मामला उत्तर प्रदेश के अमेठी ज़िले के संग्रामपुर विकासखंड के बनपुरवा सरकारी स्कूल का है. भोजन परोसने के दौरान कथित तौर पर दलित बच्चों की अलग पंक्ति बनाने के आरोप में स्कूल की प्रिंसिपल के ख़िलाफ़ केस दर्ज किया गया है. जांच के बाद उन्हें निलंबित भी कर दिया गया है.
‘कांस्टिट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप’ के तत्वाधान में 108 पूर्व नौकरशाहों द्वारा लिखे पत्र में कहा गया है कि गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) पांच दशकों से अधिक समय से भारत की क़ानून की किताबों में मौजूद है और हाल के वर्षों में इसमें किए गए संशोधनों ने इसे निर्मम, दमनकारी और सत्तारूढ़ नेताओं तथा पुलिस के हाथों घोर दुरुपयोग करने लायक बना दिया है.
संस्थान के सहायक प्रोफेसर विपिन पुदियाथ वीतिल ने फैकल्टी सदस्यों को भेजे ईमेल में लिखा है कि ऊंचे पदों पर बैठे लोगों द्वारा उनके साथ भेदभाव किया गया है. उन्होंने इस समस्या का समाधान करने के लिए एक समिति बनाने का सुझाव दिया है.
बीते महीने बिहार के दरभंगा ज़िले की अदलपुर पंचायत में मुस्लिमों के अत्यंत पिछड़ा वर्ग से आने वाले और अमूमन सामाजिक उपेक्षा का शिकार रहे 'फ़कीर' समुदाय के दो बच्चे हाईस्कूल की दहलीज़ तक पहुंचे, वहीं गांव के ही दो दलित बच्चों ने पहली बार मैट्रिक पास किया है.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के हज़ार से अधिक पूर्व छात्रों ने आईआईटी खड़गपुर के निदेशक को भेजे गए पत्र में कहा है कि आईआईटी पहले से ही दलित, आदिवासी और पिछड़ी जाति के छात्रों के लिए द्वेषपूर्ण होने को लेकर कुख्यात हैं और आगे ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने की ज़रूरत है.
कोई भी राजनीतिक दल जाति व्यवस्था के अंत का बीड़ा नहीं उठाना चाहता है, न ही कोई सामाजिक आंदोलन इस दिशा में अग्रसर है. बल्कि, जाति आधारित संघों का विस्तार तेज़ी से हो रहा है. यह राष्ट्र एवं समाज के लिए एक घातक संकेत है.
जाति एक ऐसी बाधा है जो एक समाज का निर्माण नहीं होने देती. राष्ट्र बनकर भी नहीं बन पाता क्योंकि हम एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी नहीं होते. एकजुटता या बंधुत्व के अभाव में सामाजिक संपदा का निर्माण भी नहीं हो पाता.
भारतीय समाज में आप भले ही जाति को मौजूद न जानें, लेकिन जाति सबको जानती है.
मामला तमिलनाडु के कडलूर ज़िले का है. पिछले साल दिसंबर में पंचायत प्रधान चुनी गईं दलित एस. राजेश्वरी कई बैठकों में उसी पंचायत के उप-प्रधान ने ज़मीन पर बैठने को मजबूर किया. आरोप है कि कई अवसरों पर महिला प्रधान को झंडा भी नहीं फ़हराने दिया गया.
कंगना रनौत का एक साथी महिला कलाकार के काम को नकारते हुए उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास और घर गिराए जाने की तुलना बलात्कार से करना दिखाता है कि फेमिनिज़्म को लेकर उनकी समझ बहुत खोखली है.
अब्दुल बिस्मिल्लाह ने मुस्लिम समाज में मौजूद जातिवाद को कुठांव यानी मर्मस्थल की मानिंद माना है. उनके अनुसार यह एक ऐसा नाज़ुक विषय है अमूमन जिसका अस्तित्व ही अवास्तविक माना जाता है और जिसके बारे में बात करना पूरे मुस्लिम समाज के लिए एक पीड़ादायक विषय है.
एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार जेलों में बंद दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की संख्या देश में उनकी आबादी के अनुपात से अधिक है, साथ ही दोषी क़ैदियों से ज़्यादा संख्या इन वर्गों के विचाराधीन बंदियों की है. सरकार का डॉ. कफ़ील और प्रशांत कनौजिया को बार-बार जेल भेजना ऐसे आंकड़ों की तस्दीक करता है.
बीते रविवार को अभिनेत्री कंगना रनौत ने ट्विटर पर भारत में जाति-व्यवस्था, आरक्षण और भेदभाव को लेकर टिप्पणियां की थीं.
एक महिला रेजिडेंट डॉक्टर की शिकायत पर जांच कर रही समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि महिला से आरोपी फैकल्टी सदस्य ने ‘अपनी औकात में रहो’ जैसे वाक्यों और जातिगत शब्दों का प्रयोग किया था, इसलिए उनके ख़िलाफ़ सख़्त अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए.
हाल ही में सोशल मीडिया के बड़े प्लेटफॉर्म ट्विटर पर जातिवादी होने के आरोप लगे हैं. हम भी भारत की इस कड़ी में द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी इस विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतनताल, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े और द वायर की सोशल मीडिया एडिटर नाओमी बारटन से बात कर रही हैं.