सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी व्यक्ति पर एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत कथित अपराधों के लिए तब तक मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता, जब तक कि अपमानित करने के इरादे से ‘सार्वजनिक तौर पर’ जातिवादी टिप्पणी न की गई हो.
सवर्णों ने इस विमर्श को केंद्र में ला दिया है कि ओबीसी और दलित हिंदुत्व के रथी हो गए हैं. यह विमर्श इस तथ्य को कमज़ोर करना चाहता है कि ऊंची जातियां हिंदुत्व का केंद्र हैं, उसे विचार और ताक़त देती हैं. आज भाजपा यदि अपने विस्तार के अंतिम बिंदु पर दिखाई देती है तो उसकी वजह यह है कि वह गैर-ब्राह्मण समूहों में अपेक्षित पकड़ नहीं बना पाई है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि ‘सांस्कृतिक मार्क्सवादी’ और ‘वोक पीपल’ (Woke People) को लेकर संघ सुप्रीमो की ललकार एक तरह से उत्पीड़ितों की दावेदारी और स्वतंत्र चिंतन के प्रति हिंदुत्व वर्चस्ववाद की बढ़ती बेचैनियों को ही बेपर्द करती है.
द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
सामाजिक न्याय के लिए लड़ने का दावा करने वाले हिंदुत्ववादी शक्तियों से किसी सुविचारित दीर्घकालिक रणनीति के बजाय चुनावी समीकरणों के सहारे निपटते रहे. इसने उन्हें सत्ता दिलाई तो भी सामाजिक न्यायोन्मुख नीतियां लागू व कार्यक्रम चलाकर उसकी अपील का विस्तार नहीं किया.
मनोज झा के एक वक्तव्य पर जिस प्रकार की हिंसक प्रतिक्रिया हुई है, उससे वर्चस्वशाली समुदाय के हिंसक स्वभाव को समझा जा सकता है.
जन्मदिन विशेष: आज़ादी की लड़ाई के समय लखनऊ में अवधी के बडे़ कवि बलभद्र प्रसाद दीक्षित ‘पढ़ीस’ जितने कवि थे, उससे ज़्यादा एक्टिविस्ट. जाति व वर्ण व्यवस्थाओं और ग़ैर-बराबरी के ख़िलाफ़ होकर ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोड़कर उन्होंने श्रमजीवी बनने की राह चुनी थी.
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर ज़िले का मामला. घटना 25 अगस्त को घटी थी, लेकिन अब तक परिजनों को 18 वर्षीय दलित युवक की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिल सकी है. परिवार ने आरोप लगाया है कि उन्हें इसलिए मार दिया गया, क्योंकि वह दलित समुदाय से थे. मामले में मुख्य आरोपी ने आत्मसमर्पण कर दिया है.
साक्षात्कार: इतिहासकार, शिक्षाविद और नारीवादी उमा चक्रवर्ती देश की आज़ादी के समय छह साल की थीं. शिक्षा, समाज सेवा, फिल्म निर्माण जैसे क्षेत्रों में व्यापक काम कर चुकीं उमा का कहना है कि आज धर्म के आधार पर हो रही लिंचिंग, दंगे आदि स्वतंत्रता आंदोलन और उससे जुड़े वादों के साथ धोखा हैं.
घटना मध्य प्रदेश के छतरपुर की है. दलित समुदाय के एक युवक की बीते 28 जून को शादी थी, लेकिन उसे अपनी बारात में घोड़ी पर बैठने के लिए स्थानीय पुलिस की मदद के लिए आवेदन देना पड़ा था, जिसमें बारात में बाधा डालने की धमकियों को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी.
कोर्ट सीबीएसई के दो भाइयों के कक्षा 10 और कक्षा 12 के बोर्ड प्रमाणपत्रों पर उनके पिता का सरनेम बदलने से मना करने के ख़िलाफ़ याचिका सुन रहा था. इसमें कहा गया था कि उनके पिता ने अपना सरनेम 'मोची' से बदलकर 'नायक' किया, क्योंकि उन्हें सरनेम के आधार पर जातिगत दुराग्रहों का सामना करना पड़ रहा था.
घटना पाटन ज़िले की है. काकोशी गांव के एक स्कूल के मैदान में चल रहे मैच के दौरान एक 8 वर्षीय बच्चे ने क्रिकेट की गेंद को उठा लिया था, जिससे कथित उच्च जाति के कुछ लोग भड़क गए. आरोप है कि बाद में उन्होंने बच्चे के चाचा पर लाठी-डंडों और तलवार से हमला किया.
महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले के बोंदर हवेली गांव में रहने वाले आंबेडकरवादी युवक अक्षय भालेराव ने गांव में बीते 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती मनाने के लिए ग्रामीणों को पुलिस से अनुमति दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, जिससे गांव का बहुसंख्यक मराठा समुदाय उनसे चिढ़ा हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट बिहार में चल रही जातिगत जनगणना पर रोक लगाने संबंधी एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. उसने आगे इस पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए पटना हाईकोर्ट को तीन दिनों में ‘प्राथमिकता के साथ’ इसका निपटान करने का निर्देश दिया है.
आंबेडकर गांवों को भारतीय गणतंत्र की 'इकाई' मानने से इनकार करते हैं, क्योंकि उनके अनुसार गांव में सिर्फ एक समान ग्रामीण नहीं रहते बल्कि 'अछूतों' का 'छूतों' से विभाजन साफ दिखाई देता है. ग्रेटर नोएडा में भारत सरकार द्वारा 'आदर्श गांव' घोषित नीमका में 18 अप्रैल को आंबेडकर की प्रतिमा तोड़े जाने की घटना के बाद दलित समुदाय पर लगे आरोपों में यही विभाजन स्पष्ट नज़र आता है.