से.