कोशल में रात गहराती जा रही है!

आज की अयोध्या में बहुसंख्यक सांप्रदायिकता के समक्ष आत्मसमर्पण और उसका प्रतिरोध न कर पाने की असहायता बढ़ती जा रही है. आम लोगों के बीच का वह स्वाभाविक सौहार्द भी, जो आत्मीय रिश्तों तक जाता था, अब औपचारिक हो चला है.

राम मंदिर पर फैसला सुनाने वाले पूर्व सीजेआई गोगोई को असम का सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलेगा

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने घोषणा की है कि पूर्व सीजेआई और राज्यसभा सांसद रंजन गोगोई को असम के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘असम वैभव’ से सम्मानित किया जाएगा. गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ ने 2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद में मंदिर पक्ष के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला सुनाया था.

जो मोदी सरकार कर रही है वो राम के मूल्यों से परे है: फ़ारूक़ अब्दुल्ला

वीडियो: जम्मू-कश्मीर के हालात, राम मंदिर, सांप्रदायिकता, मोदी सरकार के कामकाज समेत विभिन्न मुद्दों पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की बातचीत.

अयोध्या: ‘मानस’ तुम्हारा ‘चरित’ नहीं चुनाव का डंका है!

अयोध्या का मंदिर हिंदू जनता पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भारतीय जनता पार्टी तथा उनके सहयोगी संगठन के कसे हुए शिकंजे का मूर्त रूप है. इसमें होने जा रही प्राण-प्रतिष्ठा का निश्चय ही भक्ति, पवित्रता और पूजा से लेना-देना नहीं है.

धर्म और भगवान को चुनाव में ब्रांड एंबेसडर बना देने से संविधान तथा देश की रक्षा कैसे होगी?

सवाल है कि राम मंदिर को लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अंतिम फैसला सुनाए जाने के बाद पूरे चार साल तक मोदी सरकार हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रही. जवाब यही है कि 2024 के आम चुनावों के कुछ दिन पहले ही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बहाने हिंदुत्व का डंका बजाकर वोटों की लहलहाती फसल काटना आसान बन जाए.

राम मंदिर समारोह में शामिल न होने पर पुरी शंकराचार्य ने कहा- यह अहंकार का मामला नहीं है

पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि चारों शंकराचार्य अपनी गरिमा बनाकर रखते हैं. यह अहंकार का मामला नहीं है. क्या हमसे उम्मीद की जाती है कि जब प्रधानमंत्री रामलला की मूर्ति स्थापित करेंगे तो हम बाहर बैठेंगे और तालियां बजाएंगे? चारों शंकराचार्य राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से इनकार कर चुके हैं.

हम रामलला की अर्चना रामानंदी परंपराओं से चाहते थे, पर ट्रस्ट ने नज़रअंदाज़ किया: निर्मोही अखाड़ा

निर्मोही अखाड़े के एक वरिष्ठ महंत का कहना है कि श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने 'प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में पूजा और अनुष्ठानों का पालन करने में 500 साल पुरानी परंपराओं का पालन नहीं किया है. रामलला की अर्चना रामानंदी परंपराओं से की जाती है, लेकिन ट्रस्ट मिली-जुली रीतियां कर रहा है, जो उचित नहीं है.'

अभी भले एहसास न हो, पर हिंदू जनता सिर्फ़ राजनीतिक लाभ का साधन बनकर रह जाएगी

अगर हिंदू जनता को यह यक़ीन दिलाया जा सकता है कि यह मंदिर उसकी चिर संचित अभिलाषा को पूरा करता है तो इसका अर्थ है कि हिंदू मन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूरी तरह कब्ज़ा हो चुका है.

अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के दिन उद्धव ने राष्ट्रपति को नासिक राम पूजा के लिए आमंत्रण भेजा

उद्धव ठाकरे ने 22 जनवरी को नासिक के कालाराम मंदिर में होने वाले राम महाआरती और महापूजा के आयोजन में शामिल होने के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है. इसी दिन अयोध्या में राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह है, जिसमें शामिल होने के लिए विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की ओर से भी राष्ट्रपति को आमंत्रित किया गया है.

राम मंदिर: पुरी शंकराचार्य ने कहा- धार्मिक आयोजनों में राजनीतिक हस्तक्षेप उचित नहीं

अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भाग नहीं लेने के अपने रुख़ को दोहराते हुए पुरी शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि राजनेताओं की अपनी सीमाएं हैं. धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में नियम और प्रतिबंध हैं, इनका पालन किया जाना चाहिए. नेताओं द्वारा हर क्षेत्र में हस्तक्षेप करना पागलपन है.

सीपीआई भी राम मंदिर के उद्घाटन में शामिल नहीं होगी, कहा- सरकार प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी. राजा ने कहा है कि राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह एक सरकार-प्रायोजित राजनीतिक कार्यक्रम है, जो लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा और आरएसएस द्वारा आयोजित किया जा रहा है. इन्हीं कारणों से कांग्रेस और माकपा ने भी इस समारोह में शामिल होने से इनकार कर दिया है.

गुजरात: शारदापीठ के शंकराचार्य ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण ठुकराया

गुजरात के द्वारका स्थित शारदापीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल न होने के पीछे विवादों और ‘धर्म विरोधी ताकतों’ के इससे जुड़े होने का हवाला दिया है. उन्होंने कहा कि चारों शंकराचार्यों को निमंत्रण मिला है, लेकिन कोई भी 22 जनवरी के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नहीं जा रहा है.

चंपत राय की जमात को सौहार्द का अभ्यास पहले ही नहीं था, अब हिंदू एकता भी उनसे नहीं सध रही

शैव-वैष्णव संघर्षों की समाप्ति के लिए गोस्वामी तुलसीदास द्वारा राम की ओर से दी गई ‘सिवद्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहुं मोंहि न पावा’ की समन्वयकारी व्यवस्था के बावजूद चंपत राय का संन्यासियों, शैवों व शाक्तों के प्रति प्रदर्शित रवैया हिंदू परंपराओं के प्रति उनकी अज्ञानता की बानगी है.

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